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छुट्टी के दिन दो लाख से ज्यादा भक्तों ने किए महाकाली माता के दर्शन

locationअहमदाबादPublished: Jul 04, 2022 01:01:11 am

Submitted by:

Gyan Prakash Sharma

यात्राधाम पावागढ़ स्थित महाकाली माताजी मंदिर में भक्तों की भीड़

छुट्टी के दिन दो लाख से ज्यादा भक्तों ने किए महाकाली माता के दर्शन

छुट्टी के दिन दो लाख से ज्यादा भक्तों ने किए महाकाली माता के दर्शन

दाहोद. पंचमहाल जिले के पवित्र यात्राधाम पावागढ़ स्थित महाकाली माताजी के धाम में रविवार को सुबह के समय से ही माता के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
सुबह के समय से ही यहां पर पावागढ़ की तलहटी में स्थित चांपानेर से लेकर पहाड़ पर माताजी के मंदिर तक श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई। सभी भक्तों की बस एक ही इच्छा थी कि वे कितनी जल्दी मां काली के दर्शन का लाभ ले पाएंगे। 500 वर्ष बाद महाकाली माताजी के मंदिर शिखर पर लहराती हुई ध्वजा को देखकर श्रद्धालु उनके चरणों में शीश झुकाने के लिए अपनी बारी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
हाल ही में यात्राधाम पावागढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाली माताजी के मंदिर के शिखर पर ध्वजा चढ़ाकर देश और दुनिया भर में बसे हुए मां काली के भक्तों की इच्छा पूरी कर दी है। अवकाश का दिन होने की वजह से यहां पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। इसकी वजह से सुबह से शाम तक यहां पर करीब दो लाख से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने महाकाली माताजी के दर्शन किए।
‘चार अवस्थाओं से होकर गुजरते हैं आध्यात्मिक साधक’


हिम्मतनगर. आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की ओर से आयोजित प्रथम संभागीय सेमिनार के अवसर पर आनन्द मार्ग के केंद्रीय धर्म प्रचार सचिव आचार्य सत्यश्रयानंद अवधूत ने “साधना की चार अवस्थाएं” विषय पर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक साधना में मानवीय प्रगति एवं प्रत्याहार योग के चार चरण हैं यतमान, व्यतिरेक, एकेन्द्रिय एवं वशीकार। एक साधक को क्रम से इन चार अवस्थाओं से गुजरते हुए आगे बढऩा होता है। प्रथम अवस्था अर्थात यतमान में मानसिक वृत्तियॉ चित्त की ओर उन्मुख होती है। साधना के इस प्रयास में नकारात्मक प्रभावों या वृतियों को नियंत्रित करने का प्रयास होता है। साधक इनके खराब वृतियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए इन पर विजय पाने की चेष्टा करता है और वृत्ति प्रवाह से अपने को हटा लेने का सतत प्रयास करता है। दूसरी अवस्था व्यतिरेक की है। व्यतिरेक में साधक की वृत्तियां मन के चित्त से अहम तत्व की और उन्मुख होती है। इसमें कभी प्रत्याहार होता है, कभी नहीं होता।
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