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बस्तों के बोझ तले दब रहा बचपन ,’कान्हाÓ का बस्ता ‘ बलरामÓ से भारी

locationअजमेरPublished: Jul 27, 2019 01:34:40 pm

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(English medium)अंग्रेजी माध्यम की नर्सरी स्कूल के बच्चों के बस्ते से दब रहा बचपन

burden of school bags

बस्तों के बोझ तले दब रहा बचपन ,’कान्हाÓ का बस्ता ‘ बलरामÓ से भारी

चन्द्र प्रकाश जोशी

अजमेर. अंग्रेजी माध्यम (English medium)की पढ़ाई करने वाले बच्चे बोझ की मार झेल रहे हैं। भारी भरकम बस्तों के बोझ तले बचपन दब रहा है। हालात यह है कि ‘कान्हा Ó का बस्ता ‘बलरामÓ से भी भारी है। स्मार्ट (Smart) शिक्षा एवं स्मार्ट स्कूलों का दावा करने वाले प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी एवं प्राइमरी कक्षाओं में बस्ते के वजन को कोई लेकर किसी तरह की नीति नहीं है। हालात यह है कि छोटी कक्षाओं के बच्चों के बस्ते (बैग) का वजन भी बड़ी कक्षाओं के बच्चों से भारी है।
अजमेर (Ajmer) शहर के कई प्राइवेट स्कूलों में बच्चों के बस्ते (Bags) के बोझ को कम करने को लेकर कोई खास पहल नहीं कर रखी है। अधिकांश अंग्रेजी माध्यम की बड़ी प्राइवेट स्कूलों में बस्ते का बोझ अधिक है जबकि इसी तरह की छोटी अन्य प्राइवेट स्कूलों में बस्ते के बोझ कुछ हद तक कम है। प्राइवेट स्कूलों के छोटे एवं मासूम बच्चों के बस्ते के भार का वजन करवाया गया। इसमें छोटी कक्षा के बच्चे ‘कान्हाÓ का बस्ता बड़ी कक्षाओं के बच्चे ‘बलरामÓ से भी भारी है। पत्रिका की पहल पर कुछ अभिभावकों के साथ तो कुछ बच्चों के साथ बस्तों का भार तुलवाया गया। इसमें अलग-अलग स्कूलों के बच्चों के बस्ते के भार में अंतर पाया गया। जयपुर रोड की एक प्राइवेट स्कूल के बस्ते का भार कक्षा तीन का 6 किग्रा मापा गया जबकि कक्षा 5 के बच्चे का भार 5.350 ग्राम मापा गया। इसी तरह ब्यावर रोड के एक स्कूल में कक्षा 6 के छात्र के बस्ते का भार 8 किग्रा तो कक्षा 8 के बच्चे के बस्ते का भार 7 किग्रा मापा गया। अग्रसेन सर्किल के पास एक एचकेजी के बच्चे के बस्ते का भार 3.5 किग्रा मिला, जबकि पानी की बोतल परिजन के पास अलग से थी।छोटे भाइयों का बस्ते भी बड़े भाई के कंधों परकुछ स्कूलों में पढऩे वाले दो भाइयों में बड़ा भाई छोटे भाई के बस्ते का भार भी साथ ढोता है। इसकी वजह यही है कि छोटे भाई से बस्ते का भार सहा नहीं जाता है। बच्चे चलने में लडखड़़ा जाते हैं।
ना शिक्षा विभाग की लगाम ना सरकार कर रही शिकंजा

प्राइवेट स्कूलों में मासूमों पर बस्ते का भार कम करने के लिए ना तो शिक्षा विभाग किसी तरह का लगाम लगाती है ना सरकार शिकंजा कस रही है। प्राइवेट स्कूलों की ओर से छोटे बच्चों के लिए अलग-अलग तरह की पुस्तकें, कॉपियां, ड्रॉइंग बुक आदि चला देती हैं।

जेएलएन अस्पताल के अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमेश्वर हर्षवद्र्धन ने बताया कि बच्चों के बस्ते के अत्यधिक भार से गर्दन का दर्द, कंधे एवं पीठ में दर्द शुरू हो जाता है। जिन बच्चों में पहले से ही कैल्सियम की कमी एवं विटामिन डी की कमी हैं उनके लिए यह बीमारी जीवन भर के लिए बन जाती है। कुछ बच्चों के पैरों ेमं दर्द शुरू हो जाता है। वहीं बच्चों में टेडापन भी हो जाता है।
कंधे, गर्दन का दर्द बढऩे लगा बच्चों में

प्राइवेट स्कूलों की नर्सरी व प्राइमरी स्कूलों के छोटे बच्चों में बस्ते के बोझ के चलते कंधे मेंं दर्द,, गर्दन एवं पीठ में दर्द की बीमारी बढ़ रही है। जिन बच्चों में कैल्सियम की कमी हैं उनके लिए यह खतरनाक साबित हो रही है। कई बच्चों में टेडापन के भी संकेत मिले हैं। वे ऐसे बच्चे हैं जो हमेशा एक ही कंधे पर बस्ता रखकर स्कूल आते-जाते हैं।
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