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मुस्लिम बेटियों को अ-आ से 11वीं तक ले आई जामी

locationअहमदाबादPublished: Jul 21, 2016 12:35:00 pm

Submitted by:

moolaram barme

प्रेरणा: सीमावर्ती क्षेत्र में संघर्ष कर पहले खुद पढ़ी और अब अन्य बालिकाओं को भी पढ़ा रही जामी

brought up to 11th Jami

brought up to 11th Jami

 मैं इकलौती बेटी थी। मां-बाप सामान्य। बेटी की पढ़ाई मतलब गुनाह। मेरे पिता ने ठान ली कि यह गुनाह तो वह करेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए। जमानेभर का दबाव। दुनियाभर के ताने और रिश्तेदारों का मुंह मोडऩा। हिकारत की नजरों के सामने मैं और मेरे पिता आंखें मिलाकर कहने लगे- पढ़ ही तो रही हूं… इसमें क्या बुरा है। आज मां-बाप दोनों का इंतकाल हो गया। मेरा कोई भाई-बहन नहीं है।
 मेरे संतान भी नहीं है, लेकिन मुझे एक बात का फक्र है कि मेरे गांव और क्षेत्र में कोई मुस्लिम बेटी नहीं है जो पढ़ी-लिखी ना हो। साक्षर और अब तो 11वीं तक पढऩे लगी है। यह है जामी का संकल्प, जो सुदूर रेगिस्तान के उस गांव में रहती है, जहां रोशनी बड़ी मुश्किल से पहुंची है। पिछले 21 साल से संघर्षरत जामी अब अपने क्षेत्र की तमाम बेटियों को विद्यालय तक खींच लाई है।
सेड़वा तहसील का कंडाणियों का तला। सरहद के कुछ दूर का गांव। चालीस साल पहले यहां एक बेटी के पढऩे का मन हुआ। पिता ने भी उसे पढ़ाने की ठानी। जिसने सुना, मानो तूफान आ गया। यह क्या.. बेटी पढ़ेगी। कई एेतराज। कितने ही सवाल और उन सवालों के बीच सामान्य किसान कुरबान (जामी का पिता) खड़ा हो गया। 
उसके एक ही बेटी थी और उसने सोच लिया कि इसे पढ़ाएगा और जामी भी इसके लिए तैयार हो गई। वह खुद पढ़कर 10वीं तक पहुंच गई। इसके बाद दूसरा प्रश्न खड़ा हुआ कि अब वह नौकरी करेगी? जामी फिर जमाने से लड़ी और शिक्षाकर्मी नियुक्त हो गई। फिर तो उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
 गांव में महिलाओं के बीच पहुंचकर एक विश्वास जगाने लगी कि वह पढ़ी है, क्या गुनाह हो गया? आप भी अपनी बेटी को पढ़ाने भेजो। उसकी जिंदगी सुधर जाएगी। यह विश्वास अभिभावकों में इतना गहरा उतर गया कि जामी ने जो सपना देखा था, वह साकार होता गया।
अब यहां सब बेटियां पढ़ती है

जामी रामावि कंडाणियों का तला सेड़वा में शिक्षाकर्मी नियुक्त है। 21 साल पहले उसने नौकरी शुरू की थी। 21 साल में इस विद्यालय से जुडे़ हुए पीरू का तला, शम्मों की ढाणी, शम्मावली, चिचड़ासर, बोडलिया, गंगासरा व वाधा इलाके में लगभर हर घर से बेटियां पढ़ रही है। जामी कहती है कि 35 से 40 की उम्र की कोई भी महिला नहीं है जो साक्षर नहीं हों। जो स्कूल नहीं आई, उसे उसने घर जाकर अक्षरज्ञान करवाया है।
दीनी तालीम के साथ दुनियावी सबक

यहां मदरसों में बेटियों को दीनी तालीम तो बचपन में दी जाती है, लेकिन दुनियावी तालीम के लिए मुश्किल से 5वीं तक पढ़ाई हो रही थी। जामी अब फक्र से कहती है कि 11वीं में मुस्लिम बेटियां पढ़ रही है। उसकी स्कूल में अध्ययरत 125 बालिकाओं में से 75 प्रतिशत मुस्लिम हैं। हर कक्षा में बेटियां पढ़ रही है।
अपना कुनबा बना लिया

जामी के माता-पिता का इंतकाल 2013 में हो गया। पति के साथ रह रही जामी कहती है कि उसके बेटियां नहीं है, लेकिन उसने अपना पूरा कुनबा बना लिया है। सारे क्षेत्र की बेटियों को उसने पढ़ाया है तो सारी उसकी कद्र करती हैं और वह उनके साथ एेसे रहती हैं जैसे सब अपनी हो।
हर गांव में एक जामी हो जाए

पहली बार मैंने जामी को देखा तो प्रभावित हो गई। वह इतना घुल-मिलकर पढ़ाती हैं कि पूरे क्षेत्र में कद्र है। वास्तव में उसने माहौल ही बदल दिया है। बड़ा संघर्ष किया है। हर गांव में एक जामी हो जाए तो मुस्लिम बेटियों की पढ़ाई की फिक्र ही नहीं रहे।
शमा खान, पूर्व प्रधान, चौहटन

सुकून है कि मकसद हासिल हुआ

बहुत मुश्किल थी। पढऩा भी किसी को स्वीकार नहीं था तो मैं तो पढ़ाने निकल पड़ी। जिन लोगों को एेतराज था उनका एेतबार भी जगाया। आज खेतों में दौड़ती, गाय दुहती, फसल काटती, पानी लाती और घर के काम में हाथ बंटाती बेटियां जब पढऩे-पढ़ाने की बात करती है तो सुकून होता है। मेरा मकसद हासिल हुआ। अब मैं अकेली नहीं पढ़ी हूं… मैंने हर घर की बेटी को पढ़ाई से जोड़ दिया है।
जामी, शिक्षाकर्मी, रामावि कंडाणियों का तला

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