Ahmedabad पतंगबाजी से गुलजार होगा गुजरात, राजस्थान सहित भारत के कई हिस्सों में अलग अलग समय पर होती है पतंगबाजी
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Ahmedabad पतंगबाजी से गुलजार होगा गुजरात, राजस्थान सहित भारत के कई हिस्सों में अलग अलग समय पर होती है पतंगबाजी
उपेन्द्र शर्मा अहमदाबाद. उत्सव भारतीयों को अतिप्रिय है और उन्हें कितने उत्साह के साथ मनाया जा सकता है यह कोई गुजरातियों से सीखे। मकर संक्रान्ति से 10 दिन पहले से यहां अहमदाबाद में अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव मनाया जा रहा है। जगह भी ऐसी है कि पतंग उड़ाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं पड़ती क्योंकि खूब हवा चलती-बहती है। जगह है साबरमती नदी का तट उर्फ रिवरफ्रंट…..कभी यहां स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पतंग उडाते थे तब वे गुजरात के मुख्यमन्त्री थे। उन्होने इस फेस्टिवल को नई उंचाईयां दी, आज हाल यह है कि इसकी बुकिंग 5 साल से एडवांस चल रही है और दुनिया के 60 देशों से पतंगबाज यहां अपनी कला दिखाने आते हैं। 100 से अधिक प्रकार की पतंग यहां आसमां की सैर करती हैं। यहां साडे या मान्झे के बजाए नायलोन के मोटे रस्से से उडाई जाती है। यह फेस्टिवल एक मुख्यमंत्री के प्रयासों से अब गुजरात की पहचान बन गया है।
जयपुर और अहमदाबाद में रहने वाले लोग पतंगबाज़ी से बचपन से वाबस्ता होते हैं। पतंगबाज़ी के दौरान छतों पर नैना चार होने के खूब अवसर होते हैं। ऐसे में युवाओं में इसका खासा शौक देखने को मिलता है।
राजस्थान में जयपुर में संक्रांति को, अजमेर में रक्षा बन्धन पर, बीकानेर में आखातीज पर और मेवाड़ में गर्मियों की छुट्टियों में पतंगबाजी होती है लेकिन कहीं पर भी ऐसी भव्य पतंगबाज़ी नहीं होती जैसी अहमदाबाद में होती है। पता नहीं क्यों लेकिन राजस्थान में इतनी सुदीर्घ परम्परा होने के बावजूद अब तक उसे वो मुकाम दिलाा नहीं पाए, जैसा गुजरात ने दिलाया।
भारत के कुछ इलाकों जैसे उत्तर प्रदेश में दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा पर और पंजाब में बसंत पंचमी (जनवरी-फरवरी) के मौके पर पतंगे उडाई जाती हैं। ठीक उन्हीं दिनों पाकिस्तान के लाहोर में भी पतंग आसमान में होती है, हालांकि वहां के लोगों को बसन्त पन्चमी के सांस्कृतिक धार्मिक संदर्भ से कोई लेना देना नहीं है। इधर अमृतसर और उधर लाहोर। बीच के 47 किलोमीटर रास्ते पर दोनों तरफ के पंजाबी-दोआबी खेतों में सरसों के पीले पीले फूलों की बहार होती है….कभी पतंग इधर गिरे कभी उधर…..कभी लाहोर भारत में ही था। कहते हैं यह शहर भगवान श्रीराम के पुत्र लव द्वारा बसाया हुआ था। दूसरे पुत्र कुश ने पास ही कसूर बसाया था। तो भारतीय संस्कृति के प्रभाव के चलते बसंत पंचमी की वो परमपरा आज भी वहां विद्यमान है।
दुख की बात है कि पहले टीवी फिऱ वीडियो गेम्स और अब मोबाइल और कोचिंग क्लासेज़ ने हमारे बच्चों, किशोरों, युवाओं को पतंगों से दूर कर दिया है। पतंगबाजी के दौरान छत पर धूप सेंकने को मिलती है। मान्झे से अंगुलियां जख्मी भी होती हैं। ऐसे में बच्चों के लिए पतंगबाजी करना स्वास्थ्य की बेहतरी के लिहाज से भी लाभदायक होता है।तो दोस्तो आप भी उठाइए इस उत्तरायण पतंगबाजी का लुत्फ और कहें काइपो छे…।
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