सोमनाथ के नारणभाई ने समुद्री सूक्ष्म जीव ‘शंख’ को दिया जीवनदान
जीवदया की भावना...

प्रभास पाटण. देश के प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ महादेव मंदिर के किनारे समुद्र के सूक्ष्म जीव ‘शंख’ को एक व्यापारी ने जीवनदान देकर जीवदया की भावना दिखाई।
गिर सोमनाथ जिले में प्रभास पाटण-सोमनाथ में सोमनाथ महादेव मंदिर के सामने स्थित सोमनाथ शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में नॉवल्टी की दुकान के संचालक नारणभाई वासण को नित्यक्रमानुसार समुद्र किनारे पर सैर के दौरान समुद्री जीव के साथ का एक ‘शंख’ मिला।
‘शंख’ को लेकर वह खुशी जताते हुए घर पहुंचा। वहां घर के वृद्ध ने उसको कहा कि ‘आ शंख मां हजी दरियाई जीव छे, आपणा थी आवुं पाप ना कराय, माटे दरिया मां फरी छोड़ी आव’। यानी इस शंख में अब भी समुद्री जीव है, अपने से ऐसा पाप नहीं किया जा सकता, इसलिए समुद्र में पुन: छोड़ आ।
नारण को वृद्ध की बात उचित लगी और शंख में जीव की पीड़ा-व्यथा समझकर तुरंत ही सोमनाथ के समुद्र किनारे पहुंचकर उसने बहते पानी में शंख को उसके जीव के साथ बहाकर जीवदया का जीवंत उदाहरण पेश किया।
ऐसा है शंख
सोमनाथ के समुद्र किनारे मिले शंख का फोटोग्राफ देखकर स्थानीय निवासी लक्ष्मण जेठवा का कहना है कि इसे पीला शंख कहा जाता है और शंख समुद्री जीव का घर होता है। कई शंखों में कांटे भी होते हैं इस कारण समुद्र के हिंसक जीवों की ओर से किए जाने वाले हमले के समय उस जीव को शंख के कांटे से सुरक्षित रखा जाता है और उस जीव की रक्षा होती है।
ऐसे शंख भारत के समुद्र किनारे के स्थल पर मिलते हैं। इनमें मुख के आगे की ओर जीव का थोड़ा-सा भाग दिखाई देता है, भीतर की ओर जीव की पूरी काया मुड़ी होती है। सामान्यतया ऐसे शंख की मांग नहीं होती और यह शंख मात्र 5 रुपए में बिकते हैं।
वर्षों पहले कवि प्रदीप का लिखित और गायक के तौर पर गाया गया फिल्मी गीत ‘पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द ना जाने कोई, कह ना सके तू अपनी कहानी तेरी भी क्या जिंदगानी रे...’ के समान नारणभाई ने छोटे-से समुद्री जीव को जीवनदान देकर बचाया।
शंख से मिलती है आजीविका
समुद्र किनारे रहने वाले लोगों के अनुसार शंख को जीव के साथ गर्म पानी में उबाला जाता है, इसके बाद जीव को बाहर निकालकर तेजाब से धोकर शंख को भारत के अनेक समुद्र किनारे पर लोग आजीविका प्राप्त करते हैं।
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