अहमदाबाद

कोरोना काल में और घातक है धूम्रपान

कोरोना के संक्रमण के साथ बढ़ जाता है फेफड़ों में अटैक का खतरा

अहमदाबादNov 26, 2020 / 12:12 am

Rajesh Bhatnagar

डॉ. नरेन्द्र रावल

राजेश भटनागर
अहमदाबाद में पिछले 40 वर्ष से कार्यरत सीनियर मोस्ट पुल्मोनरी फिजिशियन डॉ. नरेन्द्र रावल ने कहा कि सामान्य व्यक्ति के मुकाबले सीओपीडी के रोगी को कोरोना वायरस का संक्रमण होने पर इस रोग की गति 2 से 5 प्रतिशत बढ़ती है। हाल ही मनाए गए वल्र्ड सीओपीडी डे के मद्देनजर जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बुधवार को लाइव सेशन के दौरान उन्होंने कहा कि एक वर्ष से देश में और विश्व में कोरोना वायरस का संक्रमण फैल रहा है, इसलिए सीओपीडी और कोरोना वायरस एक साथ मिलने पर फेफड़ों का अटैक होने की संभावना बढ़ती है।
डॉ. रावल ने कहा कि इसलिए कोरोना का हमला है अथवा सीओपीडी का हमला है अथवा दोनों का हमला है, यह जानना काफी जरूरी है। सीओपीडी के रोगी को बुखार आए या खांसी, कफ हो, गले में दर्द हो तो तुरंत ही कोरोना के रेपिड एंटीजन टेस्ट अथवा आरटी पीसीआर टेस्ट करवाना चाहिए। धूम्रपान करने वाले लोगों को कोरोना काल में धूम्रपान बंद करना चाहिए और तंदुरस्त रहना चाहिए। किसी प्रकार की परेशानी होने पर ऐसे लोग पारिवारिक फिजिशियन, चेस्ट फिजिशियन से मिलें और कोरोना व क्रॉनिक ऑब्स्ट्रिकल पुल्मोनरी डिजिज (सीओपीडी) से बचें और लंबा जीवन जीएं।
क्या है सीओपीडी
उन्होंने कहा कि क्रॉनिक ऑब्स्ट्रिकल पुल्मोनरी डिजिज (सीओपीडी) यानी फेफड़ों में अटैक में मुख्य तौर पर क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस रोग होता है। इसके अलावा स्मॉल एयर डिजिज, अस्थमा को भी शामिल किया जा सकता है।
यह हैं कारण और लक्षण

डॉ. रावल ने कहा कि सीओपीडी होने के मुख्य कारणों में धूम्रपान है। बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, तंबाकू की धूनी से धुएं को श्वास में लेने से सीओपीडी होता है। धूम्रपान के अलावा तंबाकू रहित सीओपीडी में केमिकल इंडस्ट्री, खेत पर मजदूरी के कामकाज, घरों में महिलाओं की ओर से तैयार किया जाने वाले भोजन, विशेषतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी, गोबर के कंडे, केरोसिन की मदद से भोजन तैयार करने आदि से फेफड़ों में प्रदूषित हवा जाती है।
इनसे फेफड़ों की नलियां संकड़ी होती है और उनमें स्थायी तौर पर सूजन आती है। इस कारण रोगी को सूखी खांसी आती है, खांसी के बाद कुछ समय पश्चात श्वास चढ़ती है, बुखार के साथ संक्रमण के कारण कफ निकलता है, या अन्य कारणों से श्वास चढऩे के लक्षण महससू होते हैं।
ऐसे किया जाता है निदान

सीओपीडी का हमला होने पर चिकित्सक को रोगी की हिस्ट्री लेकर, स्टेथोस्कॉप से जांच करने पर रोग की गंभीरता का पता लगाना आसाना होता है। इसके साथा पुल्मोनरी फंक् शन टेस्ट (पीएफटी) यानी लंग फंक्शन टेस्ट (फेफड़ों की कार्यक्षमता का पता लगाने की जांच) किया जाता है। इसे स्पायरोमेटरी टेस्ट भी कहा जाता है। इसके आधार पर सीओपीडी के रोगी की स्टेज (चरण) का पता लगाया जाता है। यह चरण माइल्ड, मॉडरेट या सीवियर होते हैं। इसके अलावा सीने का एक्स-रे, आवश्यकता होने पर सीटी स्केन, टू डी इको किया जाता है। इनके साथ रक्त जांच करवाई जाती है। इन सभी की रिपोर्ट से रोगी के सीओपीडी के चरण का पता लगाने में मदद मिलती है।
यह है उपचार

ऐसे रोगियों को इन्हेलर या रोटाकैप के जरिए निर्धारित आवश्यक दवाएं रोग के आधार पर दी जाती है। विश्व में उपलब्ध नई दवाई पहले के मुकाबले एक तिहाई दाम पर उपलब्ध है। यह दवाई रोगी को नियमित तौर पर दी जाती है। प्रमि महीने या तीन महीने में लंग फं क्शन टेस्ट किया जाता है। जरूरत होने पर स्टीरॉयड की दवा भी रोगी को दी जाती है। इसके अलावा अन्य आवश्यक दवा भी दी जाती है। एंटीबायोटिक की आवश्यकता होने पर इसकी दवा भी दी जाती है।
मौसम बदलने पर बढ़ती है गंभीरता

सीओपीडी के कई रोगियों को मौसम बदलने, संक्रमण होने पर श्वास चढ़ता है। जिस प्रकार रोगी को हार्ट अटैक होता है, पसीना आता है, बाएं हाथ में दर्द होता है और कभी-कभी रोगी बेहोश भी होता है। ऐसे रोगियों की एंजियोग्राफी या एंजियोप्लास्टि की जाती है। जिस प्रकार हार्ट अटैक होता है, उसी प्रकार सीओपीडी के रोगी को फेफड़ों में अटैक आता है। काफी अधिक श्वास चढ़ता है, ऑक्सीजन कम होता है, साइनोसिस होता है, खांसी आती है, बोल नहीं सकता।
गंभीरता के आधार पर देते हैं दवा वेंटिलेटर पर रखा जाता है

ऐसे लक्षणों को फेफड़ों का अटैक कहा जाता है। ऐसे रोगियों को नेबुलाइजर में दवाई दी जाती है, जरूरत होने पर ऑक्सीजन दी जाती है और आपातकालीन स्थिति में आवश्यक जांच की जाती है। रोगी को अस्पताल में भर्ती कर एंटीबायोटिक दवाएं, आईवी ड्रिप, आवश्यकता होने पर ऐसे रोगियों को स्टीरायड की दवा देते हैं और वेंटिलेटर पर भी रखा जाता हैै।
फेफड़ों का अटैक होने पर विश्व में उपलब्ध हैं सीमित दवाएं

डॉ. रावल ने कहा किहार्ट अटैक होने पर रोगी के पास उपाय हैं, लेकिन फेफड़ों में अटैक होने पर चिकित्सकों के पास अथवा संपूर्ण विश्व में काफी सीमित यानी गिनी-चुनी दवाएं उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य रोगियों या सीओपीडी के रोगियों को खांसी होने, धूम्रपान करने, रसोई में कोयले, केरोसिन अथवा गोबर के कंडे का उपयोग किया जाता है, इंडस्ट्रीयल एरिया में काम करते हों, तो ऐसे रोगियों को चिकित्सक से मिलकर सीओपीडी का निदान करवाना ही चाहिए।
हर बार हमले सेस्थायी तौर पर 60 प्रतिशत तक खराब होते हैं फेफड़े
डॉ. रावल ने कहा कि हर बार सीओपीडी का हमला होने पर या फेफड़ों का अटैक होने पर फेफड़े स्थायी तौर पर 60 प्रतिशत खराब होते हैं। जितनी बार फेफड़ों का अटैक होता है, उतना ही फेफड़ों को नुकसान होता है और रोगी की मृत्यु की राह बनती है और मृत्यु भी हो सकती है।

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