हिम्मतनगर. आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की ओर से आयोजित प्रथम संभागीय सेमिनार के अवसर पर आनन्द मार्ग के केंद्रीय धर्म प्रचार सचिव आचार्य सत्यश्रयानंद अवधूत ने “साधना की चार अवस्थाएं” विषय पर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक साधना में मानवीय प्रगति एवं प्रत्याहार योग के चार चरण हैं यतमान, व्यतिरेक, एकेन्द्रिय एवं वशीकार। एक साधक को क्रम से इन चार अवस्थाओं से गुजरते हुए आगे बढऩा होता है। प्रथम अवस्था अर्थात यतमान में मानसिक वृत्तियॉ चित्त की ओर उन्मुख होती है। साधना के इस प्रयास में नकारात्मक प्रभावों या वृतियों को नियंत्रित करने का प्रयास होता है। साधक इनके खराब वृतियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए इन पर विजय पाने की चेष्टा करता है और वृत्ति प्रवाह से अपने को हटा लेने का सतत प्रयास करता है। दूसरी अवस्था व्यतिरेक की है। व्यतिरेक में साधक की वृत्तियां मन के चित्त से अहम तत्व की और उन्मुख होती है। इसमें कभी प्रत्याहार होता है, कभी नहीं होता।