तो सवाल उठते ही हैं.. लेकिन राजस्थान लोक सेवा आयोग तो अलग ही परम्परा अपनाए बैठा है। पिछले दिनों आरएएस प्रारंभिक परीक्षा-2018 का नतीजा अंधेरी रात में जारी किया गया। हालांकि आयोग के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। साल 2005-06 में तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा का नतीजा तो तडक़े 4 बजे निकाला गया। 2012 की आरएएस प्रारंभिक परीक्षा का नतीजा भी रात 2 बजे आ चुका है। बात कम स्टाफ, तकनीकी पहलुओं के गहन परीक्षण से जुड़ी है, तो यह समझ आती है। मगर बड़ी परीक्षाओं में ही ऐसा हो तो सवाल उठते ही हैं।
दरअसल नतीजों को लेकर आलाधिकारी कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। उन्हें परिणाम में कोई गड़बड़ी या कम्प्यूटर तकनीक फेल होने, परिणाम लीक होने का डर सताता है। लिहाजा उन्हें रात का अंधेरा पसंद आता है। वे सुबह होने का इंतजार भी नहीं करना चाहते हैं।
बैठक भी रात के अंधेरे अगर आयोग के गुजरे आठ-नौ साल के बड़े नतीजों को देखें तो उनकी ‘गड़बडिय़ों’ की वजह अंधेरी रात ही बनी है। एक आरएएस प्री परीक्षा के नतीजा तो जल्दबादी में स्केलिंग-अंक गलत डालने से रोकना पड़ गया। कुछ आलाधिकारी तो खास भर्तियों के लिए चर्चित रहे। गाहे-बगाहे जाति विशेष की सहायता करने से नहीं चूके। एक साहब ने तो फुल कमीशन की बैठक भी रात के अंधेरे करा चुके हैं।
अगर इससे ठीक उलट संघ लोक सेवा आयोग की आईएएस प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा, बैंक पीओ, कर्मचारी चयन बोर्ड के अळावा जेईई एडवांस और नीट जैसी बड़ी परीक्षाएं देश की नजीर हैं। यह संस्थाएं हमेशा दिन के उजाले में नतीजे जारी करती हैं। जबकि इनकी परीक्षाओं में 25 से 50 लाख अभ्यर्थी बैठते हैं। स्टाफ और अन्य समस्याओं से यह संस्थाएं भी जूझ रही हैं। लेकिन रात में नतीजे निकालने को इन्होंने तवज्जो नहीं दी। इसीलिए अभ्यर्थियों में इन संस्थानों के प्रति विश्वसनीयता कायम है।
भर्तियां विवादास्पद रही पिछले 15 साल में राजस्थान लोक सेवा आयोग की द्वितीय, तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती, आरएएस प्रारंभिक, कॉलेज लेक्चरर, कनिष्ठ लिपिक भर्ती सहित अन्य भर्तियां विवादास्पद रही हैं। हालांकि आयोग ने कुछेक मामलों में बड़ी परीक्षाओं के नतीजे दोपहर अथवा शाम तक भी जारी किए हैं। आरएएस प्रारंभिक परीक्षा 2013 और 2015 इसमें शामिल है। लेकिन ऐसी नजीर अंगुलियों पर गिनाने लायक ही हैं।
गलतियों से सबक लेने की जरूरत अगर भर्तियों में पारदर्शिता, अभ्यर्थियों में विश्वसनीयता कायम रखनी है, तो आयोग को कामकाज का तरीका तुरन्त बदलना होगा। पूर्व में निकले नतीजों के हश्र और तत्कालीन आलाधिकारियों की गलतियों से सबक लेने की जरूरत है। तभी आयोग अपने नाम के अनुरूप राजस्थान और देश का सिरमौर बन सकेगा।