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अजमेर के महापौर को दिया नोटिस, नहीं दिया जवाब तो हो सकता है ये एक्शन

locationअजमेरPublished: Mar 23, 2019 04:12:59 pm

Submitted by:

raktim tiwari

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Ajmer Municipal Corporation

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अजमेर.

नगर निगम का 13 व्यावसायिक नक्शा विवाद प्रकरण में स्वायत्त शासन विभाग (डीएलबी) की जांच कमेटी की रिपोर्ट के बाद अब कार्रवाई शुरू हो गई है। डीएलबी के निदेशक पवन अरोड़ा ने महापौर धर्मेन्द्र गहलोत को चार बिन्दुओं पर नोटिस जारी का इस मामले में 7 दिन में जवाब मांगा है। जवाब नहीं देने की स्थिति में महापौर के खिलाफ नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 39 के तहत कार्रवाई हो सकती है। डीएलबी ने महापौर को चार बिन्दुओं पर दोषी मानते हुए जवाब मांगा है।
गौरतलब है कि डीएलबी ने राजस्थान पत्रिका की इस मामले को लेकर 25 से 29 सितम्बर 2018 तक प्रकाशित खबरों को आधार मानते हुए जांच के आदेश दिए थे। जांच कमेटी ने प्रकाशित समाचार के तथ्यों को सही पाया है। राज्य सरकार द्वारा गठित कमेटी ने नक्शों को नियम विरुद्ध मानते हुए महापौर तथा उपायुक्त को प्रथमदृष्टया दोषी माना है। इस सम्बन्ध में नक्शे खारिज करने की अनुशंसा के साथ तत्कालीन सहायक व कनिष्ठ अभिंयता को गड़बड़ी का दोषी माना है।
उपायुक्त को आयुक्त के अधिकार देना गलत

डीएलबी के अनुसार 13 व्यावसायिक प्रयोजनार्थ भवन निर्माण स्वीकृतियां निगम के आयुक्त के आकस्मिक अवकाश के दौरान महापौर द्वारा उपायुक्त गजेन्द्र सिंह रलावता से अधिकार क्षेत्र के परे जाकर स्वीकृत कराई गई। राजस्थान सेवा नियमों में आकस्मिक अवकाश को अवकाश की श्रेणी में नहीं माना गया है। ऐसी स्थिति में पदधारक का कार्यभार/शक्तियां अन्य कार्मिक को प्रदत्त नहीं की जा सकती। आयुक्त को प्रदत्त अधिकार क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर नियम विरुद्ध तरीके से कार्यवाहक उपायुक्त को भवन निर्माण पत्रावलियों को स्वीकृत करने की शक्तियां प्रदत करना विधि विरुद्ध है। इसके लिए महापौर को दोषी बताया गया है।
आयुक्त के सुने बिना किया नक्शा बहाल

तत्कालीन आयुक्त द्वारा पत्रावलियां नियमानुसार सक्षम स्तर से स्वीकृत नहीं होने से निरस्त कर दी गई। इसके बावजूद 17 सितम्बर को 2018 को एम्पावर्ड कमेटी में बैठक में आयुक्त को सुने बिना ही पत्रावलियां बहाल कर दी गईं। जबकि आयुक्त की जाचं रिपोर्ट में पत्रावलियां मौका निरीक्षण रिपोर्ट एवं विधिक समीक्षा के उपारांत विधि विरुद्ध स्वीकृतियां जारी करना पाया गया है। परकोटा/गैर योजनांतर्गत क्षेत्र के लिए लागू प्रावधानों के अनुसार सेटबैक एवं व्यावसायिक गतिविधि का शिथिलन दिए जाने के बावजूद आवेदकों को योजनागत क्षेत्र के लिए लागू उंचाई का दोहरा लाभ दिया गया। यह उच्च न्यायालय के निर्णय के भी विरुद्ध है। इसके लिए महापौर को दोषी बताया गया है।
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