जिला प्रशासन ने 50 माइक्रोन से पतले प्लास्टिक के उत्पादन, संग्रहण, परिवहन, खरीद-फरोख्त पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है। कोरोना संक्रमण काल में प्रशासन ने पूरा ध्यान कोरोना से बचाव व जरूरी सावधानियों से निपटने में लगा रखा है। लॉकडाउन के बाद सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बढ़ा है। प्लास्टिक की पतली थैलियां, प्याले, कप, छोटी बोतलें, स्ट्रा व कुछ पाउच आदि प्लास्टिक पेट्रोलियम आधारित उत्पाद हैं। इनके उत्पादन पर खर्च बहुत कम आता है, जिसके परिणामस्वरूप रोजाना के बिजनेस व कारोबारी इकाइयों में इनका इस्तेमाल जमकर होने लगा है। मैन्यूफैक्चर्स चोरी-चोरी बाजारों में पतले प्लास्टिक के उत्पाद सप्लाय कर रहे हैं।
इंसान और पर्यावरण पर काफी बुरा असर कचरे के डस्टबीनों में प्लास्टिक की थैलियां व अन्य उत्पाद ही ज्यादा देखने को मिलती हैं। प्लास्टिक के कचरे, उसकी सफाई और उपचार में काफी खर्च होता है। जानकारों के अनुसार प्लास्टिक के अंदर जो रसायन होते हैं, उनका इंसान और पर्यावरण पर काफी बुरा असर पड़ता है। इसके अंदर का केमिकल बारिश के पानी के साथ जलाशयों में जाता है, जो काफी खतरनाक है। दुकानदारों का कहना है कि प्लास्टिक बैन के बाद कोई मजबूत विकल्प नहीं मिला है। कागज, कपड़ा, जूट, लेदर आदि के बैग महंगे होने से ग्राहक व दुकानदार दोनों को रास नहीं आ रहा है। लिहाजा, गांवों में लगने वाले हाट बाजार मेें व्यापारी पतली प्लास्टिक थैलियों का खुलेआम प्रयोग कर रहे हैं।