महिलाओं को भाए कुदरती वस्तुओं से बने ‘साबुन’
अहमदाबादPublished: Nov 29, 2018 11:01:06 pm
केवी ओएनजीसी चांदखेड़ा की छात्राओं ने नीबू, नमक, सिरका, एलोविरा, तुलसी, पुदीना से बनाए चेहरे, हाथ एवं बर्तन धोने के साबुन
महिलाओं को भाए कुदरती वस्तुओं से बने ‘साबुन’
अहमदाबाद. केन्द्रीय विद्यालय ओएनजीसी चांदखेड़ा की छात्राओं की ओर से बनाए गए कुदरती वस्तुओं वाले साबुन चांदखेड़ा-मोटेरा इलाके की महिलाओं को काफी पसंद आए हैं। नीबू, नमक, सिरका, एलोविरा, तुलसी, पुदीना, नारंगी, अनार सरीखी घर एवं आसपास आसानी से उपलब्ध होने वाली कुदरती वस्तुओं से बनाए गए इन ‘साबुन’ को महिलाएं अपनाने के लिए भी तैयार हैं, यदि ये बाजार में आसानी से उपलब्ध हो सकें।
यह दावा केन्द्रीय विद्यालय ओएनजीसी की 11वीं साइंस की छात्राओं एनी और अनुष्का झा तथा निधि शाह और रिया मीणा ने किया है। इन छात्राओं ने राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के प्रोजेक्ट के लिए शिक्षिका भावना खन्ना के मार्गदर्शन से अलग-अलग साबुन तैयार किए हैं। शिक्षिका भावना खन्ना बताती हैं कि चार छात्राओं के इन दोनों ही प्रोजेक्टों को केन्द्रीय विद्यालय के राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के लिए चयनित भी किया गया है। चारों छात्राएं अपने इन प्रोजेक्ट को केवी के कानपुर में होने जा रहे राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में अहमदाबाद रीजन की ओर से प्रस्तुत करेंगीं। चारों एक दिसंबर को कानपुर जाएंगीं।
६३ प्रतिशत गृहिणियां साबुन अपनाने को तैयार
छात्रा एनी और अनुष्का झा बताती हैं कि उन्होंने दो प्रकार के साबुन तैयार किए हैं। एक है बर्तन धोने का साबुन जबकि दूसरा हाथ धोने वाला। इसे बनाकर जब उन्होंने अपनी सोसायटी की महिलाओं को उपयोग करने के लिए दिया तो सभी ने इसे पसंद किया। बाजार में आसानी से उपलब्ध होने पर ६३.६ प्रतिशत महिलाओं ने इसे अपनाने की तैयारी भी दर्शाई।
एनी बताती हैं कि मौजूदा समय में जितने भी बर्तन धोने के या फिर हाथ होने के साबुन उपलब्ध हैं। उसमें विभिन्न प्रकार के कैमिकल (रसायन) का उपयोग होता है, जो हाथों व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। ऐसे कैमिकल से पर्यावरण को भी नुकसान होता है। इनकी जगह उन्होंने कुदरती वस्तुओं जैसे नीम, नीबू, सिरका का उपयोग करके बर्तन का साबुन बनाया है, जबकि नीम, तुलसी, पुदीना, हल्दी, नीबू, मुलेठी पाउडर और मुल्तानी मिट्टी का उपयोग करके हाथ होने का साबुन तैयार किया है। इससे बनाए साबुनों से न सिर्फ बर्तन अच्छे साफ होते हैं, बल्कि उनमें खाने की दुर्गंध भी नहीं आती है। हाथों को भी नुकसान नहीं होता है।
दादी-नानी के नुस्खे आए काम
छात्रा निधि शाह और रिया मीणा ने कुदरती वस्तुओं का उपयोग करके चार प्रकार के नहाने वाले कॉस्मेटिक साबुन तैयार किए हैं। इसमें एक नीम और तुलसी से मिलाकर बनाया है, जबकि दूसरा एलोविरा-तुलसी से, तीसरा संतरा और चौथा अनार व चुकंदर का उपयोग करके तैयार किया है। इसके लिए उन्हें उनकी शिक्षिका भावना खन्ना का तो मार्गदर्शन मिला ही साथ ही दादी और नानी से भी खासी जानकारी मिली। छात्राएं बताती हैं कि उन्हें पता चला कि पहले के समय में ज्यादातर महिलाएं साबुन का उपयोग नहीं करती थीं। वह इन कुदरती वस्तुओं के उपयोग से खुद की त्वचा को स्वस्थ्य रखती थीं। यह बाजार में मौजूद कैमिकल युक्त त्वचा कैंसर और त्वचा एलर्जी को बढ़ावा देने वाले साबुनों से काफी बेहतर हैं। शतप्रतिशत प्राकृतिक हैं। छात्राओं का कहना है कि उन्होंने पाया कि महिलाओं में ६६ प्रतिशत को नहीं मालूम था कि कॉस्मेटिक में कौन से कैमिकल यूज होते हैं। जबकि ९८ प्रतिशत कैमिकल युक्त कॉस्मेटिक का उपयोग करती हैं।