‘सहजीवन’ कर रही संवद्र्धन कच्छ जिले में ऊंटों के संवद्र्धन के लिए स्वैच्छिक संस्था ‘सहजीवन’ प्रयत्नशील है। संस्था के संयुक्त समन्वयक रमेशभाई भट्टी जिले में ऊंट संवद्र्धन और ऊंटपालकों के लिए सरकार के साथ समन्वय कर रहे हैं। ऊंट उछेरक मालधारी संगठन के अध्यक्ष भीखाभाई रबारी भी जिले में ऊंट संवद्र्धन के लिए कार्यरत हैं। कच्छ जिले में वर्तमान में ‘खाराई ऊंट’ समेत सभी प्रकार के ऊंटों की संख्या 5 हजार है।
कच्छ जिले में तेजी से बढ़ रहे औद्योगिकीकरण के कारण ऊंटों और ऊंटपालकों पर खतरा मंडराने लगा है। समुद्र में टापुओं पर जाने के रास्ते बंद होने लगे हैं। समुद्र किनारे और समुद्र के भीतर बने टापुओं पर मेन्ग्रोव के पेड़ों को औद्योगिक कंपनियों की ओर से नष्ट किया जाने लगा है।
भचाऊ-सूरजबारी क्षेत्र में बंदरगाह की औद्योगिक गति बढऩे के कारण मेन्ग्रोव के पेड़ घटने लगे हैं। अबडासा-लखपत में सीमेंट उद्योगों के कारण ऊंट का भोजन और आवागमन सीमित हो रहा है।
औद्योगिकीकरण बन रहा संकट औषधीय गुणों से भरपूर माना जाने वाला ऊंटनी का दूध काफी पौष्टिक और लाभकारक है। इसका प्रमाण ऊंटपालक वर्ग पर दिखाई देता है। पशुपालक समुदाय के लोगों के ऊंटनी के दूध और उसकी छाछ का सेवन करने के कारण सुंदर, लंबे और हष्ट-पुष्ट दिखाई देते हैं। बारह महीनों अलग-अलग मौसम में रहने के बावजूद उनके चेहरे की त्वचा चमकदार दिखाई देती है।
– वलमजी हुंबल, चेयरमैन, कच्छ जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ (सरहद डेयरी) सह उपाध्यक्ष, अमूल