सोमनाथ महादेव मंदिर की भूमि सूर्य उपासना के लिए भी प्रसिद्ध
Gujarat Hindi News : एक समय प्रभास पाटण में थे 16 सूर्य मंदिर
प्रभास पाटण. आदि देव नमोस्तुभ्यं…पृथ्वी के प्रत्यक्ष देव सूर्यदेव का महापर्व है मकर संक्रांति। स्कंद पुराण जिस समय लिखा गया, तब सोमनाथ प्रभास खंड में सूर्य देवता के 16 मंदिर थे। सूर्य का प्रचलित नाम भास्कर भी है। इसलिए प्रभास पाटण एक समय भास्कर तीर्थ के रूप में भी विख्यात रहा है। सूर्यवंशी आर्य इस क्षेत्र में समुद्र के रासते आए और स्थाई हुए। इसी कालखंड में इस क्षेत्र का नाम भास्कर तीर्थ दिए जाने की कही जाती है।
भारत वन पर्व अध्याय 82 के अनुसार सूर्य इस प्रदेश में अपनी पूर्ण कला के साथ प्रकाशित होते थे। सूर्य ने अपनी इन 16 कलाओं में से 12 कलाओं केा सूर्य मंदिर में रखते हुए चार कला अपने पास रखी थी। इसका उल्लेख प्रभास खंड में किया गया है। बताया जाता है कि वैदिक काल में यहां 12 सूर्य मंदिर थे, जो कालांतर में लुप्त हो गए। हालांकि दो से तीन सूर्य मंदिर अभी स्थित हैं। जब इस क्षेत्र में ऊंचे मकान नहीं थे, तब सूर्योदय का पहला किरण सीधे इन मंदिरों पर पड़ता था।
सोमनाथ ट्रस्ट के महाप्रबंधक विजयसिंह चावडा कहते हैं कि प्रभास क्षेत्र में अनेक सूर्य मंदिर स्थित हैं। सोमनाथ तीर्थ मं सूर्य पूजा कई तरीके से पुण्यदायी मानी जाती है। विशेष कर सोमनाथ मंदिर में मकर संक्रांति की सुबह सूर्यपूजा और उसके बाद गौ-पूजन, तिल अभिषेक, दूध अभिषेक और शृंगार के साथ विशेष महापूजा की परंपरा है। इसके अलावा सोमनाथ के पवित्र त्रिवेणी संगम के पास स्थित शारदा मठ के पीछे के भाग में एक प्राचीन सूर्य मंदिर है। वल्लभीकाल के इस मंदिर का 13वीं-14वीं सदी के दौरान जीर्णोद्धार किया गया था। एक मान्यता के अनुसार यजुवेदाचार्य याज्ञवल्कय महर्षियों ने सोमनाथ मेंं तपस्या की थी। इसी तरह उन्होंने भगवान सूर्यनारायण की भी तपस्या की। इसके बाद श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिता के मध्याह्न सूर्यनारायण प्रसन्न हुए।
उन्होंने वरदान दिया। याज्ञवल्कय ने सूर्यनारायण की जिन मंत्रों से स्तुति की उसका उल्लेख सूर्य स्रोत में है। याज्ञवल्कय महर्षियों ने सोमनाथ में ही तप कर यर्जुर्वेद प्राप्त किया था। वेरावल-सर्वसंग्रह के उल्लेख के अनुसार वेरावल के वखारिया बाजार में सूरज कुंड स्थित है। मंकर संक्रांति के महापर्व पर सोमनाथ के पवित्र त्रिवेणी संगम स्नान, तप, दान, गायों को घास चारा देने के साथ सोमनाथ महादेव की विविध तरीकों से पूजा का विधान है।
प्रभास-सोमनाथ पुस्तक में 16 सूर्यमंदिरों का उल्लेख इतिहासकार शंभुप्रसाद देसाई ने अपने प्रभास-सोमनाथ नामक पुस्तक में इन 16 सूर्यमंदिरों का उल्लेख किया है। इनमें पहला सांम्बादित्य सूर्य मंदिर जो कि सोमनाथ से उत्तर दिशा में स्थित था। हाल में सब्जी बाजार के पास यह म्यूजियम के रूप में स्थित है। दूसरा सागरादित्य सूर्य मंदिर त्रिवेणी मार्ग में हाल में स्थित है। तीसरा गोपादित्य सूर्य मंदिर जो कि रामपुरथ उत्तर में था, अब नहीं है। चौथा चित्रादित्य सूर्य मंदिर ब्रह्माकुंड के पास था, जिसे भाटिया धर्मशाला के पास बताया गया, लेकिन अब यह नहीं है। पांचवा राजभट्टाक सूर्य मंदिर सावित्री के समीप होने का उल्लेख था, बाद में साहु के टांबा के ऊपर बताया गया, लेकिन अब यह नहीं है। छठा नदी किनारे नागरादित्य सूर्य मंदिर था, जो अब टांबा केपास पुराने मंदिर केरूप में विराजित है।
इसी तरह सातवां नंदादित्य सूर्य मंदिर नगर के उत्तर दिशा में था, लेकिन अब यह नहीं है। आठवां कंकेटिकाक सूर्य मंदिर जो कि समुद्र किनारे शशिभूषण के पूर्व था, अब नहीं है। नौवां दुर्वा आदित्य सूर्य मंदिर यादवा स्थान में था, लेकिन अब नहीं है। 10 वां मूल सूर्यमंदिर अभी सूत्रापाडा में विराजित है। वहीं 11वां पर्णादित्य सूर्यमंदिर भी हाल भीम देवल में स्थित है। 12वां बालीक सूर्यमंदिर प्राचीन गांगेया के पास था, लेकिन अब नहीं है। 13वां आदित्य सूर्य मंदिर ऊंबा से 16 मील दूर स्थित आज भी है। 14वां मकल सूर्य मंदिर खेरासा के पास था, जो कि अब नहीं है। 15वां बकुलादित्य सूर्य मंदिर ऊना-देलवाडा के बीच था, अब नहीं है। वहीं 16वां नारदास्थि सूर्य मंदिर भी ऊना के प ास था, परंतु अब नहीं है।