कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से अंडाशय इस कदर निष्क्रिय हो जाता है कि उपचार के बाद भी महिला मां नहीं बन पाती। राजस्थान के बाड़मेर जिले के पचपदरा निवासी २१ वर्षीय विवाहिता को वर्ष २०१५ में हॉजकिन लिम्फॉमा नामक कैंसर की पहचान हुई थी।
कैंसर के चौथे स्तर पर इस महिला को उपचार के लिए अहमदाबाद स्थित गुजरात कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट (जीसीआरआई) में लाया गया। जीसीआरआई के चिकित्सकों ने विवाहिता का उपचार कीमोथैरेपी से करने का निर्णय किया था और इससे पहले मरीज को अंडाशय के (ओवेरियन) टिश्यू को प्रिजर्व करने की सलाह दी गई ताकि वह उपचार के बाद मां बन सके।
उधर, कैंसर अस्पताल में चले उपचार के कारण पिछले दिनों युवती को कैंसर मुक्त घोषित कर दिया गया। अब इस युवती ने मां बनने की इच्छा जताई और पिछले सप्ताह वह फिर किडनी अस्पताल पहुंची। जहां उसने चिकित्सकों को अपनी इच्छा बताई।
गाइनेक विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विनीत मिश्रा ने बताया कि यह युवती अपने प्रिजर्व ओवेरियन टिश्यू से मां बनने में समर्थ है। इसके लिए प्रिजर्व किए गए टिश्यू से हाथ में अंडा बनने की अनूठी तकनीकी अपनाई है। युवती के फॉर आर्म में कॉरटेक्स इम्पलांट किया है। लगभग तीन माह में यह ी का हार्मोन तैयार करने लगेगा। डॉ. मिश्रा का कहना है कि जैसे जैसे टिश्यु रक्त के साथ मिश्रित होगा वैसे वैसे ी हार्मोन्स बनने लगेंगे।
जिसके कुछ दिनों बाद महिला का रक्तस्राव (ऋतु चक्र) आने लगेगा। करीब छह माह के बाद हाथ में ी बीज तैयार हो जाएगा। सोनोग्राफी कर ी बीज को सीरिंज से निकाला जाएगा और एक बार फिर लेबोरेटरी में पति के शुक्राणुओं के साथ फर्टीलाइजर की प्रक्रिया की जाएगी। इससे मिश्रित कल्चर को सीरिंज के माध्यम से महिला के गर्भाशय तक पहुंचाया जाएगा। उन्होंने कहा कि आईवीएफ पद्धति से यह महिला मां बन सकेगी।
इसलिए है खास डॉ. मिश्रा का कहना है कि भारत में सर्वप्रथम उपयोग की जा रही इस तकनीक को हिट्रोटोपिक ट्रान्सप्लान्ट कहा जाता है। इसका मतलब मूल स्थान की जगह अन्य जगह पर स्त्री बीज (अंडा) बनना है। आमतौर पर कैंसर पीडि़त इसी तरह की महिलाओं की ओवेरियन की जगह पर ही अंडा विकसित किया जाता है, लेकिन वह प्रक्रिया कुछ पीड़ादायक है। एक बार असफल होने के बाद दूसरी बार फिर से वही प्रोसिजर की जाती है। उन्होंने हिट्रोटोपिक ट्रान्सप्लान्ट की प्रक्रिया सरल बताई। उनका दावा है कि देश में इस तरह की प्रक्रिया अब तक कहीं भी नहीं की गई है।
ऐसे हुआ अनूठा प्रयोग कीमो ट्रीटमेंट शुरू होने से पूर्व इस युवती को किडनी अस्पताल के गाइनेक विभाग लाया गया, जहांचिकित्सकों ने अंडाशय से लेप्रोस्कॉपी के माध्यम से ओवेरियन कल्चर निकाला और उसे माइनस १०८ डिग्री सेन्टीग्रेड लिक्विड नाइट्रोजन में स्टोर किया।
ओमप्रकाश शर्मा