यह हो रहा नुकसान स्मार्टफोन से निकलने वाली नीली रोशनी से न सिर्फ सोने में दिक्कत आती है, बल्कि बार-बार नींद टूटती है। इसके ज्यादा प्रयोग से रेटिना को नुकसान होने का खतरा रहता है। मोबाइल से चिपके रहने से दिनचर्या अनियमित रहती है। इससे मोटापे और टाइप-2 डायबिटीज की आशंका बढ़ जाती है।
सरकार समाधान खोजे मोबाइल की लत बड़ी समस्या है, इसलिए सरकार को इसका हल खोजने के लिए शोध कराना चाहिए। हर शहर या ब्लॉक स्तर पर स्वास्थ्य विभाग ऐसा केन्द्र भी स्थापित करे जहां मोबाइल से जुड़ी समस्याओं का उपाय बताया जा सके।
यह भी है कारण कई माता-पिता भी मोबाइल पर या किसी कार्य में व्यस्त रहते हैं तो बच्चा उन्हें डिस्टर्ब नहीं करे इसलिए खुद ही उन्हें मोबाइल दे देते हैं। कोई बच्चा रोता है तो उसे चुप कराने के लिए मोबाइल देते हैं। उनके साथ कोई नहीं खेलता। ऐसे में बचपन मोबाइल के दुष्प्रभावों में फंस गया है।
बोले एक्सपर्ट बच्चे पढ़ाई में मोबाइल, लैपटॉप का प्रयोग कर रहे हैं। कई बच्चे दिनभर मोबाइल पर लगे रहते हैं। इससे आंखों में ड्राइनेस की शिकायत बढ़ रही है। इससे आंखों में धुंधलापन और इंफेक्शन का खतरा भी बढ़ता है। अस्पताल की सामान्य ओपीडी में १५ से २० प्रतिशत ऐसे मामले बढ़े हैं। बच्चों को मोबाइल के प्रयोग से दूर करना चाहिए। आंखों को धोते रहना चाहिए।
– डॉ. अशोक जिंदल, नेत्र रोग विभाग, सामान्य चिकित्सालय, धौलपुर
लगातार प्रयोग से बच्चों में मोबाइल की लत लग जाती है। इससे उनके ब्रेन में बदलाव आ जाता है। उसे डिसऑर्डर में शामिल किया गया है। मोबाइल के ज्यादा प्रयोग से उनमें बेचैनी, घबराहट, चिड़चिड़ापन, उदासी, खाना छोड़ देते, सामाजिक व पारिवारिक कटाव हो जाता है। ऐसे मामलों में दवा का कोई रोल नहीं होता है। ऐसे बच्चों की काउंसलिंग, बिहेवियर थेरेपी दी जाती है।
– डॉ. सुमित मित्तल, मनोचिकित्सक, सामान्य चिकित्सालय, धौलपुर