अदालत की अवमानना अधिनियम में हुआ संशोधन
उन्होंने जांच और मुकदमे के दौरान अदालत की अवमानना को उन्होंने दो भागों-1971 से पहले और 1971 के बाद- में देखने को कहा। अदालत की अवमानना अधिनियम, 1958 के तहत किसी भी मामले की जांच शुरु होने के बाद से मीडिया के खिलाफ अवमानना का मामला बनता है। इसके लिए उन्होंने 1961 के साहिवाल व 1969 के गोपालन से जुड़े आपराधिक मामले और 1970 के पश्चिम बंगाल से जुडे एक सिविल मामले का हवाला दिया।
उन्होंने कहा कि इसके बाद वर्ष 1971 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया। इसके तहत आरोपपत्र पेश किए जाने तक जांच को लेकर मीडिया मामला प्रकाशित कर सकता है। इस तरह संसद का 1958 के अधिनियम को संशोधित कर 1971 मे संसोधित किया गया।
उधर भारतीय विधि आयोग (लॉ कमिशन) की 200वीं रिपोर्ट की सिफारिश में यह कहा गया कि लंबित मामला किसी भी प्रकरण में आरोपपत्र की बजाय गिरफ्तारी से माना जाना चाहिए, लेकिन अब जबकि इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया गया है, इसलिए हमें अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 के आधार पर चलना होगा।
उन्होंने जांच और मुकदमे के दौरान अदालत की अवमानना को उन्होंने दो भागों-1971 से पहले और 1971 के बाद- में देखने को कहा। अदालत की अवमानना अधिनियम, 1958 के तहत किसी भी मामले की जांच शुरु होने के बाद से मीडिया के खिलाफ अवमानना का मामला बनता है। इसके लिए उन्होंने 1961 के साहिवाल व 1969 के गोपालन से जुड़े आपराधिक मामले और 1970 के पश्चिम बंगाल से जुडे एक सिविल मामले का हवाला दिया।
उन्होंने कहा कि इसके बाद वर्ष 1971 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया। इसके तहत आरोपपत्र पेश किए जाने तक जांच को लेकर मीडिया मामला प्रकाशित कर सकता है। इस तरह संसद का 1958 के अधिनियम को संशोधित कर 1971 मे संसोधित किया गया।
उधर भारतीय विधि आयोग (लॉ कमिशन) की 200वीं रिपोर्ट की सिफारिश में यह कहा गया कि लंबित मामला किसी भी प्रकरण में आरोपपत्र की बजाय गिरफ्तारी से माना जाना चाहिए, लेकिन अब जबकि इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया गया है, इसलिए हमें अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 के आधार पर चलना होगा।
अमरीका में प्रेस पर कोई प्रतिबंध नहीं उन्होंने कहा कि अमरीका में अदालतों व मामलों की जांच को लेकर प्रेस पर किसी तरह का नियंत्रण नहीं है। मीडिया रिपोर्टिंग में किसी तरह का प्रतिबंध नहंीं है। हालांकि वहां पर फिर से ट्रायल या फिर मामले के ट्रांसफर का प्रावधान है। वहीं इंग्लैण्ड की अदालतों में मीडिया रिपोर्टिग पर कुछ हद तक प्रतिबंध का प्रावधान है। कनाडा में भी कुछ हद तक मीडिया रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि यदि अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में देखा जाए तो पता चलेगा कि सभी मुकदमे को आम लोगों के लिए सार्वजनिक होना चाहिए। मदरी कन्वेंशन में भी यह कहा गया कि प्रेस की स्वतंत्रता काफी अहम है।
इस अवसर पर गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर. सुभाष रेड्डी, ओडिशा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के. एस. झवेरी, गुजरात उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश अनंत एस. दवे, अन्य न्यायाधीशगण, सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज सी. के. ठक्कर, महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी, प्रलीन पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष सुरेश एन. शेलत, ट्रस्ट के सदस्यगण भास्कर तन्ना व निरूपम नानावटी, अतिरिक्त महाधिवक्ता प्रकाश के. जानी, लोक अभियोजक मनीषा लव कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता, वैभवी नानावटी, हृदय बुच, मितुल शेलत, दीपेन देसाई, छोटू भाई गोगदा व अन्य उपस्थित थे।
सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि यदि अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में देखा जाए तो पता चलेगा कि सभी मुकदमे को आम लोगों के लिए सार्वजनिक होना चाहिए। मदरी कन्वेंशन में भी यह कहा गया कि प्रेस की स्वतंत्रता काफी अहम है।
इस अवसर पर गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर. सुभाष रेड्डी, ओडिशा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के. एस. झवेरी, गुजरात उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश अनंत एस. दवे, अन्य न्यायाधीशगण, सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज सी. के. ठक्कर, महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी, प्रलीन पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष सुरेश एन. शेलत, ट्रस्ट के सदस्यगण भास्कर तन्ना व निरूपम नानावटी, अतिरिक्त महाधिवक्ता प्रकाश के. जानी, लोक अभियोजक मनीषा लव कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता, वैभवी नानावटी, हृदय बुच, मितुल शेलत, दीपेन देसाई, छोटू भाई गोगदा व अन्य उपस्थित थे।