इस अवसर पर महानगर अध्यक्ष सरदारमल जैन, उपाध्यक्ष सत्यनारायण भंसाली, शशिप्रकाश इन्दौरिया, संजय तिवाड़ी, कैलाशसिंह भाटी, पं. किशन शर्मा, सुरेन्द्रसिंह सिसोदिया, ओमप्रकाश राय, भीमदत्त शुक्ला, चन्द्रप्रकाश, अनिल नरवाल, प्रशान्त यादव, रविन्द्र चौहान, नीरज पारीक, हेमन्त गहलोत, गौरव भाटी, सीमा गोस्वामी सहित अनेक कार्यक्रर्ता मौजूद थे। पुलिस कर्मियों से नोकझोंक : प्रदर्शन के दौरान कलक्ट्रेट में जाने के दौरान कार्यकर्ताओं की पुलिस कर्मियों के साथ नोकझोंक हुई। इसकी वजह से कार्यकर्ता मुख्य द्वार पर धरने पर बैठ गए। आखिर एडीएम सिटी अरविन्द सेंगवा ने मुख्य द्वार पर आकर कार्यकर्ताओं से ज्ञापन लिया गया।
उर्स में दिख सकता है असर
जिस तरह पाकिस्तान ने कुलभूषण में हलकापन दिखाया है, उसका उर्स अगले साल उर्स में दिख सकता है। ख्वाजा साहब के उर्स में प्रतिवर्ष पाकिस्तान से करीब 500 से ज्यादा जायरीन आते हैं। इनकी अजमेर दरगाह में हाजिरी की तमन्ना रहती है। कुलभूषण की मां और पत्नी से मुलाकात कराने में जिस तरह पाकिस्तान ने अपनी असलियत दिखाई है, उसके चलते अगले साल वहां के जायरीन का आना टल सकता है। संभवत: भारत सरकार वहां के लोगों को वीजा जारी करने से मना कर सकती है। पूर्व में भी पठानकोट हमला, उरी हमले के विरोध के दौरान ऐसा हो चुका है।
जिस तरह पाकिस्तान ने कुलभूषण में हलकापन दिखाया है, उसका उर्स अगले साल उर्स में दिख सकता है। ख्वाजा साहब के उर्स में प्रतिवर्ष पाकिस्तान से करीब 500 से ज्यादा जायरीन आते हैं। इनकी अजमेर दरगाह में हाजिरी की तमन्ना रहती है। कुलभूषण की मां और पत्नी से मुलाकात कराने में जिस तरह पाकिस्तान ने अपनी असलियत दिखाई है, उसके चलते अगले साल वहां के जायरीन का आना टल सकता है। संभवत: भारत सरकार वहां के लोगों को वीजा जारी करने से मना कर सकती है। पूर्व में भी पठानकोट हमला, उरी हमले के विरोध के दौरान ऐसा हो चुका है।
अजमेर में होते रहे हैं प्रदर्शन
पाकिस्तानी जत्थे के खिलाफ अजमेर में हमेशा प्रदर्शन होते रहे हैं। 90 के दशक में भी पाकिस्तानी जत्थे का तत्कालीन नगर परिषद के सभापति वीर कुमार ने इस्तकबाल करने से मना कर दिया था। इसके बाद नगर निगम ने यह परम्परा पूरी तरह बंद कर दी।
पाकिस्तानी जत्थे के खिलाफ अजमेर में हमेशा प्रदर्शन होते रहे हैं। 90 के दशक में भी पाकिस्तानी जत्थे का तत्कालीन नगर परिषद के सभापति वीर कुमार ने इस्तकबाल करने से मना कर दिया था। इसके बाद नगर निगम ने यह परम्परा पूरी तरह बंद कर दी।