script‘सडक़ों को खोद व मरम्मत कर उसे पूर्व स्थिति में लाना जन सुविधा से जुड़ा मुद्दा’ | Road opening, restoration of road : Review plea of company dismissed | Patrika News
अहमदाबाद

‘सडक़ों को खोद व मरम्मत कर उसे पूर्व स्थिति में लाना जन सुविधा से जुड़ा मुद्दा’

-गुजरात हाईकोर्ट का अवलोकन….
-इस कार्य को जल्द करने की आवश्यकता
-टोरेन्ट पावर की पुनरीक्षण याचिका खारिज

अहमदाबादNov 29, 2018 / 11:31 pm

Uday Kumar Patel

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‘सडक़ों को खोद व मरम्मत कर उसे पूर्व स्थिति में लाना जन सुविधा से जुड़ा मुद्दा’

अहमदाबाद. गुजरात उच्च न्यायालय ने खस्ताहाल सडक़ों के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ टोरेन्ट पावर कंपनी की ओर से दायर की गई पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी।
प्रभारी मुख्य न्यायाधीश अनंत एस. दवे व न्यायाधीश ए. वाई. कोगजे की खंडपीठ ने इस फैसले में अवलोकन किया कि सार्वजनिक रास्तों पर मरम्मत करना और उसे वापस पूर्वस्थिति में लाना जन सुविधा से जुड़ा मुद्दा है और इसे जल्द से जल्द किया जाना चाहिए।
खंडपीठ ने यह भी पाया कि इस फैसले से सभी पक्ष वाकिफ थे, लेकिन उस वक्त याचिकाकर्ता कंपनी नहीं जुड़ी। तब ऐसे में कंपनी पक्षकार नहीं थी और ऐसे में फैसले के पुनरीक्षण का दावा नहीं किया जा सकता।
टोरेन्ट की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि खंडपीठ की ओर से दिए गए आदेश में टेलिकॉम, बिजली या गैस कंपनियों को ही अपने कार्य के लिए सडक़ें खोदना और उनके ही खर्च से मरम्मत करना होगा। साथ ही इस कार्य के लिए रकम भी जमा करानी होगी। सडक़ों की मरम्मत उचित तरीके से और निर्धारित समय पर नहीं हो तो जमा रकम में से यह खर्च वसूलनी होगा। यदि कोई कंपनी लगातार गलती करेगी तो संबंधित कंपनी को सडक़ खोदने की मंजूरी नहीं दी जाएगी।
हालांकि टोरेन्ट पावर बिजली का उत्पादन और वितरण करती है। कंपनी की भूमिका सडक़ खोदने के लिए महानगरपालिका को खर्च देने तक ही सीमित है। कंपनी के पास फिलहाल 17 हजार से ज्यादा बिजली कनेक्शन के आवेदन लंबित है और ऐसे में कंपनी को सडक़ें खोदनी होगी। हालांकि हाईकोर्ट के फैसले के बाद नए नियमों को लेकर कंपनी को काम में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सडक़ों के रिसरफेसिंग करने के लिए स्टाफ या सुविधा कंपनी के पास नहीं है और साथ ही इसके लिए समय भी काफी कम दिया गया है। इस काम के लिए महानगरपालिका को रकम दे सकती है।
मूल याचिकाकर्ता के वकील अमित पंचाल ने दलील दी कि कानून के प्रावधानों के तहत मनपा आयुक्त की पूर्व मंजूरी के बिना काम नहीं हो सकता। ऐेसे में खंडपीठ ने भी कानून के सुसंगत आदेश दिए हैं जिसमें कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए।

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