इनमें एक करोड़ टन खाने के उपयोग में होता है। इसके साथ ही करीब पौने एक करोड़ टन निर्यात किया जाता है। यह निर्यात मुख्य रूप से चीन, जापान, थाइलैण्ड, वियतनाम, इंडेनेशिया, मलेशिया, फिलीपीन्स में होता है। शेष एक करोड़़ टन का उपयोग विभिन्न इंडस्ट्री में होता है जिसमें कॉस्टिक सोडा और सोडा एश की इंडस्ट्री शामिल है। कॉस्टिक सोडा के उत्पादन में नमक का उपयोग होता है जो सैनेटाइजर बनाने में कच्ची सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है।
इंडियन साल्ट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के उपाध्यक्ष श्यामजी कानगड ने बताया कि इस बार नमक का उत्पादन 15 फीसदी कम होगा। बारिश के लंबे खींचे जाने के कारण उत्पादन पर असर पड़ा है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उत्पादन कम होने से इस वर्ष नमक के भाव में वृद्धि होने के कोई आसार नहीं हैं।
कच्छ स्मॉल स्केल साल्ट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के मानद सचिव के रूप में भी कार्यरत कानगड के मुताबिक इस वर्ष चीन को निर्यात नहीं हो सकेगा। अमरीका-चीन के बीच रहे ट्रेड वॉर के चलते पहले ही निर्यात कम हो चुका है। हालांकि यह निर्यात अब अन्य देशों में हो सकेगा। ज्यादा निर्यात नहीं होने की स्थिति में यह नमक का खपत भारत के घरेलू बाजार में हो सकेगा जिससे नमक के भाव में बढ़ोत्तरी नहीं हो सकेगी।