यह दिया तर्क
प्रार्थना पत्र में उप राजकीय अधिवक्ता ने पूर्व में निर्णित प्रकरणों का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व के चार प्रकरणों में सरकार की अपीलें निरस्त की जा चुकी हैं तथा राजस्व अपील अधिकारी का निर्णय यथावत रखा गया है। ऐसे में समान तथ्यों के प्रकरण निर्णित हो जाने से इन मामलों को भी अब आगे चलाने का उद्देश्य शेष नहीं रहा है क्योंकि इसका निर्णय पूर्व के निर्णय से अलग नहीं हो सकता।
तीन दिन बाद आई सुध
लोक अदालत के तीन दिन बाद 16 मार्च 2022 को राजकीय अधिवक्ता ने मामला जानकारी में आने के बाद उप राजकीय अधिवक्ता को इन प्रकरणों को वापस रेस्टोर करने के लिए शपथ पत्र सहित प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने के निर्देश दिए। उप राजकीय अधिवक्ता की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र में यह माना गया है कि लोक अदालत में सहवन से प्रकरण वापस लेने का प्रार्थना पत्र मेरे द्वारा प्रस्तुत किया गया है जिसका मुझे कोई अधिकार नहीं था और ना ही सरकार की ओर से प्रस्तुत अपील को विड्रा करने का अधिकार था। यह ऑफिसर इंचार्ज तहसीलदार की अनुमति के बिना किया गया है। इसका विधि अनुसार उप राजकीय अभिभाषक को अधिकार नहीं है। मेरा कथन वाद बाहुल्यता को कम करने को लेकर था। लोक अदालत की भावना से निर्णित किए गए प्रकरणों को पुन: नम्बर पर लेते हुए पुन: सुनवाई के लिए बेंच के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।
यह है मामला
जालौर जिले की सांचौर तहसील के ग्राम आकोडिया में 18 दिसम्बर 2001 को खेती के लिए अप्रार्थीगण को जमीनों का आवंटन किया गया। आवंटन शर्तों के अनुसार भूमि पर खेती नही की गई। इसके बावजूद आवंटी के पक्ष में नामांतरण कर दिया गया। आवंटियों ने भूमि का बेचना कर दिया और खरीददार के हक में नामांतरण भी करवा दिया। आवंटन शर्तों की पालना नहीं करने पर नामांतरण तस्दीक नहीं किया गया।
जालौर कलक्टर ने 13 अप्रेल 2010 को आवंटन निरस्त कर दिया। इसके बाद परिवादियों ने राजस्व अपील अधिकारी पाली के समक्ष अपील प्रस्तुत की। राजस्व अपील अधिकारी ने कलक्टर का फैसला निरस्त कर दिया और आवंटन बहाल रखा। सरकार ने राजस्व अपील अधिकारी पाली के निर्णय को राजस्व मंडल में चुनौती दी।
इनका कहना है