scriptरुके थे अजमेर में क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद, कुछ यूं था देश की आजादी का सपना | Chandra shekhar azad stay in ajmer, aim for indepaendance | Patrika News
अजमेर

रुके थे अजमेर में क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद, कुछ यूं था देश की आजादी का सपना

www.patrika.com/rajasthan-news

अजमेरAug 07, 2018 / 06:13 am

raktim tiwari

free india movement

free india movement

अजमेर

भारत की आजादी की कहानी 1857 से शुरू होती है। देश के अनेक भागों में कई वीर क्रांतिकारी भारत को स्वाधीन कराने के संघर्ष में कूद पड़े थे। अंग्रेज सरकार ने भले ही इसे बगावत और सैनिक विद्रोह का नाम देकर दुष्प्रचारित किया हो, वीर सावरकर ने इसे भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा और यही सत्य भी है।
राजपुताने में ब्रिटिश सत्ता का केन्द्र था अजमेर। वर्तमान में मेगजीन के नाम से परिचित अजमेर का किला तब अंग्रेज सेनाओं का शस्त्रागार था और नसीराबाद को बनाया गया था सैनिक छावनी। नाना साहब पेशवा, तांत्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, बहादुरशाह जफर इत्यादि ने मिलकर पूरे देश में एक साथ 31 मई, 1857 को क्रांति की योजना बनाई थी। रोटी-कमल के माध्यम से संदेश चारों ओर भेजा गया था। लेकिन मेरठ की अंग्रेज छावनी में मंगल पांडे का धैर्य टूट गया और उस युवा क्रांतिकारी ने अं्रग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी।
अंग्रेज सेना के भारतीय सैनिक पहले ही कारतूसों में ***** की चर्बी के उपयोग से क्रोधित थे, मेरठ में क्रांति का आगाज हुआ तो आजादी की यह चिंगारी अजमेर में भी भड़क उठी थी। सैनिक विद्रोह की आशंका में एजीजी जॉर्ज लारेन्स पैट्रिक ने घबराकर अजमेर के किले की सुरक्षा देख रही 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री को यहां से हटाकर नसीराबाद भेजने का आदेश दिया। इससे इन्फेन्ट्री के भारतीय सैनिक नाराज हो गए। हवलदार बख्तावर सिंह के नेतृत्व में इसका विरोध हुआ। उन पर किए गए अविश्वास ने सबको भड़का दिया।
जबरन नसीराबाद भेजे गए इन सैनिकों ने देखा कि वहां भारतीय सैनिकों के भोजन के लिए आए आटे में हड्डियों का चूरा मिलाया गया था। कारतूस में ***** की चर्बी व आटे में हड्डियों के चूरे से धर्म भ्रष्ट करने के प्रयास और अंग्रेजों का अविश्वासपूर्ण व्यवहार अब बर्दाश्त के बाहर हो गया। मेरठ की क्रांति से उत्साहित हिन्दू व मुस्लिम सैनिकों ने हथियार उठा लिए और ‘हर हर महादेवÓ, ‘या अलीÓ और ‘मारो फिरंगी कोÓ के नारे लगाते हुए अंग्रेज छावनी पर टूट पड़े। छावनी के तोपखाने पर कब्जा कर लिया। ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को कुचलने का प्रयास किया।
लेकिन लाइट इन्फेन्ट्री सहित कई सैन्य टुकडिय़ों ने क्रांतिकारी सैनिकों पर आक्रमण से इन्कार कर दिया। तब मेजर स्पोटिसवुड को बंबई लांसर की अंग्रेज रेजीमेंट के साथ भेजा गया। उसने भीषण आक्रमण किया। अनेक भारतीय सैनिक मार दिए गए और नसीराबाद पर फिर से कब्जा कर लिया। लेकिन भारतमाता को स्वतंत्र कराने का संकल्प ले चुके क्रांतिकारी सैनिक कहां चुप रहने वाले थे। उन्होंने जल्दी ही योजनाबद्ध तरीके से घात लगाकर मेजर स्पोटिसवुड को गोलियों से मार गिराया और छावनी को फिरंगियों से आजाद करा लिया।
यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी समझता है कि अंग्रेजों ने हमले के दौरान भारतीय सैनिकों के बच्चों, बुजुर्गों व महिलाओं पर भी अत्याचार किये। वहीं क्रांतिकारी सैनिकों ने नसीराबाद से अजमेर की ओर भाग रही अंग्रेज स्त्रियों और बच्चों को हाथ भी नहीं लगाया और उन्हें सुरक्षित अजमेर जाने दिया। बाद में बन्दूकों, तोपों और हथियारों से लैस होकर आजादी के दीवाने ये सभी क्रांतिकारी सैनिक दिल्ली की ओर कूच कर गए।
1930 में चंद्रशेखर आजाद अजमेर आए। उन्होंने अजमेर के कमिश्नर हैल्पोज को उड़ाने की योजना बनाई। वे साधु के वेश में बारादरी के पास रहने लगे और लोगों का हाथ देखकर भविष्य बताने लगे। मौका देखकर उन्होंने बारादरी से सर्किट हाउस के बीच बारूदी सुरंगें बिछा दी। जैसे ही हैल्पोज की कार सर्किट हाउस जाने के लिए आयी आजाद ने विस्फोट कर दिया। लेकिन हैल्पोज आगे सीट पर बैठा होने के कारण बच गया। बाद में आजाद तीन दिन तक केसरगंज आर्यसमाज भवन तथा चांद बावड़ी की कोठरी में छुपे रहे थे।
चारों ओर पहाडिय़ों और गहन वन के कारण अजमेर लम्बे समय तक क्रांतिकारियों की शरणस्थली बना रहा। यहीं अर्जुनलाल सेठी, केसरीसिंह बारहठ तथा विजयसिंह पथिक द्वारा वीर भारत सभा नामक गुप्त संगठन की स्थापना की गई।
हिन्दुस्तान सोशियलिस्ट रिवोल्यूशनरी आर्मी नामक क्रांतिकारी संगठन की शाखा भी अजमेर में बनाई गई। इनके अलावा प्रतापसिंह बारहठ, नारायणसिंह बारहठ, बाबा नृसिंहदास, पंडित रूद्रदत्त, कन्हैयालाल आजाद, जगदीश दत्त व्यास, लक्ष्मीनारायण पहलवान, मणिलाल दामोदर, पं.ज्वाला प्रसाद जैसे अनेक क्रांतिकारियों की कर्मभूमि रहा था अजमेर। स्वाधीनता संग्राम में एक प्रबल सहयोगी के रूप में अजमेर का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
गेस्ट राइटर-उमेश कुमार चौरसिया, रंगकर्मी एवं साहित्यकार

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो