लेकिन इसके बावजूद सरकारी महकमें Departments झील की कद्र नहीं कर रहे। 16 नालों के जरिए झील में गंदा पानी डाला जा रहा है। दिनोदिन झील में मलवा डालकर कब्जा किया जा रहा है लेकिन सरकारी मशीनरी मौन है। अतिक्रमियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने के सैकड़ों दावे किए गए लेकिन अभी तक एफआईआर तो दूर नोटिस तक जारी नहीं हो सका। झील का दुर्दशा जारी है। वर्तमान में झील में नालों के गंदे पानी से झील का पानी जहरीला हो चुका है। न तो यह नहाने योग्य है और न पीने योग्य। इसमें पल रही मछलियां भी खाने योग्य नहीं है।
मत्स्य विभाग प्रतिवर्ष 1.64 करोड़
आनासागर झील में मत्स्य पालन विभाग की ओर से प्रतिवर्ष मछली पालन का ठेका दिया जाता है। वर्तमान में1 करोड़ 64 लाख रुपए का ठेके को रिन्यूअल किया गया है। यहां पर होने वाली मछलियां को अहमदाबाद, कलकत्ता, दिल्ली, मध्यप्रदेश और बिहार सहित कई स्थानों पर भेजा जाता है।
नगर निगम को करीब 3 करोड़ की कमाई नगर निगम को झील से प्रतिवर्ष करोड़ों की कमाई हो रही है। झील में नौका संचालन का ठेका 1.60 लाख में दिया गया। झील के किनारे लवकुश में कैफेटेरिया/फूड कोर्ट बनाते हुए इसका ठेके 38 लाख दिया गया है। झील के बीच बने टापू से भी लाखों रुपए की आय होती है। झील के किनारे बनाए सुभाष उद्यान से भी 82 लाख रुपए की आय नगर निगम को है।
पुरातत्व विभाग पुरातत्व विभाग भी टिकटों के जरिए कमाई कर रहा है। वहीं झील में वाटर स्पोर्टस की भी संभावनाएं तलाशी जा रही है। लेक डवलपमेंट फ्रंट व बर्डपार्क बनाया जा रहा है। बांडी नदी के किनारे पर थ्री डी वाटर प्रोजेक्टशन भी योजना है।
11 वीं सदी में हुआ निर्माण
11 वीं सदी में चौहान राजवंश में अजमेर को पानी की व्यवस्था के लिए सम्राट पृथ्वीराज के दादा महाराणा अर्णाेराज चौहान ने झील का निर्माण करवाया। यज्ञ करने के बाद झील की पाल बनवाई गई। 16 वीं शताब्दी ने जहांगीर ने इसके किनारे बारादरी बनाई। शाहजहां ने दौलत बाग बनवाया। झील में मुख्य रूप से नागपहाड़ और बांडी नदी का बरसाती पानी आता था। लूणी नदीे की एक धारा बांडी के रूप में आनासागर में मिलती थी। पूर्व में झील का फैलाव नौसरघाटी था,1965 में इसके किनारे रीजनल कॉलेज बनाया गया।