एक ओर तो निगम हाथोंहाथ विद्युत कनेक्शन की बात करता है और इसके लिए बाकायदा शिविर तक लगाए जाते हैं। लेकिन, कुछ कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इन शिविरों में कार्यालय में जमा पत्रावलियों को ही निपटाकर इतिश्री कर ली जाती है। कनेक्शन लेना निहायत ही दुरूह कार्य हो चुका है। उपभोक्ता शिवसिंह ने बताया कि उसका घर शहरी क्षेत्र में बना है, लेकिन विविध कारणों से उसे ग्रामीण फीडर से विद्युत कनेक्शन का दबाब देकर लंबे समय से परेशान किया जा रहा है। रामगोपाल ने बताया कि कनेक्शन के नाम पर इतने चक्कर कटवाए जाते है कि जूते तक घिस जाते हैं। परेशान होकर आवेदक घर बैठ जाते हैं। वहीं कर्मचारी गाहे बगाहे विजिलेंस कर भी लेते हैं तो राजनीतिक दबाव से वे 25 से 30 प्रतिशत राशि में ही समायोजित हो जाते हैं। जिससे इनको फिर विद्युत चोरी की शह मिलती है। हालांकि निगम बिना कनेक्शन वाले घरों व प्रतिष्ठानों का सर्वे कई बार करवा चुका है, लेकिन अब तक कनेक्शन के लिए सख्ती न कर पाना निगम की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े कर रहा है।
गौरतलब है कि शहरी क्षेत्र में केबल डाली गई हैं, वह कनेक्शन लोड के आधार पर डाली गई है, जबकि वास्तविक लोड उन पर काफी ज्यादा हो जाता है। जिससे वे गर्म होकर शार्ट हो जाती हैं। बार-बार टूट जाती है। जिसके चलते उन्हें जोडऩे में निगम दस्तों को घंटों का समय लग जाता है। जिस दौरान शट डाउन से उपभोक्ताओं की बिजली बंद हो जाती है।
वहीं राजाखेड़ा कृषि आधारित क्षेत्र है, जहां पशुपालन भी अधिकांश घरों में है। बिना कनेक्शन के विद्युत की मुफ्त उपलब्धता के चलते जानवरों का भोजन भी बड़ी क्षमता के हीटर्स पर बनाया जाता है। वहीं घर-घर मे लगे अमानक कबाड़े के वातानुकूलित संयंत्र चोरी को पूरी क्षमता तक बढ़ा रहे हैं। जिनको रोकने में निगम असफल ही रहा है