भले ही अमर भाई अपने पिता की तरह ही लारी पर फल बेचने का काम करते हैं लेकिन उनका कहना है कि इन परिस्थिति में भी इन शवों का अंतिम संस्कार करना एक नेक काम है। वे कहते हैं कि लावारिस शवों की ओर कोई देखता तक नहीं है। ऐसेे में शवों के अंतिम संस्कार करने पर वे अपने आपको संतुष्ट महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि उनके पिता हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई को उनके धर्म के हिसाब से अंतिम संस्कार करते रहे।