गौरतलब है कि संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना जुलाई 1990 में हुई थी। आनन-फानन में महाविद्यालय का संचालन राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय के भवन में ही शुरू किया गया था। जिसके बाद से महाविद्यालय प्राचार्य की ओर से अनगिनत बार जमीन आवंटन के लिए प्रयास किए गए लेकिन आज तक इसमें एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सका।
…और नहीं मिलता अनुदान महाविद्यालय के पास स्वयं की भूमि व भवन नहीं होने कारण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अभी तक कोई अनुदान भी नहीं मिला सका है। अनुदान प्राप्त करने में हमेशा खुद के भवन की कमी का रोड़ा अटकता है। एक मात्र व्याख्याता और कार्यवाहक प्राचार्य के भरोसे नाम के इस महाविद्यालय में कहने को दो व्याख्याता है, इनमें से एक के पास प्राचार्य का कार्यभार है। वर्तमान में महाविद्यालय में सिर्फ दो व्याख्याता, पीटीआई, सहायक, कनिष्ठ लिपिक, सहायक कर्मचारी नियुक्त है। वहीं संस्कृत व्याकरण, सामान्य व्याकरण, राजनीतिक विज्ञान, अंग्रेजी, साहित्य, वेद जैसे विषयों पर व्याख्याता के पद रिक्त हैं।
मजबूरी में ट्यूशन सहारा
व्याख्याता नहीं होने के कारण छात्र-छात्राओं को खुद अपने बलबूते पर ही पढ़ाई की व्यवस्था करनी पड़ती है। मजूबर छात्र ट्यूशन का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में छात्रों पर आर्थिक भार भी पड़ रहा है।
इनका कहना है
हमने प्रशासनिक उ’चाधिकारियों को कई बार जमीन आवंटन के बारे में लिख कर दिया है, लेकिन आज तक सरमथुरा क्षेत्र में कहीं भी जमीन आवंटन नहीं की गई। सरमथुरा महाविद्यालय पिछड़ा आदिवासी क्षेत्र घोषित होने के कारण 1990 में यहां पर महाविद्यालय की स्वीकृति दी गई थी, लेकिन उ’च अधिकारियों तथा जनप्रतिनिधियों की अनदेखी में यह संस्कृत महाविद्यालय यहां से खत्म होने की कगार पर है।
अनिल अग्रवाल, कार्यवाहक प्राचार्य, संस्कृत महाविद्यालय, सरमथुरा ।
सरमथुरा. राजकीय शास्त्री संस्कृत महाविद्यालय।