script

Ahmedabad News : कोरोना के साथ भी जीने की बात मस्तिष्क में रखें : डॉ. रावल

locationअहमदाबादPublished: May 12, 2020 06:49:17 pm

Submitted by:

Rajesh Bhatnagar

पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाला है, रोग पैदा करने का स्वरूप बदल सकता है
जितनी जल्दी संभव हो टीके की जरूरत है और शरीर की जीवनशैली बदलने की जरूरत

Ahmedabad News : कोरोना के साथ भी जीने की बात मस्तिष्क में रखें : डॉ. रावल

Ahmedabad News : कोरोना के साथ भी जीने की बात मस्तिष्क में रखें : डॉ. रावल,Ahmedabad News : कोरोना के साथ भी जीने की बात मस्तिष्क में रखें : डॉ. रावल,Ahmedabad News : कोरोना के साथ भी जीने की बात मस्तिष्क में रखें : डॉ. रावल

– राजेश भटनागर

अहमदाबाद. मनुष्य के शरीर में अरबों बैक्टीरिया है और अरबों वायरस पहले से ही शरीर के भीतर घर करके रह रहे हैं लेकिन रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होने पर हवा में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया असर करते हैं। इसलिए जिस प्रकार वायरस और बैक्टीरिया के रोगों के साथ जी रहे हैं, उसी प्रकार कोरोना के साथ भी जीने की बात मस्तिष्क में रखनी पड़ेगी।
गुजरात के वरिष्ठ चेस्ट फिजिशियन, पल्मोनोलॉजिस्ट व एसोसिएशन ऑफ चेस्ट फिजियिशन्स ऑफ गुजरात के पूर्व अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र रावल ने राजस्थान पत्रिका से विशेष भेंट के दौरान मंगलवार को यह बात कही। डॉ. रावल ने कहा कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन का इलाज करने वाले फेफड़े रोग विशेषज्ञ ने बिल्कुल सही कहा है कि कोरोना मिटने वाला नहीं है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाला है लेकिन रोग पैदा करने का स्वरूप बदल सकता है, उसको परखने की जरूरत है, जितनी जल्दी संभव हो टीके की जरूरत है और शरीर की जीवनशैली बदलने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि शुरुआत में कोरोना वायरस फेफड़े पर हमला करता था जिसकी वजह से खांसी, श्वास चलना और बुखार रहता था। बहुत-से रोगियों में लक्षण नहीं दिखाई देते हैं, जिनको खांसी, बुखार नहीं है उनकी भी कोरोना संबंधी जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आती है। कोरोना के संक्रमण के चार पहलू हैं। पहले स्थान पर फेफड़े के मरीज हैं। दूसरे स्थान पर लक्षण वाले मरीज हैं जो सामान्य दिखते हैं फिर भी रिपोर्ट पॉजिटिव आती है। तीसरे स्थान पर समूह में शामिल लोगों को स्वाद नहीं आता, दस्त लगती है, उल्टी होती है, आंत में कोरोना का वायरस असर करता है।
चौथे स्थान पर वह समूह है जो वायरल से पीडि़त हैं, उनमें प्लेटलेट पर असर करता है और रक्तनली में खून के छोटे-छोटे थक्के जमते हैं। यह मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाते हैं, मस्तिष्क रोग पैदा करते हैं। इससे अचेत होने, मस्तिष्क में स्त्राव होने की संभावना रहती है। यह खून के छोटे-छोटे थक्के हृदय को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, हृदयाघात, पंपिंग की गति धीमी कर सकते हैं। किडनी में जाने पर किडनी फेल हो सकती है। इनका मतलब कोरोना का वायरस रोग पैदा करने का स्वरूप (म्युटेशन) बदलता है। यह वायरस शरीर में जाकर एंटीबॉडी पैदा करता है और वह एंटीबॉडी जीवन पर्यन्त शरीर में पड़ी रहती है।
दुबारा हमला कर सकता है कोरोना का वायरस

डॉ. रावल ने कहा कि भविष्य में कोरोना वायरस का दूसरा म्युटेशन शरीर में आता है तो यह एंटीबॉडिज उसको पहचान पाएगी या नहीं, यह कहा नहीं जा सकता। नया म्युटेशन आएगा, वायरस शरीर में प्रवेश करेगा तो एंटीबॉडी उसे पहचान नहीं सकेगी, रोगी की रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होगी, उसकी उम्र बढ़ेगी, कोई भी नए रोग उम्र के साथ होंगे। यानी मधुमेह, रक्तचाप होने पर कोरोना का वायरस दुबारा हमला कर सकता है। हाल ही चीन के वुहान में नए मरीज आ रहे हैं, जो पहले कोरोना से संक्रमित थे, उपचार के बाद ठीक हो गए, उन्हें दुबारा का संक्रमण हुआ है।
चिकित्सकों के पास शोध वाला सबूत नहीं

उन्होंने कहा कि चिकित्सक भी फिलहाल सभी प्रकार की जानकारी एकत्र कर रहे हैं, किसी के पास शोध वाला सबूत नहीं है। इसलिए कई चिकित्सकों का मानना है कि आने वाले समय में कोरोना के बाद का समय आएगा, उसमें कोरोना के साथ ही जीवन यापन करना है। कोरोना वायरस किसी भी म्युटेशन में आ सकता है। इसलिए भविष्य में मास्क पहनना है, छह फीट का अंतर रखना है, कफ पर नियंत्रण रखना है, साबुन से 20 सैकंड तक हाथ धोने हैं, जरूरतों को कम कर जितना संभव हो उतना घर में रहना है तभी कोरोना से बचना संभव है।
कोरोना की दो जटिलताएं

उन्होंने कहा कि कोरोना की दो ही जटिलताएं हो रही हैं। वर्तमान समय में जो रोगी हैंं, युवा रोगी हैं और उन्हें अन्य कोई रोग नहीं है, वे तो बच जाते हैं। उन्हें अधिक आक्सीजन देकर वेन्टीलेटर पर रखकर लक्षण वाले रोगी को दी जाने वाली दवा देकर बचाना संभव है। जिनको मधुमेह, रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर की दवा चल रही है, स्टीरॉइड की गोलियां चल रही है उनको जटिलताएं बढ़ जाती है।
उन्होंने कहा कि जिनकी उम्र अधिक है, रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होने के बावजूद जटिलताओं के कारण उन्हें ऑक्सीजन देनी पड़ती है या वेन्टीलेटर पर रखना पड़ता है। वेन्टीलेटर पर रहने वाले मरीज के लिए भी कोरोना की कोई दवाई नहीं है, केवल लक्षण के आधार पर दवाई दी जा रही है। फिर भी जिनकी उम्र अधिक है, रोग प्रतिरोधक शक्ति कम है, उनकी मृत्यु हो रही है।
कोरोना संक्रमण का स्वरूप अलग हो सकता है

डॉ. रावल ने कहा कि जो कोरोना रोगी ठीक हो चुके हैं उनको दुबारा कोरोना का संक्रमण होने की संभावना है लेकिन उसका स्वरूप अलग हो सकता है। एक बार फेफड़े में तो अगली बार आंतों में, मस्तिष्क में भी हो सकता है। इसलिए आने वाले समय में कोरोना के रोगों के साथ ही जीना होगा। कोरोना अपना स्वरूप बदल सकता है, किसी दूसरे स्वरूप में भी आ सकता है लेकिन यह एक तर्क चल रहा है।
भविष्य में कोरोना के बीच रहने की संभावना

कोई चिकित्सक निश्चित तौर पर नहीं कह सकता, कोई क्लिनिकल ट्रायल नहीं हुआ है, सब एक-दूसरे की बातें सुनकर अपनी बात जोड़कर बोलते हैं। वायरस के रोगों यानी इन्फ्लूएंजियम, पीलिया, स्वाइन फ्लू, डेंगू और बेक्टीरिया से होने वाले रोगों यानी न्युमोनिया, टीबी, लीवर रोग आदि के बीच ही फिलहाल लोग रह रहे हैं और जी रहे हैं। ऐसे ही भविष्य में कोरोना के साथ और बीच में रहने की संभावना है।
बचाव ही कोरोना का उपाय

डॉ. रावल ने कहा कि अब तक जो समय घर के बाहर व्यतीत करते थे, वही समय अब घर में रहना है, मस्तिष्क को शांत रखना है, कोरोना से मौतों के आंकड़ों से डरना नहीं है, मस्तिष्क को मजबूत रखकर रोग प्रतिरोधक शक्ति को बनाकर और बढ़ाकर जीना है। मास्क पहनना है, छह फीट का अंतर रखना है, कफ पर नियंत्रण रखना है, साबुन से 20 सैकंड तक हाथ धोने हैं, सेनेटाइजर का उपयोग करना, जरूरतों को कम कर जितना संभव हो उतना घर में रहना है, भीड़ वाली जगहों यानी सिनेमाघर, मॉल, भविष्य में मंदिरों मेंं नहीं जाना, हो सके उतना स्वयं का समय मन को शांत रखने में लगाना और घर में बीताना है तभी कोरोना से बचना संभव है और यही कोरोना से बचाव के लिए उपाय है। यदि कोरोना को पकडऩे नहीं जाएंगे, तो कोरोना घर में नहीं घुसेगा, लक्ष्मण रेखा का पालन करना है। घर के बाहर पैर नहीं रखेंगे तो घर में कोरोना आने की कोई संभावना नहीं है।
कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करते हुए काम करें

लॉक डाउन दिपावली तक और स्कूल अक्टूबर तक खुलने की कोई संभावना नहीं है, ई-क्लासेज संचालित की जाएगी। जहां संभव नहीं है यानी प्रेस वाले, पुलिस वाले, चिकित्सक और जिनका काम लोगों के साथ है वे बाजार में घूमेंगे। जिनता संभव हो, घर में बैठकर इलेक्ट्रानिक माध्यम से काम करना पड़ेगा। फील्ड में काम करने वालों को कफ नियंत्रित रखना, कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करते हुए काम करना होगा। मेडिकल री-प्रजेंटेटिव मोबाइल फोन पर चिकित्सकों को याद दिला सकते हैं, टीवी-फ्रिज बेचने वाले प्रतिनिधियों को ई-मीडिया से काम करना पड़ेगा, संभव हो तो किसी से आमने-सामने मिलने की संभावना कम रखनी है।

ट्रेंडिंग वीडियो