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समुद्र में आसानी से तैरता भी है कच्छ का ‘खाराई ऊंट’

locationअहमदाबादPublished: Jan 27, 2021 11:51:11 pm

Submitted by:

Rajesh Bhatnagar

बंदरगाह की औद्योगिक गति से संकट में खास प्रजाति

समुद्र में आसानी से तैरता भी है कच्छ का ‘खाराई ऊंट’

नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जामनगर के शाही परिवार के जामसाहब की ओर से भेंट पगड़ी पहनी।,नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जामनगर के शाही परिवार के जामसाहब की ओर से भेंट पगड़ी पहनी।,समुद्र में आसानी से तैरता भी है कच्छ का ‘खाराई ऊंट’

रमेश आहिर

भुज. गुजरात के कच्छ जिले में ऐसे ऊंट पाए जाते हैं जो समुद्र के गहरे और खारे पानी में तैर सकते हैं। इन ऊटों की प्रजाति को प्रकृति का करिश्मा माना जाता है क्योंकि देश में ऊंट कहीं भी तैयते नहीं देखे जाते हैं। ऊंटों को समुद्र के खारे पानी में तैरने के कारण स्थानीय भाषा में इन्हें ‘खाराई ऊंट’ कहा जाता है। वर्तमान में इनकी संख्या करीब 1500 है।
समुद्र के पानी में तैरने और कहीं भी आने-जाने में सक्षम ऊंटों के लिए समुद्र के बीच टापुओं पर मिलने वाले मेन्ग्रोव पेड़ो के पत्ते इनका प्रिय भोजन माने हैं। इसी कारण यह ऊंट अपने भोजन के लिए समुद्र में तैरकर दूर बने टापुओं पर महीनों तक रहते हैं। कच्छ जिले में अबडासा, लखपत, मुन्द्रा तहसीलों के अलावा भचाऊ-सूरजबारी क्षेत्र में समुद्र किनारे पर ऊंटपालकों (मालधारियों) की बस्ती है।
‘सहजीवन’ कर रही संवद्र्धन

कच्छ जिले में ऊंटों के संवद्र्धन के लिए स्वैच्छिक संस्था ‘सहजीवन’ प्रयत्नशील है। संस्था के संयुक्त समन्वयक रमेशभाई भट्टी जिले में ऊंट संवद्र्धन और ऊंटपालकों के लिए सरकार के साथ समन्वय कर रहे हैं। ऊंट उछेरक मालधारी संगठन के अध्यक्ष भीखाभाई रबारी भी जिले में ऊंट संवद्र्धन के लिए कार्यरत हैं। कच्छ जिले में वर्तमान में ‘खाराई ऊंट’ समेत सभी प्रकार के ऊंटों की संख्या 5 हजार है।
कच्छ जिले में तेजी से बढ़ रहे औद्योगिकीकरण के कारण ऊंटों और ऊंटपालकों पर खतरा मंडराने लगा है। समुद्र में टापुओं पर जाने के रास्ते बंद होने लगे हैं। समुद्र किनारे और समुद्र के भीतर बने टापुओं पर मेन्ग्रोव के पेड़ों को औद्योगिक कंपनियों की ओर से नष्ट किया जाने लगा है।
भचाऊ-सूरजबारी क्षेत्र में बंदरगाह की औद्योगिक गति बढऩे के कारण मेन्ग्रोव के पेड़ घटने लगे हैं। अबडासा-लखपत में सीमेंट उद्योगों के कारण ऊंट का भोजन और आवागमन सीमित हो रहा है।
औद्योगिकीकरण बन रहा संकट

औषधीय गुणों से भरपूर माना जाने वाला ऊंटनी का दूध काफी पौष्टिक और लाभकारक है। इसका प्रमाण ऊंटपालक वर्ग पर दिखाई देता है। पशुपालक समुदाय के लोगों के ऊंटनी के दूध और उसकी छाछ का सेवन करने के कारण सुंदर, लंबे और हष्ट-पुष्ट दिखाई देते हैं। बारह महीनों अलग-अलग मौसम में रहने के बावजूद उनके चेहरे की त्वचा चमकदार दिखाई देती है।
– वलमजी हुंबल, चेयरमैन, कच्छ जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ (सरहद डेयरी) सह उपाध्यक्ष, अमूल
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