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संगीत को नर्सरी से करें अनिवार्य : पंडित विश्वमोहन भट्ट

locationअहमदाबादPublished: Jan 12, 2018 10:47:16 pm

Submitted by:

Uday Kumar Patel

मोहन वीणा के प्रणेता व ग्रैमी पुरस्कार विजेता से पत्रिका की विशेष बातचीत

Pt Vishwa Mohan Bhatt
उदय पटेल
अहमदाबाद. अहमदाबाद शहर को यूं तो आर्थिक गतिविधियों वाले शहरों के रूप में जाना जाता है, लेकिन विश्वफलक पर आर्थिक समृद्धि वाले इस शहर में इन दिनों सप्तक संगीत समारोह जारी है, जो 13 दिनों तक चलता है। सप्तक में विश्व प्रसिद्ध संगीतज्ञ अपनी प्रस्तुति देते हैं। इन्ही में से भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान संज्ञीतज्ञ, मोहन वीणा के प्रणेता और संगीत के लिए विश्व का सबसे बड़ा ग्रैमी पुरस्कार प्राप्त कर चुके पंडित विश्वमोहन भट्ट भी शामिल हैं। पेश है उनसे पत्रिका के बातचीत के कुछ अंश।

सप्तक शास्त्रीय संगीत का बेहतरीन समारोह
जयपुर में रहने वाले भट्ट ने कहा कि वे सप्तक शास्त्रीय संगीत समारोह में वे लगातार 39 वर्षों से यहां आ रहे हैं जो एक विश्व रिकॉर्ड के समान है। सप्तक में देशभर के महान संगीतज्ञ हिस्सा लेते हैं। इसमें गायन, वादन और नृत्य तीनों विधाओं का संगम होता है। यहां के श्रोता काफी समझदार हैं। इसमें गायन, वादन और नृत्य तीनों विधाओं का संगम होता है। वे अपने पुत्र सलिल भट्ट के साथ पहली बार सप्तक में प्रस्तुति देंगे जो एक अलग तरह का अनुभव व रोमांच होगा।

शिक्षा में अनिवार्य विषय हो संगीत
67 वर्षीय पंडित भट्ट ने कहा कि संगीत को नर्सरी से ही स्कूलों में अनिवार्य विषय के रूप में करना चाहिए। इससे छोटे बच्चों में तभी से संस्कार आएंगे, इससे बहुत फर्क पड़ता है। कहते हैं कि जो संगीत करता है वह कभी अपराधी नहीं बन सकता। संगीत में वह शक्ति है कि आपका हृदय परिवर्तन कर दे, आपका हृदय पवित्र कर दे। संगीत आत्मा की शुद्धिकरण का भी कार्य करता है। संगीत और शास्त्रीय संगीत तो खासकर ऐसा है ही। स्कूल कॉलेज में शुरू से संगीत होना चाहिए।

सरकार के तरफ से होने चाहिए प्रयास
पद्मश्री व पद्मभूषण से सम्मानित भट्ट ने कहा कि शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार की ओर से भी प्रयास होने चाहिए। हालांकि सरकार की भी एक सीमा होती है। सरकार छोटी है और कला विशाल है। सरकार के पास बहुत सारे काम होते हैं, लेकिन वहीं संगीत से जुड़ी अकादमियों का भी सक्रिय होना बहुत जरूरी है। सही मायनों में संगीत के लिए काम करना चाहिए। संगीत नाटक अकादमी के साथ-साथ राज्य की अकादमी भी इसमे बेहतर भूमिका निभा सकती हैं। हालांकि इन अकादमियों के पास भी पास सीमित बजट व दायरा होता है, लेकिन ज्यादा बजट से संगीत का भला हो सकता है। 15-20-25 करोड़ एक अकादमी मिले तो यह संगीत के लिए बेहतर होगा।

जरूरतमंद कलाकारों की हो मदद
उन्होंने कहा कि इसके अलावा जरूरतमंद कलाकारों व बूढ़े कलाकारों की मदद की जानी चाहिए। वैसे बूढ़े कलाकारों को पेंशन दिया जाना चाहिए जो अपना गुजर-बसर कर सकने में सक्षम नहीं हैं।

सहयोग करें कॉर्पोरेट सेक्टर
संगीत नाटक अकादमी प्राप्त भट्ट ने बताया कि देश के बड़े-बड़े कॉर्पोरेट सेक्टर को शास्त्रीय संगीत को प्रचारित-प्रसारित करने में सहयोग करना चाहिए। सप्तक जैसी निस्वार्थ भाव से शास्त्रीय संगीत की सेवा में लगी संस्थाओं के लिए इन्हें मदद करनी चाहिए। इन्हें कोई लाभ नहीं होता है। ये संस्थाएं सिर्फ श्रोताओं के लिए करते हैं। खुद अपना पैसा लगाकर यह आयोजन करते हैं। यदि कॉरपोरेट सेक्टर थोड़ा ध्यान दें, जो इतना सारा पैसा क्रिकेट में लगाते हैं। कॉरपोरेट सेक्टर यदि थोड़ा पैसा भी इधर लगाएं तो शास्त्रीय संगीत लोकप्रिय बन सकेगा।

औद्योगिक घराना संगीत के परिवार को गोद लें
महान सितारवादक पंडित रविशंकर के शार्गिद रह चुके पंडित भट्ट ने कहा कि टाटा, बिड़ला, अंबानी जैसे बड़े औद्योगिक घरानों को शा ीय संगीत के जतन के लिए आगे आना चाहिए। इन्हें किसी एक कलाकार को गोद लेना चाहिए। गोद लेने का मतलब जिस तरह पहले राजा-महाराजा संगीतज्ञों की देखरेख करते थे, उन्हें राजदरबार में गाना होता था, उनके लिए हवेली होती थी। अब राजा-महाराजा रहे नहीं, अब आज के राजा-महाराजा यही हैं इसलिए इन औद्योगिक घराने को एक-एक संगीत के परिवार चुनना चाहिए, गोद ले लेना चाहिए और उन्हें जिंदगी भर की गारंटी लेनी चाहिए जो शास्त्रीय संगीत को युवाओं में प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

विदेशी श्रोताओं में ज्यादा रूचि
सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय से मानद डिग्री प्राप्त इस संज्ञीतज्ञ ने कहा कि कहा कि विदेशों में शास्त्रीय संगीत के श्रोता काफी ज्यादा हैं। हालिया बंगलादेश की राजधानी ढाका में हाल ही हुए शास्त्रीय संगीत के कंसर्ट के बारे में उन्होंने कहा कि वहां पर 43 हजार से ज्यादा लोग शास्त्रीय संगीत सुनने आए थे जो कि दुनिया में संभवत: सबसे बड़ा कंसर्ट रहा। बड़़ी बात है कि ढाका जैसे शहर में इतने सारे श्रोता एक जगह आए। यह अपने आप में एक बड़ी व अनूठी बात है।

स्पीकमैके कर रही है बढिय़ा काम
वेस्टर्न हवाईयन गिटार का सफल रूप से देशी वर्जन करने वाले पंडित भट्ट ने बतााया कि देश में युवाओं में शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहित करने के लिए स्पीकमैके नामक संस्था बढिय़ा काम कर रही है। कलाकार खुद युवाओं को प्रेरित करने के लिए इस स्कूल कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में जाते हैं और शास्त्रीय संगीत की जानकारी देते हैं। स्वैच्छिक सेवा प्रदान करते हैं। गुजरात में वे खुद इस संस्था के लिए काम कर रहे हैं। वे क न्सर्ट करेंगे। युवाओं में विचार करने के लिए स्पीकमैके ने बहुत अच्छा काम किया है। देश की संस्कृति को बचाने के लिए इसकी नितांत आवश्यकता है।
शास्त्रीय संगीत का अलग से चैनल हो
विश्व के 90 से ज्यादा देशों में अपनी प्रस्तुति दे चुके भट्ट ने गुजारिश की कि शास्त्रीय संगीत का अलग से 24 घंटे का चैनल होना चाहिए। कृषि के लिए अलग से चैनल है, सिनेमा और मनोरंजन के लिए अलग चैनल है वहीं जानवरों पर भी दो-तीन चैनल हैं, इसलिए शास्त्रीय संगीत का भी अलग से चैनल होना चाहिए।

राजस्थान में ज्यादा प्रचार-प्रसार नहीं
नेशनल तानसेन अवार्ड और राजस्थान रत्न पुरस्कार पा चुके भट्ट ने कहा कि राजस्थान की जड़ों में लोक-संगीत अधिक बसा हुआ है। जोधपुर , जैसलमेर में लंगा मांगनियार ने राजस्थानी लोक संगीत को अपनाया है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार उतना नहीं है जितना महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, गुजरात में मध्य प्रदेश में हैं। सरकार की तरफ से भी प्रयास होने चाहिए।

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