इतिहासकार रिजवान कादरी के मुताबिक, विलायत से कानून की पढ़ाई के बाद पटेल अहमदाबाद की जिला व सत्र अदालत में प्रैक्टिस करते थे। यहां वे अदालत में प्रैक्टिस करने के बाद गुजरात क्लब में आते थे। 1888 में स्थापित यह क्लब तब बुद्धिजीवियों का मंच हुआ करता था। उस वक्त बड़े-बड़े उद्योगपति, मिल मालिक, चिकित्सक, इंजीनियर व कुछ अंग्रेज नौकरशाह के साथ-साथ अहमदाबाद की जिला व सत्र अदालत में प्रैक्टिस करने वाले वकील बैठकर बौद्धिक बातें किया करते थे। तब यह क्लब अहमदाबाद में राजनीतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक मामलों का केन्द्र हुआ करता था।
उधर महात्मा गांधी भी दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद देशभर में दौरा कर रहे थे। तभी उन्होंने अहमदाबाद में आश्रम स्थापित कर यहां से आजादी की लड़ाई का केन्द्र रखने की सोच रखी थी। गांधीजी का देशभर में खूब स्वागत होता था। उधर, सरदार पटेल भी इंग्लैण्ड से कानून की पढ़ाई के बाद वर्ष 1913 में अहमदाबाद आ गए थे। वे यहां आकर भद्र स्थित अदालत में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे यहां ब्रिज भी खेला करते थे।
उधर, गांधीजी 1 फरवरी 1915 को अहमदाबाद आए तो रेलवे स्टेशन पर उनका भव्य स्वागत किया गया था। 3 फरवरी 1915 को अहमदाबाद के पानकोर नाका के पास गांधीजी का संबोधन होना था। इधर, गुजरात क्लब में सरदार पटेल के साथ के लोगों ने उनसे कहा कि उन्हें गांधीजी को सुनने जाना चाहिए। इस पर सरदार ने कोई रूचि नहीं दिखाई, लेकिन इसीदिन आयोजक गांधीजी को संबोधन से पहले गुजरात क्लब लेकर पहुंचे और यहीं पर इन दोनों महान हस्तियों की पहली मुलाकात हुई।
ऐसे प्रभावित हुए एक-दूसरे से : गुजरात क्लब के वर्तमान अध्यक्ष हरेश शाह कहते हैं कि उस दिन इन दोनों की मुलाकात हुई और सरदार गांधीजी के विचारों से प्रभावित हुए।
इतिहासकार कादरी बताते हैं कि शुरुआत में सरदार गांधीजी से प्रभावित नहीं थे, लेकिन गुजरात क्लब में दोनों पहली बार मिले। दोनों गुजरात सभा के सदस्य बने। इसके बाद गांधीजी और सरदार का एक साथ कांग्रेस अधिवेशन में जाना होने लगा। पहले वे दिसम्बर 1915 में मुंबई अधिवेशन में गए। वहीं अगले वर्ष 1916 में लखनऊ अधिवेशन में गए। यहां ब्रिटिश हुकूमत को देने के लिए एक ज्ञापन तैयार किया गया था। यह ज्ञापन करीब दस पेजों में था, लेकिन गांधीजी ने उसे सिर्फ दस वाक्यों में तब्दील कर दिया। ज्ञापन के इस रूप को देखकर सरदार गांधी से खूब प्रभावित हुए। तब सरदार को लगा बंदे में कुछ दम है।
हरेश शाह बताते हैं कि गांधीजी से मिलने के बाद सरदार प्रभावित होने लगे और फिर गांधीजी ने ही उन्हें राजनीति में आने को कहा। सरदार ने अहमदाबाद नगरपालिका का चुनाव लड़ा और वे अहमदाबाद नगरपालिका प्रमुख भी बने।
इस तरह गांधी जी से प्रभावित सरदार ने फिर गांधीजी के साथ आजादी की लड़ाई में अपना महती योगदान दिया।