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ये हैं धरती पर मंडराते खतरे के संकेत, जरा हो जाइए सावधान

locationअजमेरPublished: Apr 18, 2019 05:39:49 am

Submitted by:

raktim tiwari

20 साल में यहां से कई औषधीय पौधे लुप्त हो चुके हैं। धरती पर यह बदलाव प्राकृतिक असंतुलन के चलते दिख रहा है।

effect on earth

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रक्तिम तिवारी/अजमेर.

शहर और जिले में मौसम में लगातार बदलाव हो रहा है। छह साल से कम बरसात और सिमटती हरियाली इसका परियाचक है। गर्मी में पारे का 45-46 डिग्री तक पहुंचना, सर्दियों में मावठ की कमी कहीं ना कहीं पर्यावरण में बदलाव का संकेत है। कभी हरी-भरी दिखने वाली अरावली अब सूखी नजर आती है। बीते 20 साल में यहां से कई औषधीय पौधे लुप्त हो चुके हैं। धरती पर यह बदलाव प्राकृतिक असंतुलन के चलते दिख रहा है।
नहीं हो रही पर्याप्त बारिश
जिले में छह साल से पर्याप्त बारिश नहीं हो रही। पिछले साल जुलाई के दूसरे सप्ताह से सक्रिय हुआ था। जिले में 1 जून से 15 अगस्त तक मात्र 270 मिलीमीटर बरसात ही हुई। इसके बाद मानसून सुस्त हो गया। इस दौरान हल्की-फुल्की बरसात हुई। मुश्किल से जिले की औसत बारिश का आंकड़ा 325 मिलीमीटर तक पहुंच सका। जबकि जिले की औसत बरसात के 550 मिलीमीटर है। जिले के कई जलाशय तो सूखे ही रहे। पुष्कर सरोवर में भी कम पानी की आवक हुई। जिले में 2012 में 520.2, 2013 में 540, 2014 में 545.8, 2015 में 381.44, 2016-512.07, 2017 में 450 मिलीमीटर बारिश ही हुई। आंकड़ों की मानें तो जिला छह साल में करीब 500 मिलीमीटर बरसात से वंचित रहा है।
30 लाख पौधे हुए खराब

वन विभाग और सरकार बीते 50 साल में विभिन्न योजनाओं में पौधरोपण करा रहा है। इनमें वानिकी परियोजना, नाबार्ड और अन्य योजनाएं शामिल हैं। इस दौरान करीब 40 से 50 लाख पौधे लगाए गए। पानी की कमी और सार-संभाल के अभाव में करीब 30 लाख पौधे तो सूखकर नष्ट हो गए। कई पौधे अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए। हालांकि वन विभाग का दावा है, कि अजमेर जिले 13 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ा है। इसमें 7 वर्ग किलोमीटर मध्य घनत्व और 6 वर्ग किलोमीटर खुला वन क्षेत्र बताया गया है।
ऋतुओं में हो रहा बदलाव
अजमेर जिले में ऋतुओं पर भी असर पड़ा है। शीत ऋत देरी से शुरू हो रही है। दस साल पहले तक कार्तिक माह में गुलाबी ठंडक दस्तक दे देती थी। लेकिन अब अक्टूबर-नवम्बर तक गर्मी पसीने छुड़ाती दिखती है। साल 2017 में तो अक्टूबर के अंत तक तापमान 38 से 40 डिग्री के बीच रहा था। इससे पहले साल 2015 में दिसम्बर तक अधिकतम तापमान 30 डिग्री के आसपास था। जबकि 2016 में जनवरी के दूसरे पखवाड़े में ही अधिकत तापमान 25 से 29 डिग्री के बीच पहुंच गया था। ग्रीष्म ऋतु में भी तापमान 45-46 डिग्री तक पहुंचने लगा है।
फरवरी-मार्च में गर्माहट

ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत फरवरी में ही होने लगी है। पिछले दस साल में यह परिवर्तन देखने को मिला है। फरवरी और मार्च की शुरुआत तक हल्की ठंडक बनी रहती थी। लेकिन अब इन दोनों महीने में तापमान 35 से 39 डिग्री तक पहुंचने लगा है। पिछले साल फरवरी के अंत तक पारा 34 डिग्री और मार्च में 40.4 डिग्री तक पहुंच गया था।
ग्लोबल वार्मिंग का असर
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभागाध्यक्ष प्रो. प्रवीण माथुर की मानें तो ग्लोबल वार्मिंग से मौसम असामान्य बनता जा राह है। जिन स्थानों पर कम बरसात होती थी वहां अतिवृष्टि और बाढ़ आ रही है। बीते दस साल में सिरोही, जालौर, बाडमेर जिले में आई बाढ़ इसका परिचायक है। वहीं अजमेर में प्रत्येक ऋतु में तापमान सामान्य रहा करता था। यहां सर्दी और बरसात का मौसम तो सबसे सुहावना होता था। लेकिन अब यह धीरे-धीरे गर्म शहर में तब्दील हो रहा है। हरियाली नहीं बढ़ाई तो भविष्य में पर्यावरण असंतुलन की स्थिति बन सकती है।
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