शास्त्री नगर निवासी निष्ठा और वैभव के सिर से कुछ साल पहले मां सुनीता का साया उठ गया। कैंसर की चपेट में वह ऐसी आई कि लाख कोशिशों के बावजूद बचाया ना जा सका। निष्ठा और वैभव कहते हैं कि हमें उम्मीद थी कि हमारी ममता के आगे बीमारी हार जाएगी, लेकिन हम गलत साबित हुए। हर जरूरत, हर शिकवा और शिकायत हम मां से ही करते थे और वही हमारी हर परेशानी का आखिरी हल थी, इसलिए उनके जाने के बाद मानो हम अपंग हो गए हों।
मां बन गए पापा वक्त के साथ ही जिंदगी गुजरने लगी, लेकिन एक दिन आभास हुआ कि कोई तो है जिसने मां की जगह ले ली है। बिना कुछ कहे-सुने वो मां की तरह रात भर जाग रहा है। हमें खाना खिलाने के बाद खा रहा है। हमें सुलाने के बाद सो रहा है। हर वो काम कर रहा है जो मां करती थी। जवाब था, पापा अनुराग मलिक। पिता की जिम्मेदारियां निभाने के साथ ही मां का दुलार देने में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी। हमें दुनिया के सारे सुख देने के लिए वह हर परेशानी झेलने को तैयार रहते।
तुम सा कोई नहीं पापा उनकी तपस्या के सामने बेहद छोटा शब्द लगता है थैंक्स, लेकिन वह इसके असली हकदार हैं। निष्ठा कहती हैं कि जयपुर से बीबीए करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए लंदन जा रही हूं तो सिर्फ पापा की वजह से। वैभव को भी उन्होंने इस लायक बना दिया कि बीएमएस करने मुम्बई यूनिवर्सिटी जा रहा है। मां की तो हर पल याद आती है, लेकिन यह वाला मदर्स डे हम अपने पापा को समर्पित करना चाहते हैं, क्योंकि किसी मां से कम नहीं है हमारे पापा।