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Ahmedabad Civil Hospital : बालिका के फेफड़े में पहुंचे पत्थर को बिना चीडफ़ाड़ के निकाला

locationअहमदाबादPublished: Dec 10, 2019 10:32:06 pm

Submitted by:

Omprakash Sharma

पहली बार फोगार्टी कैथेटर तकनीक

Ahmedabad Civil Hospital : बालिका के फेफड़े में पहुंचे पत्थर को बिना चीडफ़ाड़ के निकाला

Ahmedabad Civil Hospital : बालिका के फेफड़े में पहुंचे पत्थर को बिना चीडफ़ाड़ के निकाला

अहमदाबाद. चार वर्ष की बालिका के फेफड़े में पहुंचे पत्थर के टुकड़े को बिना चीडफ़ाड़ के निकाल दिया गया। अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में इस पत्थर को निकालने के लिए फोगार्टी कैथेटर तकनीक अपनाई गई है। चिकित्सकों का दावा है कि फेफड़े से किसी वस्तु को बाहर निकालने के लिए इस तकनीक का संभवत: पहली बार इस्तेमाल किया गया है। बालिका की हालत स्वस्थ बताई गई है।
गुजरात के पंचमहाल जिले के हालोल निवासी चार वर्षीय बालिका ने पिछले दिनों करीब डेढ़ से दो सेंटीमीटर आकार का चिकना पत्थर मुंह में रखा था कि पत्थर दुर्घटनावश फेफड़ों तक पहुंच गया। पत्थर के इस टुकड़े के कारण बालिका काफी परेशान थी। स्थानीय अस्पतालों में ले जाया गया लेकिन पत्थर को निकालने के लिए बड़ा ऑपेरशन करने की बात बताई। हालोल से वडोदरा रेफर किया गया और वडोदरा से उसे अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के लिए रेफर किया। सिविल अस्पताल में कान, नाक एवं गला (ईएनटी) विभाग में भर्ती करवाया गया। जहां के चिकित्सकों ने सूझ बूझ से बालिका के पत्थर को निकाल दिया।
सिविल अस्पताल के ईएनटी विभाग के सीनियर चिकित्सक डॉ. देवांग गुप्ता ने बताया कि फोगार्टी कैथेटर का उपयोग किया गया। खासकर इस तकनीक को शरीर की नली ब्लॉक होने के दौरान अपनाया जाता है। डॉ. गुप्ता ने कहा कि बिना चीडफ़ाड़ के पत्थर को दूरबीन के सहारे निकाल दिया गया। इस तरह की यह पहली तकनीक है। इस विशेष ऑपरेशन के दौरान डॉ. विरल प्रजापति एवं डॉ. स्मिता इन्जीनियर ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
चिकना पत्थर होने के कारण अपनाई पद्धति
डॉ. गुप्ता ने बताया कि इस पत्थर को दूरबीन के सहारे निकालने का निर्णय किया गया था लेकिन पत्थर इतना चिकना था कि यह संभव नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि मुंह के रास्ते कैथेटर डाला गया जिसमें ऐसा बलून फिट किया गया कि उसके प्रेशर से पत्थर निकल सका।
अस्पताल में निशुल्क किया ऑपरेशन
बालिका के फेफड़े से पत्थर को निशुल्क निकाला गया। बेहतर तकनीक अपनाने के कारण किसी तरह की चीडफ़ाड़ की भी जरूरत नहीं हुई। आमतौर पर इस तरह के ऑपरेशन में निजी अस्पतालों में एक लाख से अधिक का खर्च हो सकता था।
डॉ. जी.एच राठौड़, चिकित्सा अधीक्षक सिविल अस्पताल
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