सर्वेक्षण में स्थिति चिंताजनक
भारतीय वन्य जीव संस्थान सहित कई विश्वविद्यालयों-संस्थाओं ने राजस्थान-गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया है। संस्थान द्वारा देश के विभिन्न प्रांतों में किए गए सर्वेक्षण में भी स्थिति गंभीर पाई गई है।
भारतीय वन्य जीव संस्थान सहित कई विश्वविद्यालयों-संस्थाओं ने राजस्थान-गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया है। संस्थान द्वारा देश के विभिन्न प्रांतों में किए गए सर्वेक्षण में भी स्थिति गंभीर पाई गई है।
भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के डॉ. सुतीर्थ दत्ता की रिपोर्ट मानें तो ८० के दशक तक देश में करीब ४३७४ खरमौर थे। अब यह संख्या घटते-घटते डेढ़ से दो हजार के आस-पास पहुंच चुकी है। उनका मानना है कि हरे घास के मैदान, झाडिय़ों युक्त ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र नहीं बचाए गए तो खरमौर, गोडावण सहित कई प्रजातियों के पक्षी, जीव-जंतु विलुप्त हो जाएंगे। भावी पीढ़ी इन्हें कभी देख नहीं सकेगी।
आखिर कहां चला जाता है
मूलत: शर्मिला समझा जाने वाला खरमौर मानसून खत्म होते ही कहां चला जाता है, इस पर पिछले चार महीने से बॉम्बे नेच्यूरल हिस्ट्री सोसायटी के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. सुजीत नरवड़े की टीम शोध कर रही है। पिछले साल मानसून के दौरान महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय और उनकी टीम को चार-पांच खरमौर यहां नजर आए थे।
मूलत: शर्मिला समझा जाने वाला खरमौर मानसून खत्म होते ही कहां चला जाता है, इस पर पिछले चार महीने से बॉम्बे नेच्यूरल हिस्ट्री सोसायटी के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. सुजीत नरवड़े की टीम शोध कर रही है। पिछले साल मानसून के दौरान महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय और उनकी टीम को चार-पांच खरमौर यहां नजर आए थे।
करना होगा ये काम ग्रामीणों ने बताया कि पहले भिनाय-शोकलिया क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों और वनों की कमी नहीं थी। जलाशयों में भी पर्याप्त पानी रहता था। खरमौर के लिए झाडिय़ों और घास के मैदान की उपलब्धता थी। अवैध खनन, कम बरसात और वन्य क्षेत्र में कमी से खरमौर पर अब दिखाई नहीं दे रहा है।
इनका कहना है…
शोकलिया-भिनाय क्षेत्र में खरमौर का अस्तित्व संकट में है। प्राकृतिक आवास, खान-पान की अनुपलब्धता इसके लिए जिम्मेदार है। यह काफी शर्मिला सा पक्षी होता है। मानसून के बाद यह कहां जाता है, इसको लेकर पर्यावरणविदें की टीम शोध कर रही है। पर्यावरण संरक्षण नहीं हुआ तो गोडावण की तरह जिले से खरमौर भी विलुप्त हो जाएगा।
शोकलिया-भिनाय क्षेत्र में खरमौर का अस्तित्व संकट में है। प्राकृतिक आवास, खान-पान की अनुपलब्धता इसके लिए जिम्मेदार है। यह काफी शर्मिला सा पक्षी होता है। मानसून के बाद यह कहां जाता है, इसको लेकर पर्यावरणविदें की टीम शोध कर रही है। पर्यावरण संरक्षण नहीं हुआ तो गोडावण की तरह जिले से खरमौर भी विलुप्त हो जाएगा।
-प्रो. प्रवीण माथुर, विभागाध्यक्ष, पर्यावरण विज्ञान, मदस विश्वविद्यालय