बाबू का मुख्यालय यूआईटी अलवर कार्यालय किया गया है। प्राधिकरण आयुक्त नमित मेहता ने इस मामले में सहरावत तथा कूलचंद को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। जवाब मिलने तथा वित्त शाखा, ड्रांइग शाखा, संस्थापन, विधि शाखा तथा उपायुक्त उत्तर की रिपोर्ट के बाद कार्रवाई की गई है। एडीए ने जांच में माना किया भू-पट्टी आवंटन के लिए अविधि प्रक्रिया अपनाई गई। प्रत्येक स्तर पर लापरवाही तथा क्षेत्राधिकार का भी उल्लंघन किया गया। भू-पट्टी के रूप में आवंटित की गई जगह को स्वतंत्र भू-खंड के रूप में आवंटन किया जा सकता था जो नहीं किया गया तथा पद का दुरुपयोग व नियमों की अवहेलना की गई।
लीज डीड आवंटन निरस्त सक्षम स्तर से अनुमोदन नहीं होने के कारण एडीए ने दोनों ही आवंटन को निरस्त करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। एडीए अधिकारी व कर्मचारी 24 व 25 अक्टूबर को भूमि पर हुए निर्माण को हटाने के लिए भी पहुंचे थे। लेकिन आवंटी के स्वयं ही कब्जा हटाने का आश्वासन देने पर लौट आए। पट्टे रजिस्टर्ड हो चुके हैं इसलिए अदालत के जरिए निरस्त करवाने के लिए एडीए की विधि शाखा ने कार्रवाई शुरू कर दी है।
मामला सामने आया, तो लिखा यूओ नोट प्राधिकरण की जांच में यह सामने आया कि लीड डीड सक्षम स्तर से जारी ही नहीं की गई और न ही इसके साथ आवश्यक दस्तावेज ही लगाए गए। इसके बाद एलओए अंजना सहरावत ने खुद ही 14 सितम्बर 2018 को यूओ नोट जारी कर बताया कि दोनों प्रकरण में स्वतंत्र भूखंड नहीं कहे जा सकने एवं एक ही दावेदार होने के कारण नियमानुसार सम्पूर्ण राशि वसूल किए जाने के बाद ही अतिरिक्त देय भूमि की अनुपूरक लीज डीज डीड जारी की गई है।
बाबू के खिलाफ कार्रवाई की जाए अब यह प्रकरण संज्ञान में आने पर स्ट्रिप ऑफ लैंड आवंटन के के लिे गठित एम्पावर्ड कमेटी के द्वारा अनुमोदन उपरांत ही स्ट्रिप ऑफ लैंड आवंटन किया जाना निहित होने से एम्पावर्ड कमेटी के समक्ष प्रकरण रखा जाना उचित होगा। प्रकरण में कार्यवाही स्थगित रखते हुए प्राधिकरण हित में आवश्यक पाए जाने पर आवंटन निरस्त किया जाए और बाबू के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
जवाब में बताया खुद को निर्दोष सहरावत ने खुद को निर्दोष बताते हुए नोटिस का 6 पन्ने का जवाब भेजा था। इसमें एडीए को इस मामले में किसी तरह की वित्तीय हानि नहीं होने के साथ एडीए में प्रचलित परिपाटी/ चलन, कथित एम्पावर्ड कमेटी/ कथित बोर्ड का भी जिक्र के साथ ही वर्ष 2017 में भी इस तरह का मामला सामने आने का भी हवाला दिया है। सहरावत के जवाब के अनुसार उपलब्ध करवाए गए सीमित रिकॉर्ड के अनुसार यह अंतरिम जवाब प्रस्तुत किया जा रहा है।
ये है मामला तत्कालीन डीसी (उत्तर) एवं एलएओ ने बी.के.कौल नगर के भूखंड संख्या 1043 व 1044 क्षेत्रफल प्रत्येक 301.43 वर्गगज के साथ लगती हुई भूमि की भू-पट्टी (खांचा भूमि) के तहत कार्यवाही की। उक्त भूखंडों की भू-पट्टी के तहत 71.75 वर्गगज तथा 50.23 वर्गगज भूमि 5 लाख 56 हजार रुपए में आवंटित कर दी थी। यदि नीलामी के जरिए इसका आवंटन होता तो प्राधिकरण को अधिक राशि प्राप्त होती। भू-पट्टी आवंटन कार्यवाही एम्पावर्ड कमेटी या बोर्ड द्वारा ही की जानी थी। लेकिन बिना सक्षम स्तर से अनुमति के ही भू-पट्टी की भूमि आवंटित व अनुपूरक लीजडीड जारी करके गंभीर अनियमितता की गई है।