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‘नदियों को बचाने के लिए दीर्घकालीन नीति जरूरी’

locationअहमदाबादPublished: Sep 22, 2017 03:51:27 am

ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने कहा कि नदियों को बचाने के लिए केंद्र सरकार नीति बनाए और कानून बनाकर इसे राज्यों में भी लागू करवाए। नदियों को बचाने के लिए कन्याकुमारी से हिमालय तक रैली फॉर रिवर्स अभियान पर निकले सद्गुरु ने यहां बुधवार को यह बात कही।

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अहमदाबाद।ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने कहा कि नदियों को बचाने के लिए केंद्र सरकार नीति बनाए और कानून बनाकर इसे राज्यों में भी लागू करवाए। नदियों को बचाने के लिए कन्याकुमारी से हिमालय तक रैली फॉर रिवर्स अभियान पर निकले सद्गुरु ने यहां बुधवार को यह बात कही। इसके बाद शाम को साबरमती के सामने सरदार ब्रिज के समीप इवेंट केंद्र पर समारोह आयोजित हुआ।

तमिलनाडु से शुरुआत के बाद केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व मुंबई होते हुए यहां पहुंचे सद्गुरु ने बुधवार दोपहर में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि नदी को बचाने के लिए व्यापक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने व नदियों के पुनर्जीवन पर लंबे समय से दीर्घकालीन नीति की आवश्यकता है। नदियों को बचाने के लिए एक मसौदा तैयार करके आगामी अक्टूबर महीने में भारत सरकार को मसौदे की सिफारिशें प्रस्तुत करेंगे।

कैनालों के बजाए पाइप से पानी पहुंचाना चाहिए

मसौदा तैयार करने के लिए मैग्सेसे अवार्ड विजेता राजस्थान के अलवर निवासी राजेंद्रसिंह व अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं से चर्चा की जाएगी। इन सिफारिशों के आधार पर कानून बनाकर राज्यों में भी लागू करवाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक से दूसरे स्थान पर कैनालों के जरिये पानी पहुंचाने के बजाय पाइप से पानी पहुंचाना चाहिए ताकि वाष्पीकरण कम से कम हो। विश्वविद्यालयों में प्राप्त ज्ञान का उपयोग फील्ड में किया जाना चाहिए।

पानी बचाने, नदियां प्रवाहित करने का संकल्प लें : सीएम

मुख्यमंत्री विजय रुपाणी नेें कहा कि साबरमती के तट से पानी बचाने व नदियां प्रवाहित करने का संकल्प लें। साबरमती के सामने सरदार ब्रिज के समीप इवेंट केंद्र पर बुधवार शाम को ईशा फाउंडेशन के रैली फॉर रिवर्स अभियान के तहत आयोजित समारोह में उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी की चिंता करें। उन्होंने कहा कि गुजरात ने हमेशा पानी का अभाव अनुभव किया है, सौराष्ट्र व राजकोट में पानी की हमेशा कमी रही है। पानी के अभाव में लाखों मवेशी पलायन करते और मानसून के बाद लौटते। सौराष्ट्र व कच्छ की बहिनें पानी के लिए मीलों तक भटकती थी, टैंकरों से पानी भरने के लिए लंबी कतारें लगती थीं, ट्रेनों में पानी आता था तब पता लगता था कि पानी का क्या महत्व है।

मेहमानों को गिलास भरकर पानी ना दें

शिक्षा मंत्री भूपेंद्रसिंह चुडासमा ने कहा कि मेहमानों को पूरा गिलास भरकर पानी ना दें, आधा ही दें अन्यथा दिनभर में बचने वाले ऐसे बेकार माने जाने वाले पानी की मात्रा बहुत अधिक हो सकती है। मितव्ययता से पानी का उपयोग करें। 16 वर्ष पहले नर्मदा पूरी सूखी थी, मोदी ने साबरमती में नर्मदा का पानी बहाया। राज्य में 16 वर्ष पहले कृषि उत्पादन 9 हजार करोड़ रुपए का था, अब बढक़र एक लाख 26 हजार करोड़ रुपए हो गया है। नदी को बचाने के लिए जन्म-मरण तिथि पर पौधे रोंपें।

टपक सिंचाई पद्धति अपनाने के कारण पद्मश्री से सम्मानित हुए बनासकांठा के किसान गेनाभाई पटेल ने कहा कि अध्ययनकाल से ही उन्हें पेड़ों से प्रेम था, उन्होंने गुजरात व राजस्थान में अनार के 3-4 करोड़ पौधे लगाए हैं। फिल्म कलाकार मनोज जोशी ने पानी को चौथा ऋण बताते हुए उसका मितव्ययता से उपयोग करने की अपील की। ईशा फाउंडेशन के संस्थापक व पद्म विभूषण से सम्मानित सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने भी विचार व्यक्त किए। उन्होंने व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने नदी के दोनों किनारों पर पौधारोपण करने, पानी की गुणवत्ता बढ़ाने, फसल से पेड़ आधारित कृषि के जरिये किसानों की आवक बढ़ाने, फल का उत्पादन बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन कम करने, मिट्टी के क्षरण को रोकने आदि के लिए एमओयू का आदान-प्रदान किया।

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