अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में वर्ष 2007 में रमजान के महीने में हुए बम विस्फोट में तीन जनों की मौत हो गई थी जबकि करीब 15 अन्य घायल हुए थे। अजमेर के इतिहास में विश्व प्रसिद्ध दरगाह जैसे धार्मिक स्थल पर हुृए विस्फोट ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था।
अनुसंधान में वारदात के पीछे विशेष संगठन का भी नाम आया। बाद में इसकी जांच सीबीआई की विशेष अदालत ने की। अब सभी की निगाहें बुधवार को संभावित सुनाए जाने वाले फैसले पर है।
तीन जनों की हुई थी मौत मामले में हैदराबाद निवासी और अजमेर में दुकान लगाने वाले सैय्यद सलीम, मोहम्मद शोएब की मौके पर मौत। डा. बद्रीऊल हसन की जयपुर में इलाज के दौरान मौत।
एक नहीं दो बम लगाए थे जांच में यह बात सामने आई कि दरगाह में एक नहीं दो बम फटते। दरअसल एक बम आहाता ए नूर में एक थैले में छिपा कर रखा गया था जो फटा था। दूसरा बम शाहजानी मस्जिद के सामने जहां महिलाएं अंदर की ओर बैठकर इबादत करती हैं वहां रखा गया था लेकिन किसी ने उस थैले को झालरे की ओर रख दिया। बाद में इसे किसी ने पूछताछ कार्यालय के पास रख दिया। जब तफ्तीश में इसे घटना के अगले दिन बरामद किया गया जिसे बम निरोधक दस्ते ने निष्क्रिय कर दिया था।
चार आरोप पत्र हुए थे दाखिल 1- आरोप पत्र संख्या 92 विरुद्ध – देवेन्द्र गुप्ता अजमेर का मूल लेकिन वारदात के समय मध्य प्रदेश निवास, चंद्रशेखर शाजापुर मध्यप्रदेश, लोके श शर्मा महू, मध्य प्रदेश
2 – आरोप पत्र संख्या 92 ए विरुद्ध – मुकेश वासानी व हर्षद – गुजरात निवासीगण 3 – आरोप पत्र संख्या 92 बी विरुद्ध – नबकुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, भरतेश्वर उर्फ भरत
4 – आरोप पत्र संख्या 92 सी विरुद्ध – भावेश पटेल व मेहूल इनकी गिरफ्तारी हुई लेकिन चार्जशीट नहीं दाखिल हुई, दो आरोपितों की सुनवाई के दौरान मौत इन धाराओं मंें चला मुकदमा 302, 307, 295ए व 120 बी, 201 भादस, धारा 3 बम विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, धारा 13(2),16,18 व 20 विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम।
सीबीआई ने मामले में जांच के दौरान रमेश गोहिल, जयंती भाई मेहूल व हर्षद को गिरफ्तार किया था। यह गुजरात के बेस्ट बेकरी कांड में भी आरोपित थे इनके मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा सुनवाई के आदेश दिए थे। इनमें से जयुती भाई व रमेश गोहिल की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी। इन्हें सीआरपीसी की धारा 167 (2) में गिरफ्तारी हुई लेकिन चार्जशीट पेश नहीं की थी। 149 गवाह, 13 पक्षद्रोही, 451 दस्तावेज मामले में 149 लोगों की गवाही हुई जिसमें झारखंड के एक मंत्री भी शामिल रहे। वहीं 451 दस्तावेज पेश किए गए। प्रकरण में मात्र 13 गवाह पक्षद्रोही हुए थे।
असीमानंद के खिलाफ भी पृथक से आरोप पत्र दाखिल किया गया। चार अन्य आरोपितों को भी गिरफ्तार किया गया था लेकिन उनके खिलाफ चार्ज शीट दाखिल नहीं की गई थी। दो आरोपितों की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी।
यह है मामला घटना दरगाह परिसर आहाता ए नूर दिनांक 11 अक्टूबर 2007 समय 6.14 बजे रिपोर्ट अंजुमन सचिव ने दरगाह थाने में रिपोर्ट कराई शाम 9.15 बजे। रिपोर्ट में बताया गया कि दरगाह शरीफ में रोजा इफ्तार पूरे 30 दिन किया जाता है शाम 6.12 बजे रोजा इफ्तार के लिए रोजा खोलने के लिए तोप चलाई सभी जायरीन व सभी संप्रदाय के लोग थे। शाम 6.14 बजे मिनट आहाता ए नूर के बाड़े के पास जोरदार धमाका हुआ। वहां मौजूद लोगों में भगदड़ मच गई। मौके पर विस्फोट के अवशेष हैं। रिपोर्ट पर क्लाक टावर के सीआई शंकरलाल ओझा ने जांच की। घटना स्थल पर मोबाइल के टूकड़े, मोबाइल सिम जो क्षतिग्रस्त थी उसका नम्बर पठनीय नहीं था। मामले की जांच बाद में सीआईडी सीबी को सौंपी गई।
इन वकीलों ने की पैरवी सरकार अभियोजन की ओर से जी. सी. चटर्जी उनकी मृत्यु उपरांत अश्वनी शर्मा विशेष लोक अभियोजक के रूप में पैरवी। बचाव पक्ष – जगदीश सिंह राणा, अश्वनी बोहरा, एस. पी. राव।
मोबाइल सिम से खुली जांच की राह पुलिस अनुसंधान में सामने आया कि क्षतिग्रस्त मोबाइल सिम व बिना फटे थैले में मिले मोबाइल सिम की आईडी का मिलान करने पर घटना के खुलने का सिलसिला शुरू हुआ था। विधि विज्ञान प्रयोगशाला की जांच में सिम एयरटेल मोबाइल बिहार व झारखंड से जारी हुई थी। सिमकार्ड का धारक बागूलाल यादव मिहीजाम, दुमका निवासी था, जिसकी वोटर आईडी जामताड़ा क्षेत्र से हुई। सिम की जांच के बाद वोडा फोन पश्चिम बंगाल से जारी होना पाया गया।
उक्त जांच में कुल 11 सिमें एेसी पाई गई जो कूटरचित वोटर आईडी व ड्राईविंग लाईसेंस का प्रयोग करते हुए पाई गई थी। मई 2009 में जांच एटीएस को सौंपी : माले गांव व हैदराबाद बम विस्फोटों की तर्ज पर हुआ था
विस्फोट एटीएस जांच में यह तथ्य सामने आए कि मक्का मस्जिद (हैदराबाद) में भी दो बम रखे गए थे जिनमें से एक नहीं फटा था। इसमें बमों को टाइमर डिवाइस के रूप में सिम कार्ड में मोबाइल फोन का प्रयुक्त किया गया था।
एटीएस ने जांच में माले गांव बम ब्लास्ट में गिरफ्तार आरोपित कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित व सुधाकर धर द्विवेदी उर्फ स्वामी दयानंद पांडे से एडिशनल एसपी एसओजी जयपुर ने प्रहलाद सिंह मीणा से पूछताछ की। पूछताछ में पुरोहित ने बताया कि स्वामी असीमानंद को जानता है। स्वामी असीमानंद ने बताया कि साध्वी प्रज्ञासिंह व सुनील जोशी ने एक संगठन जय वंदे मातरम के नाम से बना रखा है। स्वामी असीमानंद ने 29 दिसम्बर 2007 को पुरोहित को फोन पर बताया कि सुनील जोशी जो उनके खास आदमी थे, की देवास में हत्या हो गई है। उसने ही अजमेर में ब्लास्ट किया था। इसलिए उसकी हत्या किसने की पता लगाना जरुरी है। जोशी एक वर्ष से अपनी पहचान बदलकर मनोज के नाम से देवास में रह रहा था। हत्या से डेढ़ वर्ष पूर्व चार संदिग्ध मेहूल, घनश्याम, राज व उस्ताद के साथ रहते थ जो हत्या के बाद गायब हो गए।
पुलिस जांच में सामने आए महत्वपूर्ण तथ्य – वर्ष 2001 में देवेन्द्र गुप्ता ने जोशी के अधीन काम शुरू किया। वर्ष 2003 में गुप्ता झारखंड गया वहां जामतड़ा में जिला प्रचारक के रूप में कार्य किया। इस दौरान वह कई बार जोशी से मिला। गुप्ता मूलत: अजमेर का था विवादित सिम खरीदने के बाद आसनसोल में प्रचारक के पद कार्य करता रहा था।
– एटीएस ने जांच के दौरान हर्षद उर्फ मुन्ना उर्फ राज को 1 नवम्बर 2010 को गिरफ्तार किया। धारा 27 की इत्तला पर बेस्ट बेकरी कांड के मामले में पुन: सुनवाई के आदेश के बाद फरार हो गया था ने बताया कि उसने जोशी के साथ दो थैले गोदरा निवासी मुकेश को दिए थे जिन्हें अजमेर में फटने के लिए रखे थे। वह अजमेर में वह स्थान बता सकता है जहां उसने बम रखे थे।
– इसके बाद प्रोड्क्शन वारंट से स्वामी असीमानंद को अंबाला जेल से गिरफ्तार करने की अनुमति अजमेर जेल से ली। 22 जनवरी 2011 से 11 फरवरी 2011 तक असीमानंद को पुलिस रिमांड पर रखा था। बाद में असीमानंद ने संस्वीकृति दी व जेल अधीक्षक के मार्फत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को कथित रूप से यह पत्र भिजवाया कि वह सरकारी गवाह बनना चाहता है अनुसंधान में सहयोग करना चाहता है। आरोपित भरत रतेश्वर ने इस आशय का पत्र अदालत में पेश किया कि उसे जेसी भिजवाने के बाद जबरन प्रार्थना पत्र सरकारी गवाह बनने के लिए लिखवाया गया। बाद में अदालत ने असीमानंद व भरत रतेश्वर के अप्रूवर बनने संबंधी प्रार्थन पत्र को निरस्त कर दिया।
– अभियुक्त भावेश पटेल के 23 मार्च 2013 को धारा 164 के तहत बयान हुए बाद में उसे अलवर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। – अभियोजन ने लगाए आरोपों का सार बम का जवाब बम से देने के आशय से आपराधिक षडयंत्र के तहत विभिन्न स्थानों पर बैठकें। जनवरी 2004 उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में, 2006 में सबरी कुंभ, गुजरात बलसाड़, जामताड़ा, मिहीजाम झारखंड, चूना खदान, सुनील जोशी के घर व रामजी कलसांगरा ,बंगाली चौराहे इंदौर में गुप्त बैठक कर षडयंत्र रचा।
इन वकीलों ने की पैरवी सरकार अभियोजन की ओर से जी. सी. चटर्जी उनकी मृत्यु उपरांत अश्वनी शर्मा विशेष लोक अभियोजक के रूप में पैरवी। बचाव पक्ष – जगदीश सिंह राणा, अश्वनी बोहरा, एस. पी. राव।