अद्वैत रावल बताते हैं कि ईडीआईआई से बिजनेस एन्टरप्रिन्योरशिप में एमबीए करते समय पड़े चंद्र ग्रहण को देखने के लिए जब टेलीस्कोप को लाया गया उस दौरान उसकी ऊंची कीमत, भारी वजन की जानकारी होने पर इसे बनाने का विचार आया, क्योंकि भारत में कोई इसे बनाता नहीं है। चीन में ही ज्यादातर बनकर आते हैं।
अद्वैत रावल बताते हैं कि वे एक पॉकेट टेलीस्कोप भी बना रहे हैं। जिसे १५० रुपए में उपलब्ध कराने का विचार है, ताकि लोग स्कूली बच्चों को उनके जन्मदिन पर चॉकलेट भेंट करने की जगह टेलीस्कोप गिफ्ट करें। टेलीस्कोप में 11 प्रोडक्ट हैं। आगामी कुछ महीनों में ही सभी प्रकार के टेलीस्कोप को बनाएंगे, जिसकी कीमत बाजार में मिलने वाले टेलीस्कोप की तुलना में काफी कम होगी।
रावल बताते हैं कि पीडीपीयू, सौराष्ट्र विवि, गुजरात विद्यापीठ, पीआरएल, आनंद निकेतन स्कूल में दो, डीपीएस गांधीनगर एक, पोद्दार इंटरनेशनल स्कूल चांदखेड़ा, कड़ी सर्व विश्वविद्यालय, सेंट जेवियर्स स्कूल गांधीनगर में उनके टेलीस्कोप का उपयोग किया जा रहा है।
नो योर स्काई की ओर से बनाए गए केवाईएस ६.३ टेलीस्कोप को बीते कुछ महीनों से उपयोग किया जा रहा है। इसमें ६.३ इंच का मिरर है। समर वर्कशॉप, टीचर ट्रेनिंग में ये काफी मददरूप है। इसकी गुणवत्ता बेहतरीन है। सुरक्षा भी अधिक है।
-डॉ.प्रसन्न गांधी, डिपार्टमेंट ऑफ लाइफ लोंग एजूकेशन, गुजरात विद्यापीठ
स्कूलों में सातवीं कक्षा से ही ब्रह्मांड, ग्रह, तारे, सौरमंडल को पढ़ाया जाता है। इस टेलीस्कोप की मदद से विद्यार्थी इन ग्रहों, तारों, सौरमंडल को देखकर उसके बारे में जान सकेंगे। कीमत और वजन काफी कम होने से गुणवत्ता बेहतर होने से स्कूल-कॉलेज इसे खरीद कर अपने बच्चों को दिखा सकते हैं।