उन्होंने कहा कि देश में शिक्षा के साथ संस्कारों के सिंचन का कार्य करने वाले डीएवी स्कूल की स्थापना के लिए राजकोट से टंकारा के बीच राज्य सरकार की ओर से जमीन की व्यवस्था की जाएगी।
रूपाणी ने कहा कि दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के चिंतक और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल के दौरान दलितों के उद्धार और महिला शिक्षा के लिए कार्य किया था। उन्होंने समाज की कुरीतियों, बाल विवाह और सती प्रथा का पूरजोर विरोध किया था। वर्तमान समय में समाज को दयानंद सरस्वती के अनमोल विचारों की आवश्यकता है।
टंकारा दयानंद सरस्वती की जन्मभूमि है। उनके बचपन का नाम मूलशंकर था। शिवरात्रि के दिन ही मूलशंकर को बोध (दिव्य ज्ञान) मिला था और उन्होंने सांसारिक जीवन का त्याग कर देश और समाज के कल्याण के लिए अपना सर्वस्व जीवन समर्पित कर दिया था। इसलिए आर्य समाज के अनुयायी शिवरात्रि के दिन बोधोत्सव मनाकर महर्षि दयानंद को श्रद्धांजलि देते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में दयानंद सरस्वती का प्रभाव था। 1855 में हरिद्वार के कुंभ मेले में शिरकत करने वे आबू से हरिद्वार गए थे। 1875 में दयानंद सरस्वती ने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। देश के स्वाधीनता संग्राम के अनेकों सेनानियों और महानुभावों के जीवन में स्वामी दयानंद सरस्वती का प्रेरक प्रभाव रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज का योगदान उल्लेखनीय है। सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा था कि हैदराबाद के निजाम के शासन से मुक्ति आर्य समाज के सहयोग के बिना संभव नहीं थी।
इससे पूर्व राज्यपाल देवव्रत और मुख्यमंत्री रूपाणी ने दयानंद सरस्वती के जन्मस्थान का दर्शन किया और यज्ञ में उपस्थित हुए। उन्होंने दयानंद सरस्वती के जीवन दर्शन पर आधारित प्रदर्शनी भी देखी।