इसमें बताया गया है कि खाराई प्रजाति के ऊंट केवल गुजरात राज्य में ही पाए जाते हैं। यह एकमात्र ऊंट की ऐसी प्रजाति है जो जमीन और समंदर के किनारे के दोहरे पर्यावरण में रह सकती है। मैंग्रोव के वृक्ष इस विशिष्ट जाति के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। यदि मैंग्रोव के वृक्षों का विनाश होगा तो इस प्रजाति के ऊंटों पर भी विलुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है।कैग रिपोर्ट में कहा गया कि फरवरी 2018 में कच्छ केमल ब्रीडर्स एसोसिएशन (केसीबीए) की ओर से गुजरात कोस्टल जोन मैनेजमेंट अथॉरिटी (जीसीजेडएमए) को शिकायत की गई थी कि नमक बनाने के लिए दिए पट्टे वालों की ओर से कच्छ जिले की भचाऊ तहसील, कच्छ के नानी चिराई और मोटी चिराई इलाकों में बड़े पैमाने पर मैंग्रोव को नष्ट किया गया है। इन लोगों ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में एक अपील भी की थी। इस पर एनजीटी ने 11 सितंबर 2019 को गुजरात के वन एवं पर्यावरण विभाग, जीसीजेडएमए और राजस्व विभाग को छह महीने में इन मैंग्रोव का पुन:स्थापना कराने का निर्देश दिया था। साथ ही मौके पर जाकर जांच करने, मैंग्रोव के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करने वाले अवरोध दूर करने, एक महीने में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की कीमत और पुन:स्थापन खर्च वसूलने व जिम्मेदारों पर कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया था। इस पर जीसीजेडएमए ने एक समिति गठित की। समिति ने स्थल पर जाकर विश्लेषण किया और जुलाई 2020 में रिपोर्ट दी। रिपोर्ट में सामने आया कि 9511 मीटर में पार (मेड़) बांधी गई थी, जिसके चलते 117 हेक्टेयर इलाके में मैंग्रोव नष्ट हो गए।
कैग की विश्लेषण रिपोर्ट में पता चला कि एनजीटी ने जुलाई 2020 में सिफारिश की थी कि जीसीजेडएमए को दीन दयाल पोर्ट ट्रस्ट (डीपीटी) एवं राजस्व विभाग को इन पार (मेड़) को दूर करने का दिशा-निर्देश देना चाहिए। लेकिन एनजीटी के निर्देश के 9 माह बाद भी कोई कदम नहीं उठाया गया। केसीबीए ने एनजीटी समक्ष फिर एक एक्जीक्यूटिव एप्लीकेशन दाखिल की जिसमें सितंबर 2020 में अथॉरिटी ने मैंग्रोव के पुन:स्थापन का कार्य जल्द करने के लिए वन एवं पर्यावरण विभाग, जीसीजेडएमए की संयुक्त समिति को देखरेख करने को कहा था। तीन माह में पालना रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंपने को कहा था, लेकिन एक साल बाद भी कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी। जीसीजेडएमए ने डीपीटी को नष्ट हुए कुल मैंग्रोव का तीन गुना मुआवजा वनीकरण के लिए वसूलने का निर्देश दिया था लेकिन इस पर भी कुछ हुआ हो वह मार्च 2022 तक रिकॉर्ड पर नहीं दिखा। ऐसे में इस प्रकार की उदासीनता खाराई ऊंट के अस्तित्व के लिए खतरनाक हो सकती है।