– सरदार सरोवर योजना में नर्मदा नदी का बहाव-सिंचित क्षेत्र 97,410 किलोमीटर है। अब तक नर्मदा नदी में बहने वाले पानी में से सिर्फ १० फीसदी का उपयोग हुआ है। नर्मदा नदी के पानी के सिंचाई एवं बिजली उत्पादन के लिए उपयोग करने का आयोजन वर्ष 1946 में शुरू हुआ। अनुसंधान पूरा होने के बाद गुजरात में स्थित गोरा गाम के निकट बांध स्थल का चयन किया गया था। योजना का शिलान्यास पांच अप्रेल 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के हाथों किया गया।
उसके बाद बांध की ऊंचाई संभावनाओं पर विचार विमर्श किया गया। उसके बावजूद कोई समझौता संभव नहीं हुआ, तो केन्द्र सरकार ने नदी जल विवाद कानून अन्र्तगत वर्ष 1969 में नर्मदा जल विवाद आयोग गठित किया।
– नर्मदा घाटी की सभी योजनाओं के आयोजन,पुनर्वास एवं पर्यावरण जैसे अनुषंाज्ञिक पहलुओं पर गंभीरता पूर्वक अध्ययन के बाद नर्मदा जल विवाद आयोग ने दिसम्बर 1979 में अपना अन्तिम निर्णय दिया। उसके अनुसार नर्मदा घाटी प्रदेश के विकास के लिए कुल 30 बड़े,135 मझोले एवं तीन हजार छोटे बांध का काम तय हुआ। – ३० बड़े बांधों में से गुजरात में एक मात्र सरदार सरोवर बांध नर्मदा के अन्तिम छोर की योजना है। उसका निर्माण कार्य केवडिया में इस प्रकार से किया गया।
समयवार ब्यौरा:-
-1-5 1960 से 18-9-1963
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीवराज मेहता के हाथों शिलान्यास करके नवागाम बांध से अधिकतम लाभ हासिल करने का अध्ययन शुरू किया गया।
-19-9-1963 से 20-9-1965
तत्कालीन मुख्यमंत्री बलवंतराय मेहता के शासनकाल में बांध की ऊंचाई बढ़ाने के भोपाल समझौते को अस्वीकार किए जाने से केन्द्र सरकार ने खोसला समिति का गठन किया। समिति ने मास्टर प्लान पेश किया।
-20-9-1965-12-5-1971
राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेन्द्र देसाई के शासनकाल में तैयार की गई खोसला समिति की रिपोर्ट को अन्य राज्यों की ओर से अस्वीकार किए जाने पर गुजरात सरकार ने केन्द्र सरकार के समक्ष गुहार लगाई,और केन्द्र ने नर्मदा जल विवाद आयोग का गठन किया था।
-12-5-1971 से 17-3-1971
गुजरात में राष्ट्रपति शासन में वर्ष 1972 में नर्मदा जल आयोग ने प्राथमिक मसलों पर अपना निर्णय दिया।
-17-3-1971 से 17-7-191973
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री घनश्याम ओझा के शासनकाल में नर्मदा जल विवाद आयोग के समक्ष कुछ मसले प्रस्तुत किए गए।
-17-7-1973 से 9-2-1974
तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के समक्ष नर्मदा योजना पर निर्णय करने के लिए कई बार गुहार लगाई। उसके आधार पर नर्मदा जल विवाद आयोग ने नर्मदा योजना को लेकर कई महत्वपूर्ण मुद्दे तय किए। उनमें राष्ट्र का हित सवोच्च माना जाए। प्रादेशिक अधिकार के हितों को राष्ट्र के हित में ध्यान रखकर पूरी तरह से सुरक्षा की जाए। इस योजना में बिजली उत्पादन करने वाली सिंचाई योजनाओं को प्राथमिकता दी जाए। इसके लिए पहले बिजली उत्पादन एवं सिंचाई के लिए योग्य पानी का आवंटन किया जाए। अन्तरराष्ट्रीय सीमा के निकट रेगिस्तानी-रण विस्तारों में सिंचाई के लिए पानी का अधिकमत समावेश करके ज्यादा से ज्यादा इलाकों को सिंचाई सुविधा का लाभ मुहैया कराया जाए।
आयोग के उपरोक्त मुद्दों के निर्णय के सन्दर्भ में सम्बन्धित राज्यों की ओर से की गई स्पष्टताओं को शामिल करके सात दिसम्बर 1979 को अन्तिम निर्णय दिया गया। उसके अनुसार बांध की अ पूर्ण ऊंचाई 138.68 मीटर एवं अधिकतम जलस्तर ऊंचाई 140.21 मीटर रखनी होगी। हेड रेग्यूलेटर पर मुख्य नर्मदा नहर का पूर्ण जलस्तर 91.44 मीटर रखना होगा। 75 फीसदी आधारितता के अनुसार हासिल होने वाले 2810 लाख एकड़ फीट पानी का विभिन्न राज्यों के बीच वितरण निर्धारित किया गया। उसमें गुजरात को 9.10 लाख एकडफ़ीट, मध्य प्रदेश 18.25 लाख, राजस्थान 0.50 लाख एवं महाराष्ट्र को 0.25 लाख एकडफ़ीट शामिल है।
12 अप्रेल 1977 से 17 फरवरी 1990 के दौरान नर्मदा जल विवाद के समक्ष कई विभिन्न गुहार लगाई और आयोग के फैसले के बाद बांध के निर्माण की प्राथमिक कार्रवाई शुरू हुई।
सात जून 1980 से छह जुलाई 1985 तक तत्कालीन मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के शासन काल में योजना का निर्माण कार्य शुरू करने के लिए केन्द्र सरकार के समक्ष पर्यावरण सम्बद्ध स्वीकृति के लिए गुहार लगाई गई। विश्व बैंक की ओर से वित्तीय सहायता देने का निर्णय हुआ छह जुलाई 1985 से 10 दिसम्बर 1989 के बीच मुख्यमंत्री अमर सिंह के शासन काल में केन्द्र सरकार की पर्यावरणीय स्वीकृति मिली। इससे मुख्य बांध का निर्माण कार्य शुरू करके 21.5 मीटर तक पूरा किया गया।
गुजरात सरकार ने सरदार सरोवर नर्मदा निगम को सार्वजनिक उपक्रम के रूप में गठन किया, जिसे केन्द्र सरकार के योजना आयोग ने स्वीकृति दी। दिसम्बर 1989 से अक्टूबर 2001 तक तत्कालीन मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी, चिमनभाई पटेल, छबीलदास मेहता, सुरेश मेहता, शंकर सिंह वाघेला से लेकर केशुभाई पटेल तक के शासनकाल में बांध की ऊंचाई 80.3 मीटर से 90 मीटर तक ले जाई गई।
सात अक्टूबर 2001 से तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के शासन काल तक में नर्मदा योजना के आईबीपीटी का काम पूरा हो गया। शाखा नहरों के जरिए सौराष्ट्र कच्छ के इलाकों में पीने का पानी पहुंचाया गया।
नर्मदा महोत्सव के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वागत के लिए डभोई की ऐतिहासिक इमारतों को सजाया गया।