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गुजरात हाई कोर्ट में महिला वकीलों के शिशुओं के लिए पालना घर की गुहार

locationअहमदाबादPublished: Oct 20, 2018 10:34:55 pm

Submitted by:

Uday Kumar Patel

-गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन से मंगाई जानकारी
-हाईकोर्ट का रजिस्ट्री को नोटिस

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गुजरात हाई कोर्ट में महिला वकीलों के शिशुओं के लिए पालना घर की गुहार

अहमदाबाद। गुजरात उच्च न्यायालय ने गुजरात हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली महिला वकीलों के बच्चों के लिए पालना घर (शिशु घर) की मांग को लेकर गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन (जीएचएए) से महिला वकीलों व बच्चों के बारे में जानकारी मांगी है।
न्यायाधीश अकील कुरैशी व न्यायाधीश बी.एन. कारिया की खंडपीठ ने इस मामले में गुजरात उच्च न्यायालय को भी नोटिस जारी किया, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट प्रशासन ने पालना घर के लिए बात कही थी लेकिन कितने बच्चों के लिए पालना घर चाहिए, इसकी जिम्मेवारी किसकी होगी, इन सभी बातों की जानकारी एसोसिएशन से मांगी गई है। इस मामले की अगली सुनवाई 29 अक्टूबर को होगी।
गुजरात हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली दो महिला वकीलों- खुशबू शाह और चांदनी जोशी की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि गुजरात उच्च न्यायालय में काफी संख्या में महिला वकील है, जो यहां पर प्रैक्टिस करती हैं। इनमें से कईयों के छोटे-छोटे बच्चे हैं जो 6 वर्ष से कम उम्र के हैं। इसलिए ऐसे बच्चों के लिए हाईकोर्ट में पालना घर की सुविधा सुनिश्चित की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे को लेकर दायर जनहित याचिका पर विशेष रूप से गठित समिति की रिपोर्ट स्वीकार कर पालना घर की व्यवस्था के उचित दिशा-निर्देश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट में पालना घर की व्यवस्था इस वर्ष पहली मई में की गई। इस सुविधा के लिए एडमिशन फीस एक हजार रुपए, प्रत्येक महीने केयर फीस 1500 रुपए रखी गई है। प्रति बालक प्रति दिवस 100 रुपए का शुल्क लिया जाता है। यहां पर पालना घर की सुविधा सुबह साढ़े 8 बजे से शाम साढ़े छह बजे से कामकाज के दिनों में की गई है।
याचिकाकर्ताओं के वकील आदित्य भट्ट ने दलील दी कि श्रम कानूनों के तहत पालना घर का प्रावधान है, हालांकि ऐसा प्रावधान हाई कोर्ट को लेकर शायद संभव नहीं हो सकता है, लेकिन हाई कोर्ट को कल्याणकारी उपायों के तहत पालना घर की सुविधा मुहैया करानी चाहिए। वकील ने यह भी दलील दी इस संबंध में हाईकोर्ट में पूर्व में कई बार गुहार लगाई जा चुकी है लेकिन अब तक इस पर अमल नहीं किया जा सका है।
याचिका में कहा गया कि उच्च न्यायालय में 150 से ज्यादा महिला वकील प्रैक्टिस करती है और वही कई वादी महिलाएं प्रतिदिन हाई कोर्ट में आती है। ऐसी स्थिति में इन महिलाओं के बच्चों को रखने के लिए पालना घर की आवश्यकता है । इस संबंध में महिला वकीलों ने एक हस्ताक्षर अभियान भी आयोजित किया था, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस संबंध में गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन ने भी गुहार लगाई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
वहीं हाईकोर्ट के कर्मचारियों के लिए डे केयर सेन्टर की सुविधा के तहत एक पालना घर, नौकरानी व अन्य सुविधाएं भी मुहैया कराई गई हैं। इसके अलावा बच्चों के पूरे दिन रखने की भी व्यवस्था है, जो ऐसी व्यवस्था उच्च न्यायालय के वकीलों के लिए कराई जाए तो हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली महिला अपना प्रैक्टिस भी जारी रख सकती हैं और उनके शिशुओं की देखभाल भी जा सकती है। महिला वकीलों की याचिका में कहा गया है कि उन्हें यह न्यूट्रल जेंडर प्रोजेक्ट के रूप में यह व्यवस्था चाहिए जिसमें सिर्फ महिला वकील ही नहीं बल्कि पुरुष वकील भी इसका उपयोग कर सकते हैं। जब पुरुष वकील की पत्नी बाहर गईं हो तब वे अपने बच्चों को यहां लेकर आ सकते हैं। इतना ही नहीं, वकील के क्लर्क के रूप में काम करने वाले स्टाफ को भी इस सुविधा का लाभ मिलना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश कर चुके हैं सुनवाई से इन्कार

इस जनहित याचिका पर पहले मुख्य न्यायाधीश आर. सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने सुनवाई से इनकार कर दिया था। उच्च न्यायालय के प्रशासनिक प्रमुख होने के कारण उन्होंने इस याचिका पर सुनवाई से इन्कार कर दिया था। इसके बाद इस याचिका पर दूसरे खंडपीठ के समक्ष सुनवाई चल रही है।

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