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पीतल-पटेल के साथ विकास की जंग

locationअहमदाबादPublished: Nov 10, 2017 06:05:48 am

अहमदाबाद से लगभग सवा तीन सौ किलोमीटर दूर जामनगर जिला सामरिक दृष्टि से प्रमुख तो है ही, साथ ही निजी क्षेत्र तेल शोधन की दो इकाइयों की वजह से भी इसकी मह

Gujarat election 2017

Gujarat election 2017

जामनगर।अहमदाबाद से लगभग सवा तीन सौ किलोमीटर दूर जामनगर जिला सामरिक दृष्टि से प्रमुख तो है ही, साथ ही निजी क्षेत्र तेल शोधन की दो इकाइयों की वजह से भी इसकी महत्ता है। इससे भी महत्वपूर्ण यहां के पीतल उद्योग की अलग पहचान है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बिना तीन चुनावों के बाद यह पहला चुनाव होगा जहां दोनों दलों की परीक्षा होने वाली है। भाजपा यहां 22 वर्ष से लगातार जीत को दोहराने को बेताब है, वहीं कांग्रेस मोदी की गैर मौजूदगी में पटेलों के बलबूते वापस लौटने की कड़ी मेहनत कर रही है।

जामनगर जिले के 10.65 लाख मतदाता यहां पांच सीटों में विभाजित हैं, जिसमें अकेले जामनगर शहर में जामनगर उत्तर और जामनगर दक्षिण सीट के अलावा जामनगर ग्राम्य के लगभग 20 बूथों के मतदाता भी मतदान करेंगे। शेष ग्रामीण क्षेत्र में है। कालावाड व जामजोधपुर निखालस ग्रामीण क्षेत्रों की सीटे हैं।

2012 में विधानसभा चुनाव में यहां जामनगर ग्रामीण व जामनगर उत्तर कांग्रेस के खाते में थी, वहीं शेष तीनों कालावाड (सु.) जामनगर दक्षिण व जाम जोधपुर ? भाजपा के पास है। जाम जोधपुर से विधायक चिमन सापरिया मंत्री भी हैं। दो माह पूर्व हुए राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल के दांव पर कांग्रेस के दोनों विधायक जामनगर ग्राम्य से राघवजी पटेल व जामनगर दक्षिण से धर्मेन्द्र जाडेजा पाला बदलकर अब भाजपा में आ गए हैं।

चार स्थानीय मुद्दे भी :

इस सबके बीच में शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं को टटोलने का प्रयास किया जाता है तो चार मुद्दे खुलकर सामने आ रहे हैं, जिसमें जीएसटी की मार खाया ब्रास (पीतल) उद्योग, पटेलों को आरक्षण का मुद्दा व किसानों को कपास व मूंगफली की फसल के उचित दाम न मिलना बताया जाता है। वहीं भाजपा विकास के मुद्दे पर फिर अपनी नैया पार करने लगाने के मूड़ में है।

यहां दस हजार से अधिक छोटी बड़ी पीतल उद्योग से जुड़ी इकाइयां हैं, जिनमें तीन लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। 60 प्रतिशत से अधिक मजदूर यूपी व बिहार के हैं। जीएसटी नम्बर के चक्कर में बड़ी मुश्किल से छोटी इकाइयां पटरियों पर आ रही हैं पर उन्हें भी पूरे काम लायक स्क्रेप (भंगार पीतल) नहीं मिल रहा है, जिसकी वजह से सप्ताह में तीन से चार दिन ही काम मिल रहा है। इसके बावजूद भी उन्हें मोदी पर भरोसा है कि वे उनकी कठिनाइयों को दूर करेंगे। नोटबंदी अब कोई मुद्दा नहीं रहा।

ग्रामीण सीटों जाम जोधपुर व जामनगर ग्रामीण में कड़वा पटेलों का दबदबा है जो हार्दिक पटेल के सहारे अपनी नैया पार लगाना चाहते हैं लेकिन अहीर, क्षत्रिय जाति के वोटों पर दोनों दलों की नजर है। झालावाड सीट भी पटेलों के प्रभुत्व वाली सीटों यह सुरक्षित होने से जातिगत समीकरण गड़बड़ाने लगते हैं। ग्रामीण क्षेत्र की सीटों के मतदाताओं से बातचीत करने पर पता चलता है कि वे कपास व मंूगफली के फसल के उचित दाम न मिलने पर निराश जरूर है।

अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि क्या ये मुद्दे आखिर कब तक टिके रहेंगे। प्रत्याशियों के चेहरे सामने आने के बाद इन मुद्दों के साथ जातिगत समीकरण भी हावी होंगे पर फिलहाल देखा जाए तो पीतल उद्योग व पटेल आरक्षण के साथ विकास का संग्राम चल रहा है। धीरे से व्यापारी व उद्योगपति कहते हैं, बवाल नहीं होना चाहिए शांति रहनी चाहिए जिससे धंधा कर सकें।

जाजम जमी, चौसर की गोट नहीं बिछी :

चुनाव की जाजम तो जम गई है, लेकिन चौसर की गोटियां अभी निर्धारित नहीं (प्रत्याशी) होने से ऊपरी तौर पर तैयारियां पूरी दिख रही है। मतदाता को रिझाने के लिए अभी बड़े नेताओं के दौरे तय हो रहे हैं। अगले सप्ताह से इनका लवाजमा दिखने लगेगा।

राजेन्द्रसिंह नरुका

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