ब्यावर में तिल से पापड़, लड्डू, गजक, रेवड़ी आदि का निर्माण किया जाता है। इनके भाव दौ सौ रुपए किलो से लेकर तीन सौ रुपए तक के है। तिल से व्यंजन तो पांच छह प्रकार के होते है लेकिन इनके फ्लेवर अलग अलग होते है। जिसमें सादा, पिस्ता, इलायची, बादाम-काजू, कुरकरे आदि प्रकार के होते है। इसी के अनुसार इनके भाव भी होते है।
तिलपट्टी का स्वाद देश ही नहीं बल्कि सात समुंदर पार विदेशी लोगों की जुबान पर भी चढ़ चुका है। देश के बाहर रहने वाले भारतीयों की ओर से यहां से ब्यावर की तिलपट्टी मंगवाई जाती है। मकर संक्रान्ति पर्व पर तिलपट्टी की सबसे अधिक खपत होती है।
वैसे तो ब्यावर में साल भर ही तिल के बने व्यंजनों का कारोबार होता है, लेकिन सर्दी में इसकी खपत अधिक व गर्मी में खपत कम होती है। गर्मी के दिनों में पन्द्रह थोक विक्रेता व करीब पचास खुदरा व्यापारी काम करते है। इसमें करीब डेढ़ सौ से दो सौ आदमी काम करते है। वहीं सर्दी के दिनों मेें थोक विक्रेता पच्चीस व खुदरा विक्रेता सौ से ज्यादा हो जाते है। इसमें करीब तीन सौ आदमियों को रोजगार मिल जाता है। जहां आम दिनों में एक व्यापारी औसतन दौ सौ किलो प्रतिदिन तिल के व्यंजन बनाता है, वहीं खपत और मांग बढऩे से इन दिनों सर्दी में व्यापारी पांच सौ से छह सौ किलो प्रतिदिन व्यंजन तैयार कर रहे है।
पापड़ बनाने के लिए तिल को साफ कर भिगोया जाता है। भीगे तिल को सुखाने के बाद उसकी कुटाई कर बड़े कढ़ाव में सिकाई की जाती है। इसके बाद इसकी सफाई कर फूस बाहर निकाला जाता है। शक्कर की चासनी बनाते समय उसमें नींबू डालकर यह चासनी कड़ाव में रखे तिल में डालकर उसके लोये बनाए जाते हैं। लोये बनने के तत्काल बाद वहां मौजूद कारीगर इसे रोटी की भांति बेलन से बेल देते हैं। इलायची वाली तिलपट्टी के लिए चासनी डालने से पूर्व तिल में इलायची के दाने डालने होते हैं वहीं पिस्ता इलायची वाली तिलपट्टी तैयार करने में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है।