दुनिया की प्राचीन संस्कृतियों में, भारत ने गणित में अभिनव, व्यापक और बुनियादी योगदान दिया है। ईसा पूर्व आठवीं से छठी शताब्दी के शुलबासूत्र से लेकर 19वीं शताब्दी के शंकर वर्मा के सदरत्नमाला तक, भारतीय गणित में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य एवं माधव जैसे प्रसिद्ध नामों के साथ उपमहाद्वीप के लगभग हर हिस्से के कम-ज्ञात लेकिन प्रतिभाशाली विद्वानों की एक लंबी, निरंतर और संचयी बौद्धिक परंपरा रही है।
संख्यात्मक विधियों, ज्यामिति, बीजगणित, त्रिकोणमिति और एल्गोरिथ्म विधियों में अपनी प्रगति के माध्यम से, भारत ने आधुनिक गणित की कुछ नींवों में भई अहम योगदान दिया है।
बीसवीं शताब्दी में, यह योगदान नई नींव पर जारी रहा। एस रामानुजन को दुनिया के महान गणितज्ञों में माना जाता है, जबकि अन्य, जैसे कि श्यामदास मुखोपाध्याय, एस.एस. अभयंकर, के.एस. चंद्रशेखरन, राजचंद्र बोस, एस.एस. श्रीखंडे, हरीश-चंद्र और कई अन्य लोगों ने विभिन्न गणितीय विषयों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।