जेल से रिहा हुए तो दी थी भेंट बताया जाता है कि वर्ष १८५६-७० के दौरान वडोदरा की राजगद्दी पर तत्कालीन महाराजा खंडेराव गायकवाड़ थे। उनके छोटे भाई मल्हारराव गायकवाड़ की अंग्रेजों के साथ नहीं बनती थी। किसी न किसी कारण से अंग्रेज उन्हें परेशान करते थे। अंग्रेजों ने वर्ष १८६३ में उनपर गलत आरोप लगाया और पादरा की जेल में बंद कर दिया। खुद को कारावास में देखकर दु:खी हुए मल्हारराव ने जेल में ही मां तुलजा भवानी की आराधना की और मन्नत मांगी कि यहां से निर्दोष रिहा हुआ तो रणु में दर्शन करने जाएंगे और वस्त्र, आभूषणों से श्रृंगार करेंगे। उसी रात मल्हारराव जेल से रिहा होने पर वे रणु गए और माताजी का दर्शन करते हुए वस्त्र व आभूषण भेंट किए। यह वस्त्र एवं आभूषण नवरात्र के दौरान ही पहनाए जाते हैं।
यह प्राचीन मंदिर पहले छोटा था, लेकिन अब इसे बड़ा बनाया गया है। फिलहाल ११वीं पीढ़ी के कविन्द्रगिरी महंत मंदिर के गादीपति हैं। गादीपति बनने के बाद उन्होंने मंदिर व्यवस्था में सुधार कर नवीनीकरण कार्य करवाया।
रात को ही पहुंच गए थे मंदिर मल्हारराव जेल छूटने के बाद रात को ही मंदिर पहुंचे और माताजी के दर्शन किए थे। उन्होंने माताजी को मुकुट, हार, कंगन आदि हीरे-माणेक के आभूषण भेंट किए थे। १५० वर्ष पुराने आभूषण पादरा कोष में रखे गए हैं।
-कविन्द्रगिरी-महंत, तुलजा माताजी का मंदिर, रणु।