पिछले साल मानसून की बेरुखी से अजमेर बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है। अजमेर जिले की लाइफ लाइन कहे जाने वाले बीसलपुर बांध में नाममात्र का पानी रह गया है। इसके कारण जलदाय विभाग ने अजमेर शहर और जिले में जलापूर्ति का अंतराल चार-चार दिन तक कर दिया है जिससे पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। ऐसी स्थिति में अगर थोड़ा प्रयास किया जाए तो प्राचीन कुएं-बावडिय़ां जल संकट के निवारण में काफी हद तक खेवनहार साबित हो सकते हैं।
इसलिए कहलाती है बंजारों की बावड़ी अजमेर क्षेत्र में सैकड़ों प्राचीन कुएं-बावडिय़ां हैं जिनकी खुदाई की जाए तो गुजारे लायक पानी जुटाया जा सकता है। ऐसी ही एक बावड़ी गेगल के निकट कायड़ गांव में ‘श्रवण कुमार के तालाब’ की पाल पर स्थित प्राचीन बंजारों की बावड़ी है। मध्यकाल में बनी बंजारों की बावड़ी न केवल प्राचीन स्थापत्य कला का बेहतर नमूना है बल्कि एक पुरा धरोहर भी है। क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि पुराने समय में व्यापार के लिए इधर से उधर प्रवास करने वाले बंजारे जहां रुकते थे वहीं रास्ते में स्मारक, चबूतरे और बावडिय़ों का निर्माण कर देते थे। ऐसे ही खानाबदोश बंजारों ने स्थायी जल स्रोत के रूप में इस बावड़ी का निर्माण किया था। इसी कारण इसे बंजारों की बावड़ी के नाम से जाना जाता है।
गोलाकार सीढिय़ां.. बावड़ी में नीचे कुएं तक जाने के लिए सीढिय़ां बनी हुई है। वहीं ऊपर के तल पर एक तिबारा है जिसके नीचे एक बड़ा द्वार है। नीचे के तल में सीढिय़ां खत्म होने पर बावड़ी गोलाकार कुएं का रूप ले लेती है। बावड़ी के पास एक पुरानी मस्जिद के अवशेष अब भी मौजूद हैं। वहीं एक-दो कब्रें और मजारें बनी हुई हैं। बावड़ी जहां बनाई गई थी उसकी भूमि राजस्व रिकॉर्ड में एक परिवार के नाम दर्ज है। अलबत्ता इस बावड़ी को श्रमदान करके गहरा करवा दिया जाए तो जल संकट में यह काफी उपयोगी साबित हो सकती है।