वर्ष 2014 के आम चुनाव और इस आम चुनाव में केवल एक ही फर्क रहा। पिछली बार मोदी लहर दिखाई दे रही थी। इस बार भी नाम तो मोदी का ही चला, लेकिन 2014 वाली लहर दिखाई नहीं दे रही थी। फिर भी भाजपा ने पनडुब्बी रूपी रणनीति से करिश्मा कर दिखाया।
अजमेर लोकसभा क्षेत्र के चुनाव प्रचार के दिनों में भी ऐसा कहीं कोई माहौल नहीं था। पत्रिका टीम ने पूरे क्षेत्र में ग्राउंड स्तर के मतदाता की नब्ज टटोली थी। तब क्षेत्र के मतदाताओं ने समस्याएं तो गिनाई, लेकिन वोट किसे देंगे, उस पर अधिकतर जगहों पर लोगों ने खुलकर कुछ नहीं बोला। कुछ जगह लोगों ने यह जरूर कहा कि परेशानियां व समस्या अपनी जगह है और राष्ट्र का मुद्दा अपनी जगह। यानी यूं कहें कि इस चुनाव में पूरी तरह से राष्ट्रवाद हावी रहा। इस राष्ट्रवाद के कारण ही मोदी मैजिक चला।
यही कारण रहा कि क्षेत्र की जनता ने स्थानीय मुद्दों, परेशानियों एवं उनके समाधान के लिए चुनावी जुमलों को भी दरकिनार कर दिया। जनता ने इस जनादेश से यह भी संदेश दे दिया कि ठीक एक साल पहले अजमेर में उपचुनाव में भाजपा की हार क्यों हुई थी? तब तत्कालीन सरकार के प्रति नाराजगी का खामियाजा उपचुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में भी खुलकर दिखा। उपचुनाव में भी न कांग्रेस जीती थी और न इस चुनाव में कांग्रेस की हार हुई। बल्कि उपचुनाव में जनता ने भाजपा को हराया था, इसलिए कांग्रेस के डॉ. रघु शर्मा जीत गए और इस चुनाव में मोदी को जिताया है, इसलिए रिजु झुनझुनवाला की करारी हार हुई।
अब सवाल है, तो इस बार उम्मीद से दोगुने अंतर से भाजपा की जीत कैसे हुई, तो इसका सीधा सा कारण यह है कि उपचुनाव में लगे झटके से न केवल पूरे प्रदेश बल्कि अजमेर भाजपा ने अपनी रणनीति में भी सुधार किया। लेकिन कांग्रेस यहां सालों से चल रही गुटबाजी, टिकट को लेकर चले घमासान-खींचतान से ही नहीं उबर पाई। इस बीच कांग्रेस ने काफी देरी के बाद बाहरी प्रत्याशी के रूप में उद्यमी रिजु झुनझुनवाला को मैदान में उतार कर भाजपा के लिए बड़ी जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया। भाजपा को घर बैठे स्थानीय व बाहरी मुद्दा मिल गया। इधर टिकट देरी से मिलने के कारण झुनझुनवाला को तो लोकसभा क्षेत्र के कई कस्बों में दुबारा जाकर वोट मांगने का मौका तक नहीं मिला। यानी रिजु की किस्मत की नाव स्थानीय कांग्रेस नेताओं, मंत्रियों व विधायकों के जिम्मे ही थी। जहां वो लेकर गए, जहां मीटिंग करवाई, रिजु वहां गए, लेकिन चुनावी बैठकों व सभाओं में जुटी भीड़ को वोटर में बदलने की रणनीति में कांग्रेस प्रभावी प्रयास नहीं कर पाई। जानकार मान रहे हैं कि यदि उपचुनाव की जीत के बाद कांग्रेस अपनी रणनीति को मजबूत करती तो भी हार तो होती, लेकिन हार के अंतर का आंकड़ा जरूर कम हो जाता।
खैर हार-जीत की गणित व अंतर का आकलन तो अब नेताओं को करना है, लेकिन बड़ी जीत का सेहरा बांधने वाले भागीरथ चौधरी पर जनता ने बड़ा भार डाल दिया है। प्रत्याशी चौधरी खुद को भी 2 लाख मतों के अंतर से जीत होने की उम्मीद थी। लेकिन अजमेर क्षेत्र की जनता ने उम्मीद से दोगुने अंतर के वोटों से झोली भर कमल खिला दिया है। अब भागीरथ चौधरी की बारी है कि वे जनता की उम्मीदों के अनुरूप कितने भगीरथी प्रयास करते हुए विकास रूपी कमल खिलाते हैं। क्योंकि अजमेर लोकसभा क्षेत्र में पेयजल किल्लत की अहम परेशानी है। सबसे पहले पेयजल सुदृढ़ीकरण बड़ा काम करना है। इसके अलावा अजमेर में पर्यटन पर विश्वस्तरीय प्रयास करते हुए अजमेर को पर्यटन नक्शे पर लाना है और औद्योगिक विकास की रीढ़ भी मजबूत करनी है। शिक्षा और रेलवे अजमेर की पहचान है लेकिन आज दोनों क्षेत्रों में अजमेर पिछड़ा हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में तो राज्य के कई जिले अजमेर से काफी आगे निकल चुके हैं। एेसे कई मुद्दे हैं जो जनता की अपेक्षाएं हैं, इन पर खरा उतरना भाजपा के लिए चुनौती होगी।