कभी बीएड करना महिलाओं और पुरुषों के लिए सबसे आसान और सरल माना जाता था। बीएड की डिग्री लेकर टीचिंग जॉब भी आसानी से मिल जाती थी। लेकिन अब कोर्स की राह बेहद कठिन हो चली है। टेस्ट पास करने के बाद अभ्यर्थी को परेशानी का पहला एहसास प्री. बीएड परीक्षा के बाद ऑनलाइन काउंसलिंग कराती है। कभी कॉलेज की सूची नहीं मिलती तो तकनीकी खामियों से फार्म और दस्तावेज अपलोड नहीं होते। जल्दबाजी में कोई गलती छूट गई तो सुधारने का मौका भी नहीं मिलता। जो कॉलेज मिल जाए उसमें पढऩे के अलावा कोई चारा भी नहीं होता।
तुरन्त नौकरी की कोई गारन्टी नहीं
कभी एक साल की अवधि वाला बीएड कोर्स विधवा, तलाकशुदा, अविवाहित महिलाओं को नौकरी मुहैया कराने में सबसे अग्रणीय था। नौकरी करते हुए भी वे आसानी से बीएड कर लेती थीं। अब दो साल का बीएड कोर्स मुसीबत से कम नहीं है दो साल की फीस, हॉस्टल और किराए के मकानों में रहने-खाने के खर्चे बढ़ गए हैं। इसके बाद भी तुरन्त नौकरी की कोई गारन्टी नहीं है।
कभी एक साल की अवधि वाला बीएड कोर्स विधवा, तलाकशुदा, अविवाहित महिलाओं को नौकरी मुहैया कराने में सबसे अग्रणीय था। नौकरी करते हुए भी वे आसानी से बीएड कर लेती थीं। अब दो साल का बीएड कोर्स मुसीबत से कम नहीं है दो साल की फीस, हॉस्टल और किराए के मकानों में रहने-खाने के खर्चे बढ़ गए हैं। इसके बाद भी तुरन्त नौकरी की कोई गारन्टी नहीं है।
बीएड कोर्स का स्वरूप
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की रीट अथवा राजस्थान लोक सेवा आयोग की शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में कामयाबी के लिए किस्मत अजमानी पड़ती है।अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिर बीएड कोर्स का स्वरूप बदलना चाहता है। अब दो साल के बीएड को खत्म कर चार साल का एकीकृत टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम लागू करने की योजना बनाई गई है। जबकि चार साल का बीए और बीएससी बीएड कोर्स पहले ही संचालित है।
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की रीट अथवा राजस्थान लोक सेवा आयोग की शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में कामयाबी के लिए किस्मत अजमानी पड़ती है।अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिर बीएड कोर्स का स्वरूप बदलना चाहता है। अब दो साल के बीएड को खत्म कर चार साल का एकीकृत टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम लागू करने की योजना बनाई गई है। जबकि चार साल का बीए और बीएससी बीएड कोर्स पहले ही संचालित है।
कहने को बीएड कोर्स को एमबीबीएस और बी.टेक की तरह बनाया जाना है, लेकिन इससे परेशानियां घटने की उम्मीद कतई नहीं है। मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा के लचर हालात से सब वाकिफ हैं। कभी सेमेस्टर परीक्षाओं में देरी तो कभी रिजल्ट वक्त पर नहीं निकलते। हकीकत में विद्यार्थी को डिग्री लेने में पांच या छह साल लग रहे हैं। विश्वविद्यालयों का ढीला कामकाज बीएड कोर्स की चाल बिगाड़ सकता है। डिग्री लेने में अभ्यर्थियों को ज्यादा वक्त लगा तो भविष्य में नौकरियां मिलना भी उतना ही कठिन हो जाएगा।