scriptलोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पुन:स्थापित करना जरूरी : मुखर्जी | Re-invention of the Institutions of Democracy, says pranab mukharjee | Patrika News

लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पुन:स्थापित करना जरूरी : मुखर्जी

locationअहमदाबादPublished: Nov 17, 2018 09:57:11 pm

पूर्व राष्ट्रपति का आईआईएम-ए में व्याख्यान

former president pranab

लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पुन:स्थापित करना जरूरी : मुखर्जी

अहमदाबाद. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता गिर रही है। हमें इन संस्थाओं के प्रति जनता में विश्वास पुन:स्थापित करने के लिए पुख्ता कदम उठाने चाहिए। उन्हें संवैधानिक सिद्धांतों और मूल्यों को कायम रखते हुए स्वयं को पुन: पेश करना होगा। ताकि लोग इन संस्थाओं को निष्पक्ष, न्यायसंगत और उत्तरदायी ही नहीं मानें, बल्कि इसके लिए इन संस्थाओं की ओर देखें भीं।
मुखर्जी ने यह बात शनिवार को भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम-ए) अहमदाबाद में जेएसडब्ल्यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी की ओर से आयोजित ‘आर्टिकुलेटिंग पॉलिसी एंड इंस्टीट्यूशनल एजेंडा फॉर फ्यूचर ट्रांसफोर्मेशन ऑफ इंडियाÓ विषय पर दिए अपने व्याख्यान में बताई।
उन्होंने कहा कि भविष्य का भारत बनाने के लिए भी यह बहुत जरूरी है। यदि यह लोकतांत्रिक संस्थाएं विफल हुईं तो लोग अपना सब कुछ गंवाने का अनुभव करेंगे। ऐसे में उनमें रोष होगा जो क्रोध में बदल सकता है। उससे कानून एवं व्यवस्था की परिस्थिति में असंतुलन पैदा हो सकता है।
पंचायतों को और अधिकार दें
मुखर्जी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि सत्ता का विकेन्द्रीकरण करते हुए यदि देश की पंचायतों को फंक्शन (कार्य), फंक्शनरीस (कार्यप्रणालिका) और फंड (कोष) के मामले में ज्यादा सशक्त बनाकर अधिकार दिए जाएं तो देश की ३.३ मिलियन (33 लाख) ग्राम पंचायतें देश की विधानसभाओं और लोकसभा-राज्यसभा से भी ज्यादा प्रभावी कार्य कर सकती हैं। क्योंकि पंचायतों में लोगों का अपने हित और निर्णय के लिए सहभागी बनने में रुचि ज्यादा दिखाई जाती है।

मोबलिंचिंग हमारी संस्कृति नहीं
मुखर्जी ने कहा कि आज हमारे यहां मोबलिंटिंग में लोग मारे जा रहे हैं और कई लोग उस हैवानियत को वहां खड़े रहकर मोबाइल फोन में रिकॉर्ड करने में लगे रहते हैं। यह तो भारत की सभ्यता और संस्कृति नहीं रही। हमारे युवा बेहतर और क्षमतावान हैं,लेकिन इन सब के भी यह विचार में खामी भी आ रही है। जबकि देश प्यार, देशभक्ति,विविधता के बावजूद एकता को स्थान देने वाला, असहमत होते हुए भी साथ रहने की खूबी वाला है। लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था में इन मौलिक बातों को अब सिखाया नहीं जा रहा है। इस पर भी हमें ध्यान देने की जरूरत है।
महिलाओं को पढ़ाने से समाज शिक्षित
मुखर्जी ने कहा कि एक पुरुष को पढ़ाने से एक व्यक्ति शिक्षित होता है, जबकि एक महिला को पढ़ाने से पूरा परिवार और उसके जरिए समाज शिक्षित होता है। देश के आर्थिक विकास के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना जरूरी है।
mukharjee
शिक्षा में जीडीपी का ६ प्रतिशत निवेश जरूरी
मुखर्जी ने देश के विकास के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का छह प्रतिशत निवेश करने की जरूरत है। भले ही देश में ७६७ विवि, ३६ हजार से ज्यादा कॉलेज,16 आईआईटी, 13 एनआईटी है। फिर भी २०१५ के आंकड़े दर्शाते हैं कि पीएचडी स्कॉलर्स में हम देश विश्व में जापान, ब्रिटेन, अमरीका के बाद आते हैं। उन्होंने कहा कि आईआईटी में बेहतर काम हो रहा है। शिक्षा लेने वाले को रोजगार भी मिल रहा है, लेकिन सवाल यह है कि इन शिक्षित युवाओं का हम देश के लिहाज से कहां उपयोग कर पा रहे हैं। शोध, नवाचार (इनोवेशन) में कम कहां हैं। इसमें से कितने शिक्षित युवा प्रोफेसर बनने को तैयार हो रहे हैं। वो क्यों शिक्षक नहीं बनना चाहते। यह वो क्षेत्र हैं जिस दिशा में हमें सोचने और काम करने की जरूरत है। सर सी.वी.रमन को छोड़ दें तो १९३० से भारत में रहकर काम करने वाले किसी भी भारतीय को नोबल पुरस्कार नहीं मिला है। हालांकि उसके बाद हरगोविंद खुराना, अमत्र्यसेन को नोबल पुरस्कार मिला है, लेकिन उन्होंने देश में कम शोध किए।
pranab mukharjee
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो