किले के अंदर-भीतर यह होंगे कार्य हालांकि अभी पुरातत्व विभाग की ओर से किले में होने वाले कार्य की पूरी रूपरेखा तय नहीं हो पाई है, लेकिन फि लहाल विभाग की ओर से ठेकेदार को सबसे पहले किले में होने वाले अतिक्रमण व आए दिन होने वाली चोरियों को रोकने के लिए किले की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कार्य करने के निर्देश दिए गए हैं।
इसके तहत किले की पूरी साफ -सफ ाई कर चारों ओर बने परकोटे में जगह-जगह हो रखे सुराख बंद कर पूरी दीवार की मरम्मत का कार्य किया जाएगा। किले में बने सभी महल, दालान, घुड़साल, मंदिर, प्राचीर व अन्य भवनों की मरम्मत, रंगाई-पुताई व उनकी सुरक्षा का प्रबंध किया जाएगा। किले के जर्जर हो रखे मुख्य द्वार के स्थान पर नया मजबूत दरवाजा लगाया जाएगा।
किले के सभी क्षतिग्रस्त खिडक़ी-दरवाजे बदलेंगे। विभागीय अधिकारियों के अनुसार किले की सुरक्षा का कार्य पूरा होने के बाद गठित समिति किले का अवलोकन कर सरकार की ओर से जारी राशि के अनुरूप विकास की आगामी योजना को मूर्त रूप देगी।
रविवार को अजमेर संग्रहालय अधीक्षक नीरज त्रिपाठी ने किले का अवलोकन कर शुरू हुए कार्य को देखा। उन्होंने ठेकेदार को सभी कार्य विभागीय दिशा-निर्देश के अनुरूप गुणवत्ता के साथ करने के निर्देश दिए। इतिहास के पृष्ठों पर
सरवाड़- फ तहगढ़ का पूरा इलाका बंगाल से करीब ८५० साल पहले आए गौड़ शासकों के अधीन रहा है। तब इसका नाम विजय दुर्ग था। बाद में इसे किशनगढ़ स्टेट के राठौड़ वंशीय राजा राजसिंह के दूसरे पुत्र फ तहसिंह ने गौड़ शासकों से फ तह कर लिया।
यही वह समय था, जब गौड़ शासको का अंत हुआ। इसके बाद यहां राजा बहादुरसिंह, बाघसिंह, चैनसिंह, रणजीत सिंह व गोर्वधन सिंह ने शासन किया, लेकिन ये सभी ना-औलाद फ ौत हुए। इसके चलते ग्राम झिरोता के ठिकानेदार रायसिंह के पुत्र मानसिंह को गोद लाया गया, जो यहां के अंतिम शासक हुए।
मानसिंह मेयो कॉलेज अजमेर में पढ़े हुए अत्यंत ही प्रतिभा संपन्न व प्रखर राष्ट्रभक्त थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करने से उन्हें सन् १८९८ में धोखे से मार दिया गया। उनका अंतिम संस्कार किशनगढ़ में किया गया। इनकी दो रानियां थी, एक का पीहर मेजा-भीलवाड़ा व दूसरी का पीहर नामली-मंदसौर था। इन दोनों के भी कोई संतान नहीं थी।
शिल्पकला में बेजोड़ किला फ तहगढ़ का किला शिल्प कला की दृष्टि से अत्यंत ही समृद्ध और बेजोड़ रहा है। किले के भीतर बने शीशमहल, पानी का टांका, घुड़साल, बावड़ी, मंदिर इसकी भव्यता और सौन्दर्यता की जीती जागती मिसाल देते हैं। किले का बाहरी परकोटा व भीतर बनी प्राचीर की जीवंतता तो देखते ही बनती थी।
जर्जर हॉल- उपेक्षा और अनदेखी ने राठौड़ वंशीय राजाओं के उत्थान-पतन का जीवंत साक्षी रहे फ तहगढ़ के ऐतिहासिक किले को जर्जर हाल में पहुंचा दिया। वहीं किले की बाहरी दीवार का एक हिस्सा भी भरभराकर ढह गया।
सुरक्षा और संवद्र्धन के अभाव में किले का बाहरी परकोटा जगह-जगह से ढह रहा है, दीवारों के बड़े-बड़े पत्थर बाहर निकल आए हैं। इसके चलते उसका ऐतिहासिक स्वरूप विकृत हो गया है। वर्तमान में किले की देख-रेख का जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है।