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अजमेर

Ajmer central Jail-मोहरे बदलते रहे, नहीं बदला वसूली का खेल

अजमेर सेन्ट्रल जेल में बंदियों से सुविधा शुल्क वसूली का खेल : अफसर के मंशानुसार मातहत कर लेते हैं व्यवस्था में फेरबदल

अजमेरJul 21, 2019 / 01:28 am

manish Singh

Extortion in ajmer central jail

Ajmer central Jail-मोहरे बदलते रहे, नहीं बदला वसूली का खेल

अजमेर. सेन्ट्रल जेल अजमेर में बंदियों से सुविधा शुल्क वसूली का खेल कोई नया नहीं है। यह व्यवस्था सालों से बदस्तूर जारी है। बस, जेल के अफसर के मंशानुसार मातहत कर्मचारी व्यवस्था में फेरबदल कर लेते हैं। इससे सुविधा शुल्क का यह खेल अपने-अपने हिसाब से चलता रहता है।
जेल में आने वाले बंदियों को सुविधा के लिए जेल अधीक्षक व उसकी मिजाजपुर्सी में लगे नम्बरदार, जेल कर्मचारियों की जरूरत का ध्यान रखना होता है। मंशानुसार काम नहीं करने पर जेल में पाबंद बाड़ा (तन्हाई) की सजा भुगतनी पड़ती है। ऐसे में यहां आने वाला बंदी जेल की बैरक में मिलने वाली प्रताडऩा से बचने के लिए जेल में लगे नम्बरदार, जेल कर्मी के मंशानुसार ही सेवा शुल्क अदा करते रहते है। अजमेर सेन्ट्रल जेल में पूर्व में ऐसे कई मामले सामने आए जब ‘साहबÓ को खर्चा-पानी में टेबल, कुर्सी के अलावा पलंग तक मंगवाकर दिया गया। उसके बदले में बंदी को बाहर का घर से बना खाना, जेल में व्यसन की सुविधा, सजायाफ्ता बंदी को जेल में ट्रेक सूट पहनने जैसी की छूट मिल जाती है।
बदल देते है बैरक

जेल प्रशासन बंदी को परेशान करने और उसको डराने के लिहाज से जान का खतरा बताकर भी वार्ड और बैरक बदल देते है। जब बंदी दूसरी बैरक में परेशान होती है तो मजबूरन जेल की व्यवस्था और डिमांड पूरी करने पर राजी हो जाता है। फिर वह भी जेल व्यवस्था में शामिल हो जाता है।
यह नाम रहे चर्चित

अजमेर सेन्ट्रल जेल में जो काम मौजूदा स्थिति में सजायाफ्ता बंदी दीपक उर्फ सन्नी, शैतान सिंह, रमेश सिंह व अन्य बंदी कर रहे। दो साल पहले सजायाफ्ता बंदी सतु उर्फ सत्यनारायण, लादू महाराज, अजीजुर्रहमान और अब्दुल हकीम उर्फ भूरा करते थे। जेल के बाहर दलाली का काम बंदी की रिश्तेदार चांदनी नामक महिला बैंक खाते में रकम ट्रांसफर करवाने और वसूली का कामकाज करती थी जबकि मुख्यद्वार पर सलमान नामक युवक जरूरत का सामान पहुंचाने व लेनदेन का काम निपटाता था।
दो दर्जन से ज्यादा मामले
जेल में मोबाइल इस्तेमाल के दो दर्जन से ज्यादा मामले सिविल लाइन्स थाने में दर्ज हो चुके है लेकिन अब तक किसी भी मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है। इसका मुख्य कारण जेल में इस्तेमाल किया जाने वाला मोबाइल और सिमकार्ड छद्म नाम से इस्तेमाल किया जाता है। जिसको पुलिस भी साबित नहीं कर पाती है। ऐसे में जेल प्रशासन की ओर से भी आपत्तिजनक वस्तु मिलने पर प्रकरण दर्ज करवाने की कार्रवाई कर इतिश्री कर ली जाती है।
इन्होंने की थी शिकायत

जेल में वसूली के खेल का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सिविल लाइंस थाने में बीते तीन साल में करीब एक दर्जन अवैध वसूली व मारपीट के मुकदमा दर्ज है। इसमें बंदी मुकेश उर्फ प्रेम, मेन्युअल शेख, करण उर्फ बाबू व बंदी सद्दाम के परिजन ने जेल में मारपीट की शिकायत सिविल लाइंस थाना, एडीएम सिटी तक को शिकायत की थी। बंदी सद्दाम से सत्तू उर्फ सत्यनारायण ने 20 हजार की डिमांड की थी। रकम नहीं देने पर बैरक के गेट पर सिर मारने से चोट आई थी।
भीतरी व्यवस्था दीवारों की तरह कमजोर
अजमेर सेन्ट्रल जेल को प्रदेश की सबसे व्यवस्थित और सुरक्षित जेल में माना जाता था। ब्रिटिश काल में निर्मित जेल में बीते कुछ साल में बिगड़ी व्यवस्था ने इसकी सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा दिया। यहां खालिस्तान समर्थक उग्रवादी व आतंकी शब्बीर जैसे को रखे जा चुका है। इसके अलावा गैंगस्टर आनन्दपालसिंह, डकैत धनसिंह, भंवरी हत्याकांड के आरोपी मलखान सिंह, सिनोदिया हत्याकांड के आरोपी बलवाराम जाट, शार्पशूटर शहजाद को रखा जा चुका है लेकिन बीते कुछ सालों में अपराध और अपराधियों की संख्या बढऩे के साथ जेल की भीतर की व्यवस्था दीवारों की तरह कमजोर हो चुकी है।
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