वडोदरा. ओमिक्रॉन वैरिएंट के उच्चतम जोखिम वाले देशों से आने वाले विमान यात्रियों की हवाई अड्डों पर ही टेगपेथ किट से आरटीपीसीआर जांच की जाए तो नए वैरिएंट का जल्द पता लगाना संभव है। इससे संक्रमण को फैलने से रोकने में भी मदद मिलेगी।
यह दावा वडोदरा शहर के जीएमईआरएस गोत्री अस्पताल में कोविड-19 के नोडल अधिकारी डॉ. शीतल मिस्त्री ने किया है। उनका कहना है कि थर्मोफिशर कंपनी की टेगपेथ किट से आरटीपीसीआर की रिपोर्ट में एस जीन, ई जीन, एन जीन की पहचान होती है। आरटीपीसीआर की सामान्य किट से ई जीन, एन जीन व आरडी (आरएनए डिपेंडेंट) आरपी (आरएनए पॉलिमरेस) जीन की पहचान होती है। टेगपेथ किट से एस जीन की पहचान नहीं होने पर पता लगता है कि मरीज के अंदर ओमिक्रॉन वैरिएंट है।
उनके अनुसार टेगपेथ किट का उपयोग करने से एस जीन की पहचान नहीं होती और शेष दो जीन – ई जीन व एन जीन की पहचान होती है तो कहा जा सकता है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट का संक्रमण है। टेगपेथ किट को वर्तमान समय में तमिलनाडु की 12 लैबोरेटरी में काम में लिया जा रहा है।
डॉ. मिस्त्री ने बताया कि ओमिक्रॉन वैरिएंट के संक्रमण का पता लगाने के लिए आरटीपीसीआर जांच की मशीन तो वही रहेगी लेकिन टेस्ट के लिए टेगपेथ किट का उपयोग किया जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र सहित देश के अन्य राज्यों में टेगपेथ किट से जांच करने पर एस जीन की पहचान नहीं होने पर तुरंत ही एस जीन ड्रॉपआउट माना जाता है और एस जीन टार्गेट फेलियोर माना जाता है। आरटीपीसीआर की जांच में ओमिक्रॉन वैरिएंट की पहचान के लिए एस जीन वाला किट काम में लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर टेगपेथ किट को देशभर में उपलब्ध करवाया जाए तो विदेश से आने वाले और उच्चतम जोखिम वाले देशों बोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका, इजराइल, बेल्जियम, हांगकांग से आने वाले यात्रियों की जांच हवाई अड्डे पर ही प्रभावी तरीके से की जा सकेगी। क्योंकि अभी यात्री में वायरस के एस जीन का पता नहीं लगने पर नमूने को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए भेजना चाहिए। उसकी रिपोर्ट आने में कम से कम 96 घंटे का समय लगता है। भारत में यह रिपोर्ट आने में दो से तीन सप्ताह भी लग सकते हैं। तब तक एक व्यक्ति से अनेक व्यक्ति संक्रमित हो सकते हैं।
उनके अनुसार सामान्यतया टेगपेथ किट का उपयोग करने से एस जीन की पहचान नहीं होने पर व्यक्ति को सीधे ही आइसोलेट और क्वारंटाइन किया जा सकता है। ऐसा करने से संक्रमण ज्यादा नहीं फैलेगा। सामान्तया जीनोम सिक्वेंसिंग खर्चीली होती है। टेगपेथ से जांच करने पर कम खर्च में ओमिक्रॉन वैरिएंट का पता लग सकता है। हालांकि आरटीपीसीआर रिपोर्ट में एच जीन की पहचान नहीं होने पर वास्तविकता का पता लगाने के लिए प्रारंभ में जीनोम सिक्वेंसिंग करवाने की आवश्यकता है।
यह दावा वडोदरा शहर के जीएमईआरएस गोत्री अस्पताल में कोविड-19 के नोडल अधिकारी डॉ. शीतल मिस्त्री ने किया है। उनका कहना है कि थर्मोफिशर कंपनी की टेगपेथ किट से आरटीपीसीआर की रिपोर्ट में एस जीन, ई जीन, एन जीन की पहचान होती है। आरटीपीसीआर की सामान्य किट से ई जीन, एन जीन व आरडी (आरएनए डिपेंडेंट) आरपी (आरएनए पॉलिमरेस) जीन की पहचान होती है। टेगपेथ किट से एस जीन की पहचान नहीं होने पर पता लगता है कि मरीज के अंदर ओमिक्रॉन वैरिएंट है।
उनके अनुसार टेगपेथ किट का उपयोग करने से एस जीन की पहचान नहीं होती और शेष दो जीन – ई जीन व एन जीन की पहचान होती है तो कहा जा सकता है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट का संक्रमण है। टेगपेथ किट को वर्तमान समय में तमिलनाडु की 12 लैबोरेटरी में काम में लिया जा रहा है।
डॉ. मिस्त्री ने बताया कि ओमिक्रॉन वैरिएंट के संक्रमण का पता लगाने के लिए आरटीपीसीआर जांच की मशीन तो वही रहेगी लेकिन टेस्ट के लिए टेगपेथ किट का उपयोग किया जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र सहित देश के अन्य राज्यों में टेगपेथ किट से जांच करने पर एस जीन की पहचान नहीं होने पर तुरंत ही एस जीन ड्रॉपआउट माना जाता है और एस जीन टार्गेट फेलियोर माना जाता है। आरटीपीसीआर की जांच में ओमिक्रॉन वैरिएंट की पहचान के लिए एस जीन वाला किट काम में लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर टेगपेथ किट को देशभर में उपलब्ध करवाया जाए तो विदेश से आने वाले और उच्चतम जोखिम वाले देशों बोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका, इजराइल, बेल्जियम, हांगकांग से आने वाले यात्रियों की जांच हवाई अड्डे पर ही प्रभावी तरीके से की जा सकेगी। क्योंकि अभी यात्री में वायरस के एस जीन का पता नहीं लगने पर नमूने को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए भेजना चाहिए। उसकी रिपोर्ट आने में कम से कम 96 घंटे का समय लगता है। भारत में यह रिपोर्ट आने में दो से तीन सप्ताह भी लग सकते हैं। तब तक एक व्यक्ति से अनेक व्यक्ति संक्रमित हो सकते हैं।
उनके अनुसार सामान्यतया टेगपेथ किट का उपयोग करने से एस जीन की पहचान नहीं होने पर व्यक्ति को सीधे ही आइसोलेट और क्वारंटाइन किया जा सकता है। ऐसा करने से संक्रमण ज्यादा नहीं फैलेगा। सामान्तया जीनोम सिक्वेंसिंग खर्चीली होती है। टेगपेथ से जांच करने पर कम खर्च में ओमिक्रॉन वैरिएंट का पता लग सकता है। हालांकि आरटीपीसीआर रिपोर्ट में एच जीन की पहचान नहीं होने पर वास्तविकता का पता लगाने के लिए प्रारंभ में जीनोम सिक्वेंसिंग करवाने की आवश्यकता है।
विदेशों में हुई जांच पर नहीं करें भरोसा डॉ. मिस्त्री ने कहा कि उच्चतर जोखिम वाले देश में ही जांच करवाकर आने वाले यात्रियों की रिपोर्ट पर हमें भरोसा नहीं करना चाहिए। भारत में पहुंचने पर यात्री की जांच करनी चाहिए और एक बार रिपोर्ट नेगेटिव आने के 8 दिन बाद दुबारा जांच की जानी चाहिए। यानी टेगपेथ किट से दो बार आरटीपीसीआर टेस्ट करना चाहिए।